रविवार, 16 फ़रवरी 2025

लास्ट एटेम्पट

एक वो पालतू कुत्ता होता है न , जो मालिक के हाथ में जंजीर होने तक पूरी दुनिया पर भौकता है और जंजीर खोल देने पर दुम  दबा के  घर में घुस जाता है , कुछ वैसे ही हालत हो गयी थी मेरी , जब माँ ने कहाँ " तुझे गोबर कूड़ा ,खेत क्यारी करने वाली ना  चाहिए ,तो जा देख लूंगी मैं बिरादरी कू , तू  लाके दिखा मुझे किसी भी जात की  कोई सेहरी मैडम !""इतना जरूर करिये कि सुन्दर इत्ती होय , कि कोई कुछ बोले कि तेरे जाये ने बिरादरी से बाहर रिश्ता कैसे कर कर लिया तो मैं सेरदिल होके मुँहनोंच लूँ उसका !"  


मैं उन दिनों 'ऑय बी ऍम'  गुडगाँव में चाकरी करता था | ऑफिस की लिफ्ट लॉबी में देखा था मैंने उसे पहली बार | आँचल नाम था उसका | साँवले रंग की साढ़े पांच फुट की लड़की थी | शरीर इतना भरा पूरा था कि कहीं भी हाथ मारो तो किलो ढेड़ किलो गोश्त हाथ में आये |' सुशील, शर्मीली |  बच्चों के चेहरे पे जो मासूमियत होती है न ऐसी मासूम |"

एक दिन हम एलीवेटर में अकेले थे ,सो मैंने मौका भाप उससे कहा " ये जो तुम्हारे आशीष त्यागी सर है न , ये स्कूल में मेरी कॉपी से टीप मारा करते थे !"

"व्हाट !!" वो सकपका गयी | चेहरा लाल हो गया उसका | 

मैंने कहा " जोक्स अपार्ट , हम क्लास फेलो रहे हैं | "

और अगली शाम वो मेरे साथ चाय पर आ गयी | 

हमने एक दूसरे के परिवारों को जाना | उसने पूछा कि आपकी हॉबी क्या है तो मैंने कहा " टॉकिंग टू फ्रेंड्स एंड रीडिंग न्यूसपेपर !!!"

यहाँ तक सब कुछ रटा रटाया ही था | अचानक उसने पैतरा बदला, चाय का कप किनारे किया और बोली " तुम शादी के बाद भी गांव में ही रहना पसंद करोगे या शहर में ?"

मेरा प्रारब्ध जोर मार रहा था , मैं इमोशनल हो बोला " गाँव छोड़ने का सवाल ही नहीं | कुछ पैसे हो जाए तो मैं गाँव से अलग मचान बनाकर रहना चाहूंगा |  "

"मचान , यू मीन ट्री हाउस ?" वो एकटक मुझे देखती रही | उस पल में उसने मेरी आखों के रास्ते जाकर मेरी आत्मा को पढ़ लिया था | 

मैं भी भांप गया था सो मैंने डैमेज कण्ट्रोल को कहा " सॉरी , मैं थोड़ा गावड़ू किस्म का हूँ !"

"व्हाट इस गावड़ू ! " 

"मेरा मतलब है , गाँव देहात से जुड़ा आदमी "

 "ओह , कूल " उसने ठन्डे लहजे में कहा |  उसके व्यवहार में आये ठण्डेपन को मै भाप चुका  था | 

जब वो वापस वर्क फ्लोर जा रही थी तो मैंने उसे रोका " सुनो , आशीष सर से कुछ मत कहना , मैंने मज़ाक में कहा था , उन्होंने कभी मेरी कॉपी से नहीं टीपा !"

उसने फेक प्लास्टिक स्माइल दी , मुझे एक बार फिर से नीचे से ऊपर तक निहारा और बोली " इस बात को अगर तुम  ना भी कहते , तब भी मैं समझ ही गयी थी !"

