मंगलवार, 24 मई 2016

पहाड़ की चिंता


कॉलेज की छुट्टियों में मैँ गाँव लौट रहा था ।
पौड़ी कस्बे से मैदान की ओर निकलने वाली रोड के जीप अड्डे पर ड्राइवर हाँक मार रहा था " देहरादून , देवप्रयाग , देहरादून "
 मुझे देख बोला " आओ , भाई जी , गाडी लगभग फुल है । बस पाँच मिनट में निकल लेंगे । "
 उसकी जीप की छत सामान से लधपध् भरी हुई थी , बस आगे में लिखा हुआ ही दीख पड़ता था । लिखा था "जय डांडा नागराजा " । शायद ड्राइवर का कुलदेवता रहा होगा, कृपा बनी रहे , ऐसी इच्छा लिए ड्राइवर ने लिखाया होगा  ।

"नहीं  भैय्या , मुझे फ्रंट सीट ही चाहिए , जो आपकी गाडी में फुल है " मैंने जबाब दिया । पहाड़ की घुमावदार सड़कों पे घिन्नी से बचने को मैं हमेशा आगे की सीट पर सफर करता था  , चाहे गाडी पकड़ने में कितनी भी देर क्यों ना हो जाए ।
बिजली सी फुर्ती दिखाते हुए ड्राईवर ने मेरे लिए आगे की सीट खाली करवा दी थी ।

"चम चमकी , चम चमकी घाम काण्ठि मा । हिमाली काठी चांदी की बनी गैनी । "
" आहा , नरेंद्र सिंह नेगी !" जीप के सस्ते म्यूजिक प्लेयर में बजते गढ़वाली गाने को सुन मैंने बोला था ।
"हाँ , सही पहचाना भाई जी ।" ड्राइवर ने मोड़ पे जीप घुमाने के बाद बोला था ।

"नरेंद्र सिंह नेगी तो मोहम्मद रफ़ी हुए पहाड़ के ! पहाड़ के लिए बड़ा योगदान है इनका । है कि नहीं ? " अपने कच्चे ज्ञान के बाबजूद मैँ बोल पड़ा था ।

" पहाड़ में बचा  ही क्या है , बस ऐसे  ही  कुछ जनूनी लोग है जो अपना पहाड़ बचाने की जद्दोजहद में है । "बगल में बैठे मास्टर साब चिंतित से बोले थे ।

"हम्म " इतना भर कहा था मैंने , जो वार्तालाप को जारी रखने को काफी था ।

"पहाड़ का कल्चर तो खत्म ही हो चला है जी । पहाड़ में अब वो ही रुका है जो मज़बूर है , या बूढा है, या कतई नकारा है । " अपने अनुभव से बोले थे मास्टर साहब ।

" या फिर जो सरकारी मास्टर है , क्यों मैथानी साहब ? " ड्राइवर ने परिचित मास्टर साब पे तंज कसते हुए बोला  ।
"आपके देहरादून वाले मकान का क्या हुआ मास्टर साब ? अब तक तो  पूरा हो जाना चाहिए था । " ड्राइवर ने बात को आगे बढ़ाया ।

" हाँ भुला(छोटा भाई ) , तैयार ही समझो , बड़े बेटे की नौकरी दिल्ली में है । दिवाली पे छुट्टी आएगा , गृह प्रवेश तभी होगा !" मास्टर साब उत्साहित से बोले । उनकी आँखे बेहतर, सुविधाजनक और रुतबे वाले जीवन की शुरुआत को लेकर चमक उठी थी ।

"मतलब आप सपरिवार दिवाली  बाद देहरादून शिफ्ट हो लेंगे ।"
"बहुत सही मैथानी साब ! आप बड़ी किस्मत वाले ठैहरे । बच्चे आपके बहुत ही होनहार निकले  ! " ड्राइवर लगभग कायल हो गया था ।  

मास्टर साब रास्ते में अपने स्कूल के सामने जीप से उतर गए तो पिछली सीट पर बैठा एक अधेड़ सा , कम पढ़ा लिखा ठेठ पहाड़ी व्यक्ति , जो पिछले तीन  घंटे के सफर में एक लफ्ज़ ना बोला था , बोल पड़ा "चिंता सबको है पहाड़ की , पर बसना सबने देहरादून  ही है !"

देहरादून जीप अड्डे पर  गाना बज रहा था "मेरी  जन्मभूमि मेरो पहाड़, गंगा जमुना अखि , बद्री केदार।  "

 मैंने पाया कि बड़े बड़े झुंड़ो में लोग पहाड़ से अपना सब लोहा कांठ समेटे  जीपों , छोटी बसों से उतर रहे थे ।  उनमे हर किसी का दिल पहाड़ के लिए धड़क रहा  था , उनमे हर कोई पहाड़ के लिए चिंतित था ! 
पहाड़ की चिंता लिए उन लोगो में से शायद ही कोई वापस पहाड़ लौटे ।स्वेच्छा से भी नहीं ! 
                                                                                         ---सचिन कुमार गुर्जर



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