सोमवार, 9 सितंबर 2024

बीवी खोलने का औजार

 "पेनाडोल " चाइना टाउन ट्रेन स्टेशन से फर्लांग भर की दूरी पर बने बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर के फार्मेसी सेक्शन में बैंठी फार्मासिस्ट से मैंने इतना भर पूछा | और जबाब में उसने दायाँ हाथ हवा में उठाया , एक आधा चंदा  बनाया , उसके बाद फिर दूसरा आधा चंदा  | माने , दो सेल्फ लेन कूद कर तीसरी में चले जाओ |मुझे  कोई 'लो डोज़' , जेनेरिक सी टेबलेट का छोटे से छोटा पैकेट चाहिए था | बताये गए सेल्फ में सब जम्बो पैक ही दिखे सो मैं खुद ही घूम कर दूसरे सेल्फ देखने लगा |  दो बार चक्कर काट जब मैं तीसरी मर्तबा फार्मासिस्ट के आगे से गुजरा तो वह अपनी चेयर छोड़ मेरे पास चली आयी |फिलीपीन्स मूल की महिला थी | छोटा  कद ,  मोटा चश्मा , पीत वर्ण | हाथ पैर गूदेदार थे | पचपन से साठ के बीच की रही होगी | 

"तुम्हे पेनाडोल ही चाहिए न या कुछ और ?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा | 

"नहीं , कुछ और तो नहीं | चाहिए होगा तो मैं मांग लूँगा " मैंने विनम्रता से जबाब दिया | 

मुझे उसका इस तरह से 'कुछ और' पूछना थोड़ा अजीब लगा था | और उस अजीब लगने की फीलिंग को वह अनुभवी महिला शायद समझ गयी | 

समझाने लगी : "स्टोर में तरह तरह के कस्टमर आते है | बहुत से टूरिस्ट होते है | टूरिस्ट जो अपनी बात कह नहीं पाते | "

" मैं समझ सकता हूँ |  मुझे कम्युनिकेशन  का ऐसा कोई प्रॉब्लम नहीं है |" मैंने नरमी के साथ कहा | 

 लेकिन उसके पास इससे भी आगे बताने को था | 

बोली " अभी पिछले हफ्ते एक टूरिस्ट आया था | किसी अरबी देश का था |  कहने लगा , उसे इंस्टूमेंट चाहिए | 

मैंने कहा , इंस्टूमेंट के लिए 'टूल्स एंड हार्डवेयर' सेक्शन में चला जाए | 

वह  थोड़ा परेशान हो बोला  "नो नो , नॉट दैट वन | "

फिर मेरे पास आकर फुसफसाया "एक्चुअली आय नीड इंस्ट्रूमेंट टू ओपन माय वाइफ !" 

मैंने इतने साल से कितने लोगो को सुना है , समझा है | पर उसकी बात सुनकर मैं चकरा ही गयी | 

और मैंने धीरे से एक एक शब्द साफ साफ़ बोल उसे समझाया : "सॉरी , हमारे यहाँ ऐसा कोई इंस्टूमेंट नहीं है | "

टूरिस्ट अचंभित हुआ | कहने लगा "स्ट्रेंज , हाउ कम यू डोंट हैव | इन माय कंट्री आल बिग , आल स्माल शॉप्स हैव | "

मैंने कहा " सॉरी , हमारे यहाँ क्या , पूरे सिंगापुर के किसी भी स्टोर में ऐसा कोई इंस्टूमेंट नहीं है |"

हैरत से बड़ी बड़ी आँखे ले वह झुंझला कर आगे बढ़ गया | 

स्टोर के कोने में एक बूढा , मलय मूल का क्लीनर पोंछा लगा रहा था  | टूरिस्ट उसके पास गया और कुछ समझाने लगा | मैं उनकी खुसपुसाहट नहीं सुन सकती थी | लेकिन जब क्लीनर ने अति उत्साह में हवा में हाथ उठाकर कहा "हनीमून हनीमून!"  , तब जाकर मैं अरबी नवयुवक की जरूरत को समझ पायी |  और तब मैंने उसे सही सेल्फ की तरफ इशारे से भेजा | 

ठहाका लगाकर जब हमने साँस ली तो मैंने कहा " लैंग्वेज बैरियर , यू  नो |"

पर बूढी फार्मासिस्ट की राय थोड़ी अलहदा थी | 

कहने लगी " कई बार चीनी टूरिस्ट भी आते है | उन्हें लैंग्वेज का कोई बैरियर नहीं |  पिछले दिनों एक मेन लैंड चाइना का कोई टूरिस्ट था | कहने लगा " ग्लब्स चाहिए | आज ही की तरह उस दिन असिस्टेंट स्टोर में नहीं था , लिहाजा मैं ही सीढ़ी लगाकर सेनेटरी ग्लब्स उतारने लगी | 

उस टूरिस्ट ने देखा तो बोला , "नहीं नहीं ,ये वाले नहीं | "

"बाथरूम ग्लब्स !"

