शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

फ्रस्टू दोस्त और उबाऊ मीटिंग

वो मीटिंग जो की एक बेहद जरूरी मीटिंग थी ,घंटे भर की माथापच्ची के बाद खत्म हो गयी !
मीटिंग रूम से बाहर निकलते हुए मिंटू के चेहरे पे संतोष था , सुकून था । कुछ पा जाने का सुकून नहीं , छुटकारा पा जाने का सुकून !
और चिंटू , वही जैसा वो  हमेशा से रहा है , उनींदा , आँखे मीड़ता , ढले कंधे लिए हुए बाहर निकल आया था  ।

कतारबद्ध बने केबिन्स को दो फाँक करती पतली गैलरी में टहलते हुए मिंटू  की पेशानी पर बल उभर आया था । बोला " देखा तूने , कुछ गौर किया ? क्यों ?"

" हाँ यार , ये मैनेजर थोड़ा सख्त रहेगा शायद , रूल बुक से चलने वाला !" चिंटू ने बड़ी  ही उबाऊ सी आवाज़ में जबाब दिया था ।

बात पूरी होने से पहले ही मिंटू ऊँची आवाज़ में लगभग दुत्कारते हुए बोल पड़ा  " नहीं साले , नहीं ।  हम इस प्रोजेक्ट  के सबसे सीनियर लोग हो गए है । मेरा मतलब है सबसे पुराने । समझा कुछ ?"

मिंटू को  अपने पुराने हो जाने का , पीछे छूट जाने का , कुछ नया ना कर पाने का , नौकरी न बदल पाने का दर्द  आये दिन उठता ही रहता था । कभी दर्द  हल्का होता तो मिंटू  बस भिन्नाता , तेज होता तो लगता सब कुछ फ़ेंक फाक  कर दुडकी  लगा देगा । पर सालों से वह अपनी जगह टिका रहा ।  रिसता रहा कभी फूटा नहीं ।

निठल्ले और सालों  से किस्मत को अपना स्टेयरिंग थमाए चिंटू  को पता था कि दोस्त के इस दर्द का तुरंत उपचार तो कोई है नहीं । हाँ एक अच्छे दोस्त की तरह दोस्त का गम गलत करने को उसने बोला " चल , नीचे खोखे पे चाय पी आते हैं।  "

पुराने नीम के पेड़ से सटे खोखे  के बाहर पड़ी लकड़ी की सीधी सपाट बेंच । खोखे की तरपाल पर धूल इतनी कि उसका रंग हरे की वजाय मटमैला ही दीखता था ।  सस्ती , कम दूध वाली चाय की चुस्की लेकर  मिंटू बोला " बहुत हुआ । अब  कुछ करना ही होगा । "

अचानक से मिंटू के  भाव बदल गए थे । चाय पत्ती की तेजी ने उसमे जोश सा ला दिया था । " यार सीनियर  लोग फॉर्म में आ रहे इस सीजन । देखा ,धोनी ,युवराज कैसे  रंग में आ गए फिर से ।  और अपना  फेडरर, क्या ग़ज़ब खेला भाई , अब भी ! "

फिर लंबी साँस छोड़ते हुए बोला "इस सीजन मुझे भी PMP सर्टिफिकेशन करना ही होगा । नो एक्सक्यूसेस !"
ऐसा बोलते हुए हुए उसके जबड़े की हड्डियां मजबूती के साथ बाहर उभर  आयी थी , जो की उसके दृढ निश्चयी होने का सबूत थीं !

उसका ये शिफूगा और हवा से मोटिवेशन चूसने की कोशिश  करना चिंटू के  अंदर बैठे निट्ठल्ले को बेहद  नागवार गुजरा था । तिलमिला सा उठा था चिंटू । 

सच्चे दोस्त कौन होते हैं  ? 
वही , जो एक दूसरे  की मदद करते है । हाँ, वो तो होते ही है ।  वो भी होते है जो एक दूसरें  को कुछ भी ना करने की वजह देते है !

सो  मिंटू के ताजा ताजा फुलाव में पंचर करने को चिंटू ने कहा " यार  PMP किया तो कौन सा पसेंजर से बुलेट ट्रैन में सवार हो जायेगा । हाँ, अगले डब्बे में सवार हो जाये शायद !
स्टार्टअप  कर स्टार्टअप  !"

 'स्टार्ट अप'  शब्द   चिंटू ने लंबा खींचा था , जान बूझ कर !  उसे  पता था कि ये शब्द उसके दोस्त के  जेहन में खीझ पैदा करेगा ही करेगा । 


 वो यूँ कि इस विचार के साथ कि 'कुछ अपना कुछ करेंगे' , 'कुछ नया करेंगे '   उन  दोनों जिगरियों ने तमाम मंत्रणाएं की थी  । आइडियाज बहुत आये । चाय की सस्ती दुकानों की चेन खोलने से लेके,  कार्ड बोर्ड बनाने तक , खुद की सॉफ्टवेर कंपनी खड़ी करने से लेके किसानों का काया कल्प  करने तक आदि आदि । फेरिस्त लंबी है । पर वे  स्टार्ट का बटन दबाने में विफल रहे थे । 'ओवर प्लानिंग' , 'अंडर प्लानिंग' , 'कॅश क्रंच' , 'टू रिस्की' , 'नॉट आवर कप ऑफ़ टी' ... वजह  आईडिया के साथ बदलती  रही । 

"कद्दू करेगा तू कुछ । बोलता ही है "  खीज गया था मिंटू । 
"अबे करूँ ना करूँ ।  जिक्र  करने से 'कुछ तो करना है , कुछ  तो करना है ' वाली हाजत तो मिटा लेता हूँ ना  ।  और वे  जोर से हंस दिए थे ।

अपने डब्बे नुमा केबिन की ओर टहलते हुए चिंटू ने पूछा " यार , आजकल ऑफिस  का कुछ गॉसिप नहीं मिलता । ये नए लड़के लड़कियाँ  कुछ अफ़ेयर बफेयर नहीं करते क्या ? कौन किसे लंच पे ले गया । कौन किसके साथ  घूम रहा । कौन कौन ऑफिस टाइम में भी मूवी थिएटर हो आ रहे  । हवा बदल गयी क्या इधर की ?। क्यों ?"

"अबे साले , मैंने बोला न , हम सीनियर हो गए । मेरा मतलब है पूराने और बूढ़े " मिंटू का तर्क मजबूत था ।

हाँ  , उस 'बेहद जरूरी मीटिंग  का' जो की सुबह नए बॉस ने बुलाई थी , उसका  'की टेक अवे' ये था कि उसी तरह की मीटिंग फिर से होगी , पंद्रह दिन बाद !

                                                                         - सचिन कुमार गुर्जर 

श्रद्धा भाव

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