बक्सा , बाल्टी, एक अदद मग्गा , कुछ जोड़ी कपडे , बिस्कुट , दालमोठ और पंजीरी |
इंतज़ाम तो कुछ ऐसा था जैसे कोई फौजी पल्टन को जाता हो |
ऐसे जैसे सयाना हो कोई , रुजगार कमाने को जाता हो |
पिता जी जब संदूक उठा चले तो माँ रोई नहीं ,
वो यूँ के उसकी हिड़की में हमारी हिम्मत टूट जाने का खर्चा था |
दूर रहेगा, पर मुन्ना कुछ बन निकलेगा ,ऐसा घरवालों में चर्चा था |
स्कूल ईमारत , जेल सलाखें ,कुछ ऐसी ही लगती थी |
तोड़ भगेंगे किसी तरह भी, इच्छा ऐसी सी जगती थी |
हम रोये और कितना ही रोये |
फिर देखा यार , बगल के बंकर बैड का साथी अपने से भी ज्यादा रोता है |
कितना प्यारा है आडी अपना , ये भीं तो बचपन खोता है |
फिर दोस्तियाँ चल निकली | चल क्या निकली , दौड़ पड़ी |
क्या डोरमेट्री ,क्या क्लासरूम ,नलके पर बाल्टियों की कतारें , गप्पें शप्पे, तक़रारे |
बातें ,बातें , बातें ,इतनी सारी , इतनी जैसी ,जैसे सड़कों पर मोटर कारें |
सपने साझे हो गए अपने , साँझे हीरो , नागराज , ध्रुव , डोगा का तिलिस्मी संसार |
वो एकलौता रंगीन टीवी , चद्रकांता , संडे शाम की मूवी और चित्रहार |
मिडनाइट मैगी , मोमबत्ती पे ट्राई पोड लगा बनाई हुई ऑमलेट |
बैड पर अखबार लगा सजी वो खांचेदार थाली , बजती चम्मचे , इक्का दुक्का चॉक्लेट |
चेरी ब्लॉसम किये हुए जूते , जेब में रेनॉल्ड्स संभाले सफ़ेद बुशर्ट ,निक्कर ग्रे |
हम नवयुग की नयी भारती नयी आरती , हर दिन नया थॉट ऑफ़ दा डे |
सदन शिवाजी , गाँधी , सुभाष, अपनी पहचान अपने निशान , अब मन रमने लगा था |
क्लस्टर की तैयारी , खोखो, कबड्ड़ी से स्कूल ग्राउंड सजने लगा था |
जमने लगी थीं यारियाँ , वो पारियाँ , जमने लगा था गेंद बल्ला |
क्लास रूम में जो गुरु हमारे , मैदान में सखा थे ,मचता था हल्ला |
पेरेंट्स डे के दिन अब घर वाले आते , कभी न भी आते |
हाँ ,जिसके भी आते , जो भी लाते , सब बँटता ,सब प्यार पाते |
लड़कियाँ खरगोश सी , वे चश्मिशे जो नाक संभालती थी कभी, अब कितना जंचने लगी थी |
स्कूल कैम्पस के खड़ंजों में लगे लाल गुलमोहर , चंपा ,कनेर डाली डाली लचने लगी थी |
कुछ बातें जो कह दी गयी , कुछ बातें जो कभी नहीं कहीं |
कुछ मुलाकाते जो हुई कुछ मुलाकातें जो कभी नहीं हुई |
बस कुछ ऐसी दुनिया में हम डूबते उतराते न जाने कब सीनियर हो गये |
कुछ हो गए अफसर , कुछ टीचर , डॉक्टर , कुछ इंजीनियर हो गए |
स्कूल की दुनिया छोड़े थे तो दिल से रोये थे
कुछ ऐसे ही जैसे संसार छिना जाता है |
नवोदय तू बहुत याद आता है |
विद्या कसम , अभी तलक बहुत याद आता है|
सचिन कुमार
नवोदय विद्यालय , सैंधवार , बिजनौर , 1st बैच
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