बिटिया अब बीस दिन की हो गयी है । 'भव्या ' नाम पर सहमति भी बनती दिख रही है ।
अच्छा नाम है 'भव्या ', अपने आप में विराटता समेटे हुए । एक बाप के लिए इससे बड़ी इच्छा क्या हो सकती है कि उसकी बेटी भव्या हो , जीवन पथ पर आसमान की ऊंचाइयों को चूमें ,श्रेष्ठ हो , दीप्तिमान हो ।
पर इस बाप का अनुभव थोड़ा अलग रहा इस बार , पिछली बार बेटे के आगमन से हटके ।
माँ की तबियत थोड़ी नासाज़ है आजकल , कमर की चोट से रिकवर कर रही है । डॉक्टर ने फुल बेड-रेस्ट बोला है । सो डिलीवरी के समय अस्पताल तक न आ सकी ।
फ़ोन पर बिटिया की खबर सुनते ही पहला सवाल ये दागा ।
" रंग साफ़ है कि नहीं , आँखे कैसी हैं , तुझपे तो न चली गयी? नाक रोमन है की नहीं ?"
फिर समझाया "नाक अगर कुछ चपटी मालूम होती हो , तो थोड़ी सी सूत दीजो , नया बच्चा मुलायम मिटटी होता है , नाक सुतवा होनी चाहिए । हाँ , कान आगे को झुके दीखते हो तो थोड़ा उन्हें भी दबा दीजो । "
माँ की चिंता को मैँ समझता हूँ , बहुत आगे तक का सोच लेती है माँ ।
पोती सुन्दर होनी चाहिए ताकि आगे चल शादी विवाह में कोई अड़चन न हो ।
एक रिश्तेदार है बीमा करने कराने का काम करते है ।
सालों से मैँ उन्हें टरकाता रहा , हाँ अब कराऊंगा , तब कराऊंगा ।
बिटिया के आने के चंद घंटो बाद ही उन्होंने फ़ोन घनघना दिया ।
बोले " बच्चू , अब तो कराना ही पड़ेगा । देखो मेरे पास कई अच्छे चाइल्ड प्लान है ।
'जीवन सुकन्या ' लेलो और चिंता मुक्त हो जाओ । थोड़ा पैसा 'कोमल जीवन' और 'जीवन अंकुर' में भी लगा दिया तो सोने पे सुहागा । "
फिर काउंसलिंग करने लगे "देखो बेटा ,बेटी बाप के सीने पे रखा पहाड़ होती है , अभी से प्लान न किया तो चिंता सागर में डूबे जीवन कटेगा । समय से पहले बूढ़े हो जाओगे । सही से प्लान करोगे तो बिटिया जब तक शादी लायक होगी , इतना पैसा इकट्टा हो जायेगा कि सारे इंतज़ाम खुद ब खुद ।
बेटे को लेके गम्भीर न हुए लेकिन अब तो बिटिया आ गयी है , अब तो सुधर जाओ , लीक पे आ जाओ । "
सप्ताहंत बाद ऑफिस लौटा तो फिर श्रीमती जी का फ़ोन आ गया । जीवन में इतना भावुक मैंने उन्हें कभी न पाया ।
" देखो जी , बहुत हुआ । इतने सालों से आप अपने हिसाब से चलते रहे , मैँ चुप रही । कभी दखल ना दिया ।
सारा कमाया धमाया आपने यूँ ही इधर उधर बहाया या घर वालों पे न्योछावर कर दिया ।
साफ़ कहे देती हूँ , अब नहीं चलने दूँगी ये सब । अब सुधर जाओ , बिटिया के लिए कुछ करोगे कि नहीं ?
हमे अभी से पाई पाई जोड़ना होगा । ध्यान से सुन लीजो और गाँठ बाँध लीजो मेरी बात । सुधर जाओ बिटिया आ गयी है !"
अभी दो दिन पहले आफिस में भी किसी ने हलकी फुल्की मज़ाक करने पे चेता दिया " सुधर जाओ बे , अब तो घर में बेटी आ गयी है । "
सब चेता रहे है और ये बाप परेशान है , बिटिया आ गयी है या कोई इमरजेंसी आ गयी है !
हैं जी ?