मैंने समझाया , ये मल्टीपर्पज़ हैं |  कुछ चुनिंदा ब्रांड चाहिए तो बताये | या फिर हाई क्वालिटी मेडिकल क्लास ग्लब्स दे दूँ ?

वह  झुंझला गया।  मैंडरिन में बोला " नहीं नहीं ये वाले नहीं चाहिए , प्राइवेट ग्लब्स चाहिए|  "

प्राइवेट ग्लब्स ! माय गॉड ! तब जाकर मैं समझी | और मैंने उसे सही सेल्फ पर भेजा | "

बिलिंग काउंटर पर खड़ा मैं सोच रहा था कि कुछ बातें ऐसी है जिन्हें पूरी जानती है , समझती है , पर लोगों को ऐसे हास्यास्पद छदम शब्द क्यों इस्तेमाल करने पड़ते है | 

पेनाडोल का पत्ता कैशियर की ओर बढ़ाते हुए मैं इस दुविधा में था कि दवा लूँ या न लूँ | फार्मासिस्ट की बातों से ही मेरा  सिरदर्द रफूचक्कर हो चुका था |  


                                                        - सचिन कुमार गुर्जर 

                                                            सितम्बर ९, २०२४ , सिंगापुर द्वीप 


सोमवार, 17 जून 2024

सुकून का आखिरी दिन



आप अपने जीवन से संतुष्ट थे | अपनी औकात से वाकिफ | क्या साध्य है क्या आसाध्य इससे परिचित | इच्छाएं तिलांजित किये हुए | 

फिर कोई मिल गया | चढ़ते सूरज के साथ नहीं मिला | तब मिला जब सूरज दोपहर के बाद ढलान पर था |   वो मिला तो उसने बड़े प्यार से कहा "आप  बुद्दू हो , एकदम पागल |आपको  पता ही नहीं रहा कि आप  क्या हो | क्या डिसर्व  करते हो| "

उसकी बात आपको  जँची | थेरेपिस्ट , लाइफ कोच आपको समझाते रहे | सालो साल समझाते रहे | सेल्फ एस्टीम , सेल्फ बिलीफ , पॉजिटिव अफर्मेशन वगैरह वगैरह | पर आप हमेशा अपने को कम आंकते रहे | सबसे मृदुल रहे पर खुद को हमेशा कठोर नज़र से देखा | किसी की बात आपको मुतमईन न कर सकी | 

पर उसकी बात आपको जँची !

ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर का हिसाब लिया जाने लगा | आप फ़ोन ना करो तो सामने वाला परेशां होता |  शिकायतों का अम्बार  लगता | आप असहज होते |  वो यूँ कि आपको इस कदर देखभाल की आदत कहाँ रही | एक माँ और नानी के अलावा  आपको कब किसने पुचकारा  | हाँसिये पर लटके जीने की आपकी आदत रही | बेगौरी में पला ,कतार  में खड़ा आखिरी आदमी | जिसने होने न होने से किसी को कोई फर्क नहीं  पड़ता | पर उसने आपको एहसास कराया के  जैसे आप कोई बेशकीमती नगीना हैं  , जिस पर नज़र रखना बेहद जरूरी है | पहली बार आपने उसकी नज़रो में , उसकी आवाज़ में,  आपको खो देने का डर देखा | 


और फिर आप बह गए | इस कदर बहे कि कह बैठे "सुनो ,  तुम्हारे बिना रह नहीं सकता  |प्यार  है तुमसे , बेहद प्यार  !"

बस वो दिन आपकी जिंदगी के सुकून का आखिरी दिन था !

