शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

बिरादरी का आदमी



लाल ईंटो का खड़ंजा , जो काले डामर की सड़क को गांव से जोड़ता था , भरा जा रहा था।  खड़ंजे पर गाय भैंस के गोबर और नाली के सूखे कीचड से बनी पपड़ी पर छोटे -बड़े , कुछ नंगे तो कुछ चप्पलो में घुसे पैर बदहवास , धड़धड़ाते  चले जा रहे थे।  "अरे म्हारी ससुआ के अंधाधुन्द भगामै हँगे !" बल्लू काका अनजान ड्राइवर पर  खीज  रहे थे और जितना शरीर सहयोग करता था  , उतनी रफ़्तार  से  नौजवानो की भीड़ के पीछे पीछे घिसटते चले जा रहे  थे।

कसबे की हाट से लौटते मुसाफिरों का 'टम्पू' , नहर के पुल के पार एक खेत में , खेत जो  की सड़क से कम से कम पांच फ़ीट गहरा था , पलट गया था ।  तीनो  टायर आसमान की ओर।  आलू - गोभी , पॉलीथिन में बधे मसाले , नन्ही बारीक मछलियां  , काली थैलियों में बधे मॉस के टुकड़े , लाल दवाई की शीशियां , जूते चप्पल  ,सब छितराये पड़े थे।  हड्डी पंजर तो कई के टूटे, पर एक बूढ़ा आदमी , जो छिटक कर दूर  सरकंडो के झुण्ड में जा गिरा था , उसने कुछ देर हाथ पैर फ़ेंक  छटपटाना बंद कर दिया था ।  लम्बी , हिना में पुती दाढ़ी गालों के दोनों कुओं  को ढके हुए थी , साफ़  लेकिन पुराना कुरता डाले  था।   दुर्घटना के बाबजूद  तेहमन्द अपनी जिम्मेदारी संभाले सूखी टांगो को ढ़ापे  था।  

"चलो कोई ना , बुढ़ाई की ढिमरी  तो एक दो साल  में वैसे भी बुझ ही जाती !" कोई धीमे से फुसफुसाया था और फिर उतनी ही धीमी आवाज़ में किसी ने 'हम्बे !' कह कर समर्थन किया था ।  किसी ने पहचान लिया और कुछ देर बाद पास के गांव के जुलाहे चले आये।  कुछ रोये |  अपने के जाने पर कौन नहीं रोता।  सड़क की पालट पर खड़े एक आदमी ने , जो उनमे से ही एक था और इल्मदार  था , बीड़ी का कश लगा बोला  " बस जी , इत्ती ही लिखा के लाये थे चचा।  बहाना तो कुछ न कुछ बनता ही है , ऊपर वाले की जो मर्ज़ी | " और फिर उसने अपने हाथ इबादत में आसमान की ओर उठा दिए । फिर  जुलाहों का झुंड अपने बूढ़े की मिटटी  को ले शाम के झुकमुके में खो गया ।

बल्लू काका का गुस्सा नाजायज नहीं था।  दरअसल ,दर्जन भर गावों को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ती  ये सड़क कई सालो से जर्जर  थी।सरकार की मेहर हुई , चौड़ी हो गयी और बेहद चिकनी भी ।  अचानक से नए खून  के लौंडे  अपना आपा खोने लगे।  कानो में मोबाइल फ़ोन की लीड घुसेड़े और रेस का तार पूरा खींच कोई नौजवान फर्राटे मारता निकलता तो कोई बुजुर्ग भी आपा खो बैठता " ऐ देखो , ऐ देखो , खुद भी मरेंगे भेन्ना $$ के , और दूसरो को भी मारेंगे। "


मड़ैया के बागबां  मंडी में सब्जी बेच बाकी बची आलू प्याज़ के साथ लौटते थे।  ठीक उसी ठोर पर मिनी ट्रक पलट गया।  एक जवान चला गया।  कई रोये और बड़े बदहवास हो रोये।  पर उनमे से एक जो काफी समझदार था , चैक की फुल बाजू बुशर्ट और नीचे पजामा पहने था , उसने खेत की पालट पर खड़े हो कहा "   देखो जी , जिसकी जहाँ लिख दी , उसकी वहाँ आनी है, अर जैसे  लिख दी , वैसे आनी है। "उसने आसमान की ओर ऊँगली उठा दी और भगवान पर लगभग तोहमद जड़ते हुए जोड़ा " जैसी उसकी  मर्जी !"और फिर  बगवानों का वो नर झुण्ड , बगवान  जिनसे  प्याज़ , शलजम और पसीने की घुलमिली बू आती  थी और जिनके पाजमो की अंटियों में बाजार में  कमाए कुछ गुड़मुड़ मैले नोट और सिक्के बधे थे , वो बगवान यूकेलिप्टीसो के बाड़े के बीच से जाने वाले कच्चे रास्ते पर उतर गए।            

  