और उस रात मैंने माँ से फ़ोन पर कहीं  से भी बिहा करा देनी की रजामंदी दे दी |   


गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

प्यार का फाख्ता

 

रुतबा ऐसा था उसका कि जब वो गर्ल्स हॉस्टल से 'इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन ' डिपार्टमेंट में अपने क्लास रूम के लिए चलती तो चार पाँच सिपाही लड़कियों की टुकड़ी हमेशा चलती उसके साथ | कैंपस के बॉयज हॉस्टल के उसकी क्लास के दो तीन अर्बन , स्मार्ट, लड़कियों की तरह मुलायम लड़के उसके 'अनटूराज' से जुड़ते और फिर ये काफिला हमारे हॉस्टल के सामने से गुजरता |  


हमारे हॉस्टल के बगल में एक छोटे  से टीले पर चाय की एक टपरी हुआ करती थी , जिसके बाहर सीमेंट की एक कामचलाऊ पटरी बनी थी | ठीक वहाँ मैं एक हाथ में चाय का गिलास, दूसरे में मटरी का चूहे-कुतरा टुकड़ा लिए बैठा होता |   

सीना जरूर सपाट था उसका ,पर नैन नक्श इस कदर रौबीले थे कि पटरी पर बैठे , खुद को अल्फा मेल नापते लड़के सड़क के कोने आ खड़े होते | कुछ ऐसे जैसे सड़क के किनारे फड़ पर लगे सस्ते कपडे , के छाँट लो जो अच्छा लगे |  सफ़ेद झक रंग था उसका , इंदिरा गांधी कट बाल रखती थी | बटुए जैसा छोटा मुँह  | हंसती तो अनारदाने से छोटे दांतो की लड़ी दिखती | नाक रोमन , ऐसी जैसी कॉकेशियन लड़कियों की होती है | और मैं इस कदर जानता था उसे  कि उसकी बालिश भर लम्बी गर्दन से होती हुए गालों पे   खत्म होती धमनियों को ऊँगली पे गिन सकता था | 

कायर का मन फैंटसी में बसता है | ये उसका एक तरह से सच्चाई से एस्केप करने का तरीका होता है | मैं सोचता कि काश ऐसा हो कि इस साल मैं कंप्यूटर डिपार्टमेंट का टॉपर हो जाऊँ , फिर आसान हो जायेगा | या ऐसा हो कि कॉलेज के एनुअल फंक्शन 'गूँज ' में मैं कुछ ऐसा गा दूँ कि वो मेरी फैन हो जाये | कुछ इस तरह बसर हो रही थी अपनी जिंदगी उन दिनों | 

फिर एक बार ऐसा हुआ कि पता लगा कि किसी कल्चरल फेस्ट  की तैयारी के लिए सभी ब्रांच के लड़के लड़कियाँ  लंच के बाद किसी क्लास रूम में जमा होते हैं  | मैं रुक पाता भला ? काश मैं रुक गया होता !

उस दिन क्लास रूम में बमुश्किल बारह पंद्रह लड़के लड़कियाँ जमा थे | कुछ कुर्ता पायजामा छाप  , कम्युनिस्ट से दिखने वाले लड़के बोर्ड के नीचे स्किड की प्रैक्टिस कर रहे थे | वह तीन बेंच छोड़ चौथी बैंच के कोने में बैठी थी | अकेले | 

मैं तीन बैंच औऱ भी पीछे जा इस कोण के साथ बैठा कि जहाँ से वो तो मुझे पूरी दिखे पर मैं उसकी दृष्टि में न आऊं | दोपहर के भोजन के बाद सब उबासे थे | 

अचानक ,उसने जोर की जम्भाई ली | फिर अपने दाएं हाथ की तर्जनी को नाक के बाएं नथुने में वहाँ तक घुसेड़ा , जहाँ तक ऊँगली जा सकती थी | फिर घुमाती गई , घुमाती ही गयी | क्लॉक वाइज , एंटी क्लॉक वाइज !क्लॉक वाइज , एंटी क्लॉक वाइज !

जब तर्जनी बाहर आई तो उसके सिरे पर एक मोटा चूहा विराजमान था | उसने उस चूहे को हिकारत से देखा | फिर तर्जनी और अंगुष्ट के बीच कुछ ऐसे भाव से दबा दिया जैसे उसे बड़े गुनाह की सजा देती हो | 

क्लॉक वाइज , एंटी क्लॉक वाइज ! क्लॉक वाइज , एंटी क्लॉक वाइज ! उसकीऊँगली व् अंगूठा  उस चूहे को दलते  ही गये   , दलते ही गए  | और तब तक दलते गए , जब तक उस बेचारे ने ठोस , मटमैली गेंद का आकार ना ले लिया | 

