एक वो पालतू कुत्ता होता है ना , जो मालिक के हाथ में जंजीर होने तक पूरी दुनिया पर भौंकता है और जंजीर खोल देने पर दुम दबा के घर में घुस जाता है , कुछ वैसी ही हालत हो गयी थी मेरी , जब माँ ने कहाँ " तुझे खेत क्यारी करने वाली ना चाहिए ,तो जा देख लेंगे बिरादरी कू| तू लाके दिखा मुझे किसी भी जात की कोई सहरी मैडम ! हाँ इतना जरूर करिये कि सुगढ़ इत्ती होय , कि कोई कुछ बोले कि तेरे जाये ने बिरादरी से बाहर रिश्ता कैसे कर कर लिया तो मैं सेरदिल होके मुँहनोंच लूँ उसका !"
बड़ी ही विकट स्थिति से सामना हो गया | मज़ाक होता तो चलता | लेकिन मैं जो साल दो साल से सभी निकट सम्बधियों के सामने आग फूंक रहा था , उसका क्या | जवान था , गर्मजोश | इंकलाब मेरी नस नस से फूटता था | समाज में फैली दकियानूसी को धुआँ धुआँ होना ही होगा और मैं उस चिंगारी को पैदा करने में मेरा भी अहम किरदार होगा | ऐसा मेरा अरमान था |
उन दिनों मैं गुडगाँव की एक मल्टीनेशनल कंपनी में मुलाजिम हुआ करता था | ऑफिस की लिफ्ट लॉबी में देखा था मैंने उसे पहली बार | साँवले रंग की साढ़े पांच फुट की लड़की थी | शरीर इतना भरा पूरा था कि कहीं भी हाथ मारो तो किलो ढेड़ किलो गोश्त हाथ में आये |' सुशील, शर्मीली | बच्चों के चेहरे पे जो मासूमियत होती है न ऐसी मासूम |"
एक दिन हम एलीवेटर में अकेले थे ,सो मैंने मौका भाप उससे कहा " ये जो तुम्हारे रागी सर है न , ये स्कूल में मेरी कॉपी से टीप मारा करते थे !"
"व्हाट !!" वो सकपका गयी | चेहरा लाल हो गया उसका |
मैंने कहा " जोक्स अपार्ट , हम क्लास फेलो रहे हैं | "
और अगली शाम वो मेरे साथ चाय पर आ गयी |
हमने एक दूसरे के परिवारों को जाना | उसने पूछा कि आपकी हॉबी क्या है तो मैंने कहा " टॉकिंग टू फ्रेंड्स एंड रीडिंग न्यूज़पेपर !!!"
यहाँ तक सब कुछ रटा रटाया ही था | अचानक उसने पैतरा बदला, चाय का कप किनारे किया और बोली " तुम शादी के बाद भी गांव में ही रहना पसंद करोगे या शहर में ?"
मेरा प्रारब्ध जोर मार रहा था , मैं इमोशनल हो बोला " गाँव छोड़ने का सवाल ही नहीं | कुछ पैसे हो जाए तो मैं गाँव से अलग मचान बनाकर रहना चाहूंगा | "
"मचान , यू मीन ट्री हाउस ?" वो एकटक मुझे देखती रही | उस पल में उसने मेरी आखों के रास्ते जाकर मेरी आत्मा को पढ़ लिया था |
मैं भी भांप गया था सो मैंने डैमेज कण्ट्रोल को कहा " सॉरी , मैं थोड़ा गावड़ू किस्म का हूँ !"
"व्हाट इस गावड़ू ! "
"मेरा मतलब है , गाँव देहात से जुड़ा आदमी | "
"ओह , कूल ! " उसने ठन्डे लहजे में कहा | उसके व्यवहार में आये ठण्डेपन को मै भाप चुका था |
जब वह वापस वर्क फ्लोर जा रही थी तो मैंने उसे रोका " सुनो ,रागी सर से कुछ मत कहना , मैंने मज़ाक में कहा था , उन्होंने कभी मेरी कॉपी से नहीं टीपा !"
उसने प्लास्टिक स्माइल दी , मुझे एक बार फिर से नीचे से ऊपर तक निहारा और बोली " समझ गयी !"
और उस रात मैंने माँ से फ़ोन पर कहीं से भी बिहा करा देनी की रजामंदी दे दी |
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