बात नाश्ते में मिलने वाले कीड़े वाले दलिए से ज्यादा ब्रदरहुड की थी | बिगुल था कि हड़ताल होगी ! किसी ने कहा कि रुद्रपुर में विद्रोह हुआ , सफल रहा | किसी ने कहा कि वादा रहा ,चिंगारी में छप के रहेगा | किसी ने कहा कि कलट्टर से जान पहचान है , स्कूल प्रशासन की चूलें हिलेंगी | देखना |
वे जो दिखा रहे थे , छपा रहे थे , चूलें हिला रहे थे , वे ही किरतपुर की हडताल के अगुवाई थे |
पी टी सर ने एक एक को तोड़ने के लिए अलग अलग में काउंसलिंग की | "कितनी जमीन है ? " मेरे से कहा |
"एकड़ भर" मैंने कहा |
"गैय्या चराओगे जीवन भर।सोच लो | "
"सोच लिया सर !" मेरी टाँगे और आवाज़ दोनों में कम्पन था | चेहरा लाल था | साँस धोकनी सी चलती थी |
डॉर्मेटोरी में हमने एक एक दूसरे के हाथ थामे | जो पहले नौकरी लगा वो दूसरो को आश्रय देगा ,ऐसे वादे हुए | और हम सामान उठा गेट से बाहर आ गए | दर्जन भर ही होंगे |
और फिर हमने देखा | बड़े गेट के झरोखो से देखा| देखा कि जो अगुवाई थे वे नल के आगे कतार लगा अभी तक अपनी चार खानो वाली प्लेट से नाश्ते की कुतरने खोद कर खा रहे थे |
उस दिन , ठीक उस दिन हमने जाना कि गेट के उस पार वाले लोग बहुत आगे जायेंगे | और वे गए | हमारा गर्व हैं |
और हम ? हम आज भी किसी रैंडम सी इमोशनल रील पर टेसू बहा देते है ! आज प्रौढ़ावस्था में भी सोचते हैं कि उस दौर में इंट्रोवर्ट न होते और किसी से कुछ कह दिए होते तो क्या वो मान गयी होती !
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