गम्भीर और समझदार होने के नुख्से ढूढ़ता एक बेटी का बाप -
--सचिन कुमार गुर्जर
अच्छा नाम है 'भव्या ', अपने आप में विराटता समेटे हुए । एक बाप के लिए इससे बड़ी इच्छा क्या हो सकती है कि उसकी बेटी भव्या हो , जीवन पथ पर आसमान की ऊंचाइयों को चूमें ,श्रेष्ठ हो , दीप्तिमान हो ।
पर इस बाप का अनुभव थोड़ा अलग रहा इस बार , पिछली बार बेटे के आगमन से हटके ।
माँ की तबियत थोड़ी नासाज़ है आजकल , कमर की चोट से रिकवर कर रही है । डॉक्टर ने फुल बेड-रेस्ट बोला है । सो डिलीवरी के समय अस्पताल तक न आ सकी ।
फ़ोन पर बिटिया की खबर सुनते ही पहला सवाल ये दागा ।
" रंग साफ़ है कि नहीं , आँखे कैसी हैं , तुझपे तो न चली गयी? नाक रोमन है की नहीं ?"
फिर समझाया "नाक अगर कुछ चपटी मालूम होती हो , तो थोड़ी सी सूत दीजो , नया बच्चा मुलायम मिटटी होता है , नाक सुतवा होनी चाहिए । हाँ , कान आगे को झुके दीखते हो तो थोड़ा उन्हें भी दबा दीजो । "
माँ की चिंता को मैँ समझता हूँ , बहुत आगे तक का सोच लेती है माँ ।
पोती सुन्दर होनी चाहिए ताकि आगे चल शादी विवाह में कोई अड़चन न हो ।
एक रिश्तेदार है बीमा करने कराने का काम करते है ।
सालों से मैँ उन्हें टरकाता रहा , हाँ अब कराऊंगा , तब कराऊंगा ।
बिटिया के आने के चंद घंटो बाद ही उन्होंने फ़ोन घनघना दिया ।
बोले " बच्चू , अब तो कराना ही पड़ेगा । देखो मेरे पास कई अच्छे चाइल्ड प्लान है ।
'जीवन सुकन्या ' लेलो और चिंता मुक्त हो जाओ । थोड़ा पैसा 'कोमल जीवन' और 'जीवन अंकुर' में भी लगा दिया तो सोने पे सुहागा । "
फिर काउंसलिंग करने लगे "देखो बेटा ,बेटी बाप के सीने पे रखा पहाड़ होती है , अभी से प्लान न किया तो चिंता सागर में डूबे जीवन कटेगा । समय से पहले बूढ़े हो जाओगे । सही से प्लान करोगे तो बिटिया जब तक शादी लायक होगी , इतना पैसा इकट्टा हो जायेगा कि सारे इंतज़ाम खुद ब खुद ।
बेटे को लेके गम्भीर न हुए लेकिन अब तो बिटिया आ गयी है , अब तो सुधर जाओ , लीक पे आ जाओ । "
सप्ताहंत बाद ऑफिस लौटा तो फिर श्रीमती जी का फ़ोन आ गया । जीवन में इतना भावुक मैंने उन्हें कभी न पाया ।
" देखो जी , बहुत हुआ । इतने सालों से आप अपने हिसाब से चलते रहे , मैँ चुप रही । कभी दखल ना दिया ।
सारा कमाया धमाया आपने यूँ ही इधर उधर बहाया या घर वालों पे न्योछावर कर दिया ।
साफ़ कहे देती हूँ , अब नहीं चलने दूँगी ये सब । अब सुधर जाओ , बिटिया के लिए कुछ करोगे कि नहीं ?
हमे अभी से पाई पाई जोड़ना होगा । ध्यान से सुन लीजो और गाँठ बाँध लीजो मेरी बात । सुधर जाओ बिटिया आ गयी है !"
अभी दो दिन पहले आफिस में भी किसी ने हलकी फुल्की मज़ाक करने पे चेता दिया " सुधर जाओ बे , अब तो घर में बेटी आ गयी है । "
सब चेता रहे है और ये बाप परेशान है , बिटिया आ गयी है या कोई इमरजेंसी आ गयी है !
हैं जी ?
गम्भीर और समझदार होने के नुख्से ढूढ़ता एक बेटी का बाप -
--सचिन कुमार गुर्जर
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