रविवार, 10 अप्रैल 2016

कोई अच्छा सा नाम सुझा देना भाई !


हाल फिलहाल में मुझे अगर किसी चीज़ ने सबसे ज्यादा इंटेलकचुअली  चैलेंज किया है तो वो है बच्चे का नाम करण ।
और बड़ा ही ख़राब प्रदर्शन रहा अपना इस मामले में । कम से कम पाँच छह रिश्तेदारों , जान पहचान वालो के फ़ोन तो आये ही होंगे कि भईया आप तो बहुते ही समझदार ठहरे और होशियार हुए , देश दुनिया घूमे हो , सुझा दो कोई अच्छा सा नाम ।

और हमने सुझाएँ भी है , कुछ इंटरनेट से,  कुछ  ऑफिस और अपने सर्कल में सुने सुनाए । पर अफसोस , सब रिजेक्ट । कतई खरे न उतर पाये हम उम्मीदों पर , बाल बराबर भी नहीं ।

 धक्का लगा है हमारी शाख को ।

नाम जो है एक तो कतई 'आउट ऑफ़ बॉक्स ' होना चाहिए और हाँ एकदम  अनहर्ड  भी ।
ऐसे ऐसे नाम सुनने को मिल रहे है कि जीभ भी साली मोच खा जाए । सीधे वेद  पुराण , उपनिषदों से आ रहे है , फ्रेश्ली पिकड !

एक जमाना था , जेठ में पैदा हो गए तो जेठा , पूस में पैदा हो गए तो पूसा । इतवार को पैदा हो गए तो इतवारीलाल  , मंगल तो आ टपके तो मंगला ।
कई बार तो माड़ साब खुद ही लिख जाते थे  और चबूतरे पे आ बोल जाते थे "सुनो बालको की माँ , तुम्हारे ननुआ का नाम हमने बलराज चढ़ा दिया है रजिस्टर में ।"  और ननुआ बलराज हो जाता था ।
उस पीढ़ी  में काम पे ध्यान था , नाम पे नहीं ।
आजकल की पीढ़ी बत्ती बुझाने से पहले नाम पर ब्रैन्स्टॉर्म कर रही है ;)

फिर नेम  पूल का जमाना आया । पूल के हिसाब से चलने लगे जैसे कोई भी अक्षर उठाओ बाद में इन्दर जोड़ दो ।  महेंदर , राजेंदर , सुरेंदर , हरेंदर , बलबिंदरइत्यादि ।
अभी पिछले दशक में 'आंश ' 'आँशु'  का पूल चल रहा था , दिव्यांश , चंद्रांश , प्रियांशु , हिमांशु  आदि आदि ।
मम्मी पापा का नाम जोड़के कुछ नया इज़ाद करने का चलन भी आया था थोड़े टाइम के लिए !

 भला हो हमारी अर्धांगिनी का जिसने हमारे नकारे पन को अरसे पहले ही परख  लिया और  हमे अपनी बिटिया के नामकरण के बोझ से महीनो पहले ही बरी कर छोड़ा  । उसे पता है ये जटिल काम हमसे न हो पाएगा , कतई भी नहीं ।

आज बिटिया दस दिन की हो गयी है पर नाम पे कुछ डिसाइड नहीं कर पा रही बेचारी । रोज १० से १५ नाम की सूची व्हाट्स एप्प करती है , हमे ये भी सही लगता है वो भी सही ।
आपको कोई सही सा नाम याद हो बिटिया के लिए ' भ '  अक्षर से , तो सुझा दीजियेगा , पसंद आ गया तो आपकी बुद्धिमत्ता के कायल होंगे हम । हमारी अर्धांगिनी का भार भी हल्का हो जायेगा !

वैसे नाम को लेके ये झमेला अब उफान पे जरूर है , बिलकुल  नया भी नहीं है । 
उस ज़माने में , तेंदुलकर के उदय से पहले , उन दिनों माँ ने गाँव के खडकू  के नाती का नाम ' सचिन ' सुन लिया था  तो बलबला उठी थी , शकल न सूरत , नाम नक़ल कर लिया फोकट । माँ का बस चलता तो बदलवा ही डालती उसका नाम :)
                                                                                        - सचिन कुमार गुर्जर








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