रविवार, 10 अगस्त 2025

नवोदय के दिन

बक्सा , बाल्टी, एक अदद मग्गा , कुछ जोड़ी कपडे , बिस्कुट , दालमोठ और पंजीरी |

इंतज़ाम तो कुछ ऐसा था जैसे कोई फौजी पल्टन को जाता हो |

ऐसे जैसे  सयाना हो कोई , रुजगार कमाने  को जाता  हो | 


पिता जी जब संदूक उठा चले तो माँ रोई नहीं ,

 वो यूँ के उसकी हिड़की में हमारी हिम्मत टूट जाने का खर्चा था | 

दूर रहेगा,  पर मुन्ना कुछ बन निकलेगा ,ऐसा घरवालों में चर्चा था | 


स्कूल ईमारत , जेल सलाखें  ,कुछ ऐसी ही लगती थी | 

तोड़ भगेंगे किसी तरह भी, इच्छा ऐसी सी जगती थी | 

हम रोये और कितना ही रोये |  


फिर देखा यार , बगल के बंकर बैड का साथी अपने से भी ज्यादा रोता है | 

कितना प्यारा है आडी  अपना  , ये भीं तो बचपन खोता है | 


फिर दोस्तियाँ चल निकली | चल क्या निकली , दौड़ पड़ी | 

क्या डोरमेट्री ,क्या क्लासरूम ,नलके पर बाल्टियों की कतारें , गप्पें शप्पे, तक़रारे   | 

बातें ,बातें , बातें ,इतनी सारी , इतनी जैसी ,जैसे सड़कों पर मोटर कारें | 


सपने साझे हो गए अपने , साँझे हीरो , नागराज , ध्रुव , डोगा का तिलिस्मी संसार |

वो एकलौता रंगीन टीवी , चद्रकांता , संडे शाम की मूवी  और चित्रहार |  

मिडनाइट मैगी , मोमबत्ती पे ट्राई पोड लगा बनाई हुई ऑमलेट | 

बैड पर अखबार लगा सजी वो खांचेदार थाली , बजती चम्मचे , इक्का दुक्का चॉक्लेट |  


चेरी  ब्लॉसम किये हुए जूते , जेब में रेनॉल्ड्स संभाले सफ़ेद बुशर्ट ,निक्कर ग्रे | 

 हम नवयुग की नयी भारती नयी आरती , हर दिन नया थॉट ऑफ़ दा डे | 


सदन शिवाजी , गाँधी , सुभाष, अपनी पहचान अपने निशान , अब मन रमने लगा था | 

क्लस्टर की तैयारी , खोखो, कबड्ड़ी से स्कूल ग्राउंड सजने लगा था | 

जमने लगी थीं यारियाँ , वो पारियाँ ,  जमने लगा था गेंद बल्ला | 

क्लास रूम में जो गुरु हमारे , मैदान में सखा थे ,मचता था हल्ला  | 


पेरेंट्स डे के दिन अब घर वाले  आते , कभी न भी आते | 

हाँ ,जिसके भी  आते , जो भी लाते , सब बँटता ,सब प्यार पाते | 


लड़कियाँ खरगोश सी , वे चश्मिशे  जो नाक संभालती थी कभी, अब कितना जंचने लगी थी |

स्कूल कैम्पस के खड़ंजों में लगे लाल गुलमोहर , चंपा ,कनेर डाली डाली लचने लगी थी | 

कुछ बातें जो कह दी गयी , कुछ बातें जो कभी नहीं कहीं  |

कुछ मुलाकाते जो हुई कुछ मुलाकातें जो कभी नहीं हुई |  

 बस कुछ ऐसी दुनिया में हम डूबते उतराते न जाने कब  सीनियर हो गये  | 

कुछ हो गए अफसर , कुछ  टीचर , डॉक्टर , कुछ इंजीनियर हो गए  | 


स्कूल की दुनिया छोड़े थे तो दिल से रोये थे  

कुछ ऐसे ही जैसे संसार छिना जाता है | 

नवोदय  तू बहुत याद आता  है | 

विद्या कसम  , अभी तलक  बहुत याद आता है| 

                                            सचिन कुमार 

                                            नवोदय विद्यालय , सैंधवार , बिजनौर , 1st बैच 



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