इस क्रिया के बाद उसने सरसरी निगाह से चूहे का मुआयना किया | फिर बड़ी फुर्ती से उसे घुमा तर्जनी के नाखून पर ले आयी | अँगुली पर अंगूठे की कमान चढ़ाई और धड़ाककक  ! क्लास रूम की रंग छोड़ती दीवार पर चूहा कुछ देर जमा रहा | फिर धीमे से धरती के गुरुत्वाकर्षण के चलते फर्श पर लुढ़क गया | 

और उस लम्हे में , ठीक उस लम्हे में मेरे प्यार का फाख्ता उड़ गया ! और ऐसा उड़ा गया ,कि कभी वापस नहीं  लौटा | 

                                                             सचिन कुमार गुर्जर   

                                                              सिंगापुर द्वीप 

                                                               

शनिवार, 18 जनवरी 2025

इमोशनल फूल

 बात नाश्ते में मिलने वाले कीड़े वाले दलिए से ज्यादा ब्रदरहुड की थी | बिगुल था कि हड़ताल होगी ! किसी ने कहा कि रुद्रपुर में विद्रोह हुआ , सफल रहा | किसी ने कहा कि वादा रहा ,चिंगारी में छप के रहेगा | किसी ने कहा कि कलट्टर से जान पहचान है , स्कूल प्रशासन की चूलें हिलेंगी | देखना | 

वे जो दिखा रहे थे , छपा रहे थे , चूलें हिला रहे थे , वे  ही किरतपुर की हडताल के अगुवाई थे | 

पी टी सर ने एक एक को तोड़ने के लिए अलग अलग में काउंसलिंग की |  "कितनी जमीन है ? " मेरे से कहा | 

"एकड़ भर" मैंने कहा | 

"गैय्या चराओगे जीवन भर।सोच लो | "

"सोच लिया सर !" मेरी  टाँगे और आवाज़ दोनों में कम्पन था | चेहरा लाल था | साँस धोकनी सी चलती थी | 

डॉर्मेटोरी में हमने एक एक दूसरे के हाथ थामे | जो पहले नौकरी लगा वो दूसरो को आश्रय देगा ,ऐसे वादे हुए | और हम सामान उठा गेट से बाहर आ गए | दर्जन भर ही होंगे | 

और फिर हमने देखा | बड़े गेट के झरोखो से देखा| देखा कि जो अगुवाई थे वे नल के आगे कतार लगा अभी तक अपनी चार खानो वाली प्लेट से नाश्ते की कुतरने खोद कर खा रहे थे | 

उस दिन , ठीक उस दिन हमने जाना कि गेट के उस पार वाले लोग बहुत आगे जायेंगे | और वे गए | हमारा गर्व हैं | 

और हम ? हम आज भी किसी रैंडम सी इमोशनल रील पर टेसू बहा देते है !  आज प्रौढ़ावस्था में भी सोचते हैं कि उस दौर में  इंट्रोवर्ट न होते और किसी से कुछ कह दिए होते तो क्या वो मान गयी होती !


गुरुवार, 9 जनवरी 2025

अंग्रेजी

मित्रों, जिन्दगी मे तीर मारे हो या ना मारे हो, इंग्लिश मीडियम स्कूल मे पढ़ने की वजह से अपना बचपन मे रुतबा तो रहा l मुझे अच्छे से याद है जब नवोदय स्कूल से एक बार छुट्टी मे लौटकर मैंने जंगलपानी को ‘टॉयलेट्‘ कह कर सम्बोधित किया था l पिता जी ने सही से समझने क़े लिये दोबारा कहलवाया l शाम को बैठक मे उन्होंने हुक्के की चौकड़ी क़े बीच ऐलान किया कि जिस बालक ने अंग्रेजी पकड़ लीं,. समझ लो उसका जीवन सुधऱ गया l पिता जी क़ी बात मैने गांठ बाँध लीं l मैंने हमेशा अंग्रेजी ही पकड़ी l कच्ची को हाथ नहीं लगाया l
सचिन कुमार गुर्जर, सिंगापुर

लास्ट एटेम्पट

एक वो पालतू कुत्ता होता है न , जो मालिक के हाथ में जंजीर होने तक पूरी दुनिया पर भौकता है और जंजीर खोल देने पर दुम  दबा के  घर में घुस जाता ह...