रविवार, 3 जून 2018

भाड़ में जाए दुनिया


मेरे खेत के किनारे को छू के जाने वाली सड़क के किनारे एक होर्डिंग काफी दिनों से लगा है |
ये  बड़ा सा होर्डिंग समाजवादी के एक कद्दावर नेता का है जो पिछली बार की आंधी में इलेक्शन हार गए थे |
अभी पिछले दिनों उन्होंने आंबेडकर साहब के जन्मदिन पर अपने फार्म हाउस पर एक बड़े प्रीति भोज का आयोजन किया था | सुना है समाजवाद और बहुजनवाद  के कॉकटेल में काफी भीड़  जमा हुई थी | धूर्त कहलाने की हद तक स्वार्थी और अपने मतलब के लिए कुछ भी कर जाने को तैयार इन  नेता जी को अगले चुनाव के लिए काफी सशक्त माना जा रहा है |

हाँ , तो ठीक उसी होर्डिंग  के सामने , सड़क के बीचों बीच एक घोडा तांगा पलट गया |  घोडा कोयले के बड़े बोरो के  बीच बुरी तरह से  फंस गया  था |
दुपहरी का वक़्त था , जनता सड़क पर कम ही थी | आस पास के खेतो में जो भी नर नार थे, सहायता को भागे |
तांगे वाला, छरहरा नौजवान था , फुर्ती से सड़क किनारे के कच्चे पर छलांग लगा दी थी | जमीन पे औंधे  मुँह गिरा जरूर, पर सारा झटका अपने बलिष्ट हाथों पे झेल गया।  चोट नहीं आयी |

हाँ , बेचारे निरीह घोड़े की दुर्गति हो गयी थी | प्राणी बुरी तरह से जख्मी हुआ था |   उस लम्बे सफ़ेद घोड़े के नथुनों से  खून का फव्वारा छूट  रहा था | उसके अगले पैर  बुरी तरह से चोटिल हुए थे | ऊपर से जून की भीषण गर्मी में वो जीव चित्त सड़क पे चिपका पड़ा था |

हममे से किसी ने घोड़े वाले को पानी देना चाहा तो उसने बोला " पानी की प्यास नाय है  मोबाइल हो तो एक फून करवा  दीजो घर वालो कू बस |
उससे नंबर लेकर मैंने उसके घर वालो को फ़ोन लगा दिया |

तब तक इधर उधर से दर्जन भर  लोग इक्खट्टा हो गए थे |  सबने मिल मिलाकर कोयले के बोरो के बीच से घोड़े को निकाला और सड़क किनारे के यूकेलिप्टिसो की छाँव में खड़ा कर दिया |
किसी ने घोड़े वाले तो ताना मारा ,  " क्यू भैय्या , इत्ती दुपहरी में औकात से ज्यादा क्यू  भर लिया | "

घोड़े वाला अपने गमछे से पसीना साफ़ करके बोला  "बोझे की बात न है , पत्थर  आ गया सामने , ऊपर से ढलान पे था तांगा| इसी सै घोडा संभाला न ले पाया |  "

मैंने पाया कि  एक बड़ा सा  पत्थर  तांगे के बीचों बीच पड़ा था |   हादसे का जिम्मेवार वो  पत्थर ही था |
हो सकता है किसी ट्रक से गिरा हो या किसी ने यूँ ही फेक दिया हो | पत्थर कहाँ से आया , फिलहाल ये मुद्दा नहीं है |
भगवान् जाने , खैर हुई , वरना सड़क में जान जाने में क्या लगता है , गिरे , सिर डामर की सड़क से टकराया और बस  काम हो गया |  समझ लो कि ऊपर वाले की रहमत हो गयी , वरना...  |

थोड़ी देर में तांगे वाले के सम्बन्धी मोटर साइकिलों से  आ गए और हम लोग अपने अपंने खेतों में लौट गए |

मैं दूर से  यूकेलिप्टिस की कतार की ठण्ड में बैठा देख सकता था कि उन् तांगे वालों ने  एक एक कोयले के बोरे को बड़े ही करीने से तांगे में सजाया और घोडा तांगा ले चले गए | उनकी मोटर साइकलें भी फर्राटा भरती हुई आगे निकल गयी | मामले का पटाक्षेप हो गया |

करीब घंटे भर बाद मैं सड़क की ओर लौटा तो मैंने पाया कि वो पत्थर जो हादसे का कारण बना था अभी भी जस का तस सड़क के बीच पड़ा है | हाँ , उन नामुरादों ने दो तीन और पत्थर भी इधर उधर से लाके तांगे के पहिये रोकने को इस्तेमाल में लिए थे , वो भी बीच सड़क पर धर छोड़े थे |
मतलब , वो लोग पहले से भी बड़े हादसे का जखीरा उस तीव्र ढलान वाली चिकनी  सड़क पर छोड़ गए थे !

पिछली रात के तूफ़ान में सड़क के किनारे लगा समाजवादी नेता का होर्डिंग जगह जगह से फट गया था और उसकी हाथ जोड़ती तस्वीर हवा के साथ हिल रही थी | होर्डिंग के ऊपर से गुजरती हवा "समाजवाद जिंदाबाद , अम्बेडकरवाद जिंदाबाद "  को छू छू कर जा रही थी |

मतलब  ये कि हिंदुस्तान में तले से लेकर ऊपर तक आदमी एक ही भाव से जीता है , " अपना काम बनता ,भाड़ में जाए जनता "
 पीड़ित और बेचारा वो ही है जिसके पांसे सही नहीं पड़ते | मैटिरियल सेम ही है !

                                                                                 सचिन कुमार गुर्जर
                                                                                  ३ जून 2018





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें -

अच्छा और हम्म

" सुनते हो , गाँव के घर में मार्बल पत्थर लगवाया जा रहा है , पता भी है तुम्हे ? " स्त्री के स्वर में रोष था |  "अच्छा " प...