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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

ऐसी भी क्या हड़बड़ी थी भैय्या



दिया प्रज्वलित होने के साथ ही भभक  उठे , भड़भड़ा उठे तो समझो दीर्घायु नहीं । 
ज्योत स्थिर जले ,धैर्य के साथ , तभी लम्बी जलती है और लम्बे अँधियारे को काटने के लिए दीर्घता ,अनवरत संघर्ष क्षमता अनिवार्य है । 

सर्दी गयी और मफलरधारी भी निकल लिए । क्या जल्दी थी केजरीवाल जी । बुराई के बड़े झाड़ न उखड़ते थे तो छोटी छोटी  समस्याएँ क्या कम थी । छक्के मारना ही बल्लेबाजी नहीं ,एक एक रन जमा कर भी रनो का अम्बार लगाया जा सकता है । आम आदमी होने का दम्भ भरते हो फिर सुपरमैन बनने का भूत क्यों कर सवार हुआ ।

स्वराज की लड़ाई लम्बी है , महीने दो महीने में चमत्कार की उम्मीद चाटुकारो को ही रही होगी या वो जिनके सिर बादलों में है । जमीनी सच्चाइयाँ भिन्न हैं , भ्रष्टाचार ,कुशासन से बंजर देश की माटी की सीरत बदलने को बरसों हाड़तोड़ मेहनत का कोई विकल्प नहीं है । 
निराश किया है आपने । ऐसी भी क्या हड़बड़ी थी भैय्या ।  








नवोदय के दिन

बक्सा , बाल्टी, एक अदद मग्गा , कुछ जोड़ी कपडे , बिस्कुट , दालमोठ और पंजीरी | इंतज़ाम तो कुछ ऐसा था जैसे कोई फौजी पल्टन को जाता हो | ऐसे जैसे  ...