आपको क्या लगता है कि भारत के गाँवो में "घनन घनन घन घिर आये बदरा " पर नंग धडंग हो इन्दर देवता  को रिझाने वाले लोग बसते है ? ऐसा नहीं है , ये बस फ़िल्मी चित्रण है , देखने में अच्छा लगता है | सोचने  समझने वाले लोग गावों में भी है | मंत्रणा हुई , बड़ी पाखड़ तले , सोचने समझने वाले छोटे बड़े दिमागों में रस्सा कसी हुई।   विचार हुआ कि आखिर इसी जगह हादसे क्यों और वो भी  इतने  कम अर्से  में  ।

किसी बूढ़े ने कुछ कहा तो पीले रंग और कमजोर हाड का  जीतू अपनी वाणी का संतुलन खो बैठा।  उसने सलेटी रंग की टीशर्ट पहनी थी जिस पर चे गुएवारा की फोटो छपी थी। किसी क्रांतिकारी की  तरह उबला   " अजी जमराज काहा , गधैय्या की  पूच !!"

फिर सँभलते हुए वो खड़ा हुआ बोला " देखो , मसला ऐ है कि नहर के पुल का ढाल है तेज और फिर ढाल ख़तम होने से पहले ही आ जावै है मोड़ "

" यूँ होया करै है  कै  जो पुराना ड्राइवर है उ हौले सै निकाल लेवे है अर जो  नौसिखिया हौवे है उ मात खा  जावै है। "

"फिर सड़क की दोनों ओर पुश्ते भी तो नाय  बंधे  है ?"

सबको बात जँची, और फैसला  हुआ कि मजिस्ट्रेट के यहाँ दरखास (प्रार्थना पत्र ) लगाई जाए जिसपर गांव के हर जात हर मोहल्ले के आदमी के दस्तखत हो।  किसी ने चिंता की कि  जायेगा कौन तो जीतू फिर बोला " जाने कि जरूरत क्या है , सब काम ऑनलाइन है , शिकायत पोर्टल पे सीधे एप्लीकेशन लगाओ , सात  दिन में शर्तिया कार्यवाही!  "

जागरूक और पढ़े लिखे नौजवान लोक निर्माण विभाग से जबाब मांग रहे थे। और जबाब आया भी , ठीक सात  दिन बाद! लोक निर्माण विभाग के क्लर्क ने लिखा " चूँकि मामला पुल से जुड़ा है , अतः आप सेतु निर्माण विभाग में अर्जी देवें | "                      सेतु विभाग वालों ने लिखा " चूँकि मामला सड़क के मोड़ का है ,अतः लोक निर्माण विभाग को ही अर्जी देवें |"

गांव  वाले समझ गए कि सरकारी बाबुओ ने मामले के साथ फूटबाल फूटबाल खेलना शुरू कर दिया है | जागरूक लोगो ने प्रतिक्रिया दी " लोक निर्माण विभाग , सेतु विभाग मिलकर मामले का संज्ञान लेवे , अर्जी की कॉपी मुख्यमंत्री ऑफिस में प्रेषित की जा रही है | कार्यवाही न होने पर ग्रामीण धरना देने को बाधित होंगे | "

तब जाके सरकारी बाबुओ में कुछ हडकल हुई | जबाब आया " नियत स्थान का सर्वेक्षण किया गया तथा निर्माण में किसी भी तरह की अनियमितता  नहीं पायी गयी | स्थान पर कुछ दुर्घटनाओं का होना महज एक संयोग है | "

महज एक संयोग !सबको पता था , जबाब से कोई हतप्रभ नहीं हुआ | हिन्दुस्तान में आप ऑनलाइन लाइए या ऑफलाइन , सरकारी बाबू सबका भरता बना देते है | सतही व्यवस्थाएं बदलती रहती है , चीज़े अपने ढर्रे पर ही रहती है | 

बड़ी पाखड़ तले फिर चर्चा हुई | विचार हुआ कि सरकारी मुलाजिमों का जबाब तो सबको पता ही था | लेकिन जब पुल  बनता था उसी वक़्त गांव में 'बड़े' क्यों सोये रहे | दिखता नहीं था कि ठेकेदार मिट्टी कम डालता रहा , डामर खाता रहा और सड़क की पालट बांधे बिना ही ठेका पास करा ले गया | जवान शहरों में कमाते थे लेकिन बुजुर्ग ? तभी विरोध क्यों नहीं हुआ ?

काफी देर सन्नाटा रहा | "अहह , अरे उ .. अरे उ ठेकेदार अपनी बिरादरी का आदमी था यार !" किसी बुजुर्ग ने  बीड़ी का कस लेते हुए कहा था | 

और फिर सर्वसम्मति से तय हुआ था कि मामले को अब छोड़ा जाए और जैसे 'ऊपर वाला' रखे वैसे ही रहा जाए !!


                                                                  सचिन कुमार गुर्जर 

                                                                  #castesystem , #babudom , hindishortstory


                                                  

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