शुक्रवार, 10 मई 2024

शुक्रवार की शाम

 


शुक्रवार की शाम का अपना एक दबाव  होता है | दबाव यह कि शाम जाया नहीं होनी चाहिये | और इसी के मद्देनज़र मैंने दो तीन दोस्तों को संदेशा भेजा है कि शाम को मिला जाए | ऑफिस की सीढियाँ उतरते हुए सोच रहा हूँ कि पी जाए या न पी जाये | 

अकेले पीने का कोई मूड नहीं है | बिना संगत पीना भी कोई पीना है  |फिर अभी पिछले हफ्ते अपने गृह प्रवास के दौरान मैंने ठीक ठाक मात्रा में 'ब्लैक डॉग' और  '१०० पाइपर्स' धकेली है |  हाँ या ना , बस इसी ऊहापोह  में रिवर फ्रंट की तरफ बढ़ा चला जा रहा हूँ | 

रैफल्स पैलेस जनपथ के साईडवॉक  पर एक गोरा खड़ा है , उम्र के गुलाबी सालों में है  | दो बीगल्स लिए है  | सफ़ेद , लाल , काले चक्क्ते वाले बीगल्स | उनके कान उनके मुँह से बालिश भर नीचे तक लटके है | 

मुझे बीगल्स औसत ही लगते है | लेकिन ट्रैन स्टेशन से रिवर फ्रंट को आती दो चीनी बालाओ से रहा नहीं जा रहा | "ओह्ह सो क्यूट सो क्यूट !" वे  ख़ुशी से उछल रहीं हैं | उनके दूधिया हाथ तालियाँ बजा रहे है | वैसे ही जैसे छोटे बच्चे अति उत्साह में बजाते हैं  | उनमे से एक गोरे से पूछती है कि क्या वो उन्हें छू ले |  'यस , स्योर ' गोरा इज़ाज़त दे देता है | 

यहाँ मुझमे थोड़ा बहुत कॉग्निटिव बायस हो सकता है  , पर आप शुक्रवार की शाम को, सिंगापुर के रिवरसाइड वाक  पर , कुत्तों के टहलाते जवान गोरे को कामदेव ही समझिये | जहाँ निशाना लगा तीर चला दे ,  बड़ी आसानी से खींच लेगा | सीमलेस , एफर्टलेस    ! 

सोच रहा हूँ , आदमी अगर सही जगह, सही जीन पूल में  पैदा हो जाये तो सब कुछ कितना सहज हो जाता है | कम से कम भौतिक स्तर पर तो हो ही जाता है |इसके इतर मेरे जंगल के आदमी को सब कुछ कमाना  होता है| नौकरी,  घर , गृहस्थ , बच्चो की पढाई , हेल्थ इंसोरेंस , माँ बाप का बुढ़ापा , गाढ़े दिनों के लिए कोई जमीन का एक्स्ट्रा प्लाट , बीवी के गहने और किस्मत हुई तो थोड़ा बहुत प्यार | सब कुछ परिश्रम से ही है | लाइफ अपहिल टास्क मोड में ही रहती है |  

उन कुत्तों से मुझे याद पड़ा है कि कॉर्पोरेट ऑफिस का पट्टा अभी तक मेरे गले में लटका हुआ है | मैं झुंझला कर उसे लैपटॉप बैग की साइड पॉकेट में सहेज रहा हूँ | मुझे कुत्ता होना मंजूर नहीं  | 

सच्ची? नहीं, मेरा मतलब है , ऐसा कुत्ता होना मंजूर नहीं जिसे घडी घडी दुत्कारा जाए | ऐसा नहीं, जिसकी दुम हमेशा मारे डर पिछवाड़ा ही ढाँपती  रहे | 

हाँ , ऐसा कुत्ता होने में मुझे कोई गुरेज नहीं जिसके गालों पर कोई हलकी सी थपकी देकर कहे "सो क्यूट !"

उम्र के साथ मुझमे सब कुछ सिकुड़ रहा है  | सिवाय मेरी नाक के | एक नाक है जो दिन प्रतिदिन , इंच दर इंच बढ़ती जा रही है | 

 फिलहाल ये नाक नदी किनारे कतारबद्ध बने रेस्टोरेंट्स के किचनस  तक जा रही है  | चिकन  विंग्स , चिकेन ब्रैस्ट स्ट्राइप्स विथ सोया सॉस, ग्रिल्ड सैमन , डीप फ्राइड प्रॉन , टर्टल सूप , रोस्टेड गूस , पैन स्टिर लॉबस्टर , ग्रेवी क्रैब | एक से एक एक्सोटिक फ़ूड आइटम्स | मेरे नथुने फूल रहे है | गला जेठ की दुपहरी में दरकी जमीन सा बिलबिला रहा है | पेट में ऐठन हैं | कॉर्टिलेस  की कमी से हर कदम के साथ घुटनों से टक टक की आवाज़ आ रही है | 

एक,  दो,  तीन,  चार, और  पांच | पाँचवे ओपन एरिया रेस्टोरेंट तक पहुंचते पहुंचते मेरे घुटने जबाब दे गए है |    

और सूखे गले से , नवयौवना वियतनामी वेट्रेस से मैं बमुश्किल इतना भर कह पाया हूँ  " वन कार्ल्सबर्ग प्लीज !" 


शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

श्रद्धा भाव


 

सिंगापुर सुविधाओं , व्यवस्थाओं का शहर है | सरकार आमजन की छोटी छोटी जरूरतों का ख्याल रखती है | फेरिस्त लम्बी है , हम और आप महीनो जिक्र कर सकते हैं | एक छोटी सी पर हर कम्युनिटी पार्क में दिखने वाली  व्यवस्था है , एक्यूप्रेशर बेल्ट | 

फ्लॉवर बेड के सहारे या ग्रास लॉन के किनारे आठ दस  मीटर की संकरी कंक्रीट फ्लोर होती है | जिस पर नुकीले पैबल्स को बड़ी सघन बसाबट में जमा दिया जाता है | किनारे से , चलते हुए सहारा लेने के लिए  पॉलिशड स्टील की रेलिंग गाढ़ दी जाती है | मान्यता ही है या विज्ञान भी , मुझे नहीं पता , पर ऐसा बोला जाता है कि इस तरह की एक्यूप्रेशर बेल्ट पर सुबह सुबह नंगे पैर चलने से रक्तचाप नियंत्रित होता है | 

मैं सोमवार से शुक्रवार साढ़े आठ बजे उठने को शरीर घसीटता हूँ , लेकिन शनिवार को सात बजे आँख खुल जाती है  | झुंझलाहट होती है , देर  तक सोना चाहता हूँ ,पर ये मेरे बुढ़ाते शरीर की व्यवस्था है | जो है सो है , मॉड में रहकर स्वीकार करता हूँ | 

सुबह मैं कम्युनिटी पार्क के चक्कर काट रहा था तो पाया कि एक अधेड़ भारतीय स्त्री एक्यूप्रेशर बेल्ट के मुहाने पर नंगे पाँव खड़ी है | एक हाथ में ताँवे का लोटा, लोटा जिसकी गर्दन पर मोटा गेरुआ सूती धागा लिपटा था | 

उसने दाए हाथ में लोटा उठाए , एक्यूप्रेशर बेल्ट का एक चक्कर पूरा किया | नुकीले पेवल्स की चुभन से चेहरे पर दर्द उभर आया था | दूसरे सिरे पर पहुंची तो कुछ देर ठिठकी | वापस मुड़ी और फिर उसी दृढ़ता से दूसरा चक्कर पूरा किया | फिर तीसरा और चौथा | 

फिर एक लैम्पपोस्ट के सिरहाने खड़ी हो गयी | चांगी राइज अपार्टमेंट बिल्डिंग के ऊपर सूरज बस ऊगा ही था | उँगलियों के गुलदस्ते में फँसे लौटें को उसने सूरज की ओर उठा दिया | काँपते होठों से कुछ बुबुदाते हुए , उसने लोटे में जमा जल की आखिरी बूंद तक सूर्य को अर्पित की और बड़े तेज कदमों से अपने अपार्टमेंट में लौट गयी | 


दूसरे सिरे पर बनी बेंच पर जम चुका मैं मुस्कुराया तो मेरा दायाँ हाथ अकस्मात आशीर्वाद की मुद्रा में खड़ा हो गया | सूर्य देवता अगर अपने भक्तो पर तबज्जो देते होंगे तो मुस्कुराये वे भी होंगे | अजी ,सुबह उठकर जल चढाने वाले बहुत है | लेकिन पार्क में बनी एक्यूप्रेशर बेल्ट के चार कष्टप्रद  चक्कर काट अर्घ चढाने वाला शायद कोई विरला भी ना हो | 

उस स्त्री के  १० में से १० नंबर बनते है !

                          सचिन कुमार गुर्जर 

                           मेलविल पार्क , सिंगापुर 

                           १६ सितम्बर , २०२३ 

                      

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022

मलाल


 

अभी पिछले दिनों , लंच के बाद कॉर्पोरेट दफ्तरों के गलिहारे में चहलकदमी करते हुए , मैं अपने जीवन के एक  'मलाल' से टकरा गया | 

"अरे तुम , तुम यहाँ कैसे ?" उसने कहा | 

"मैं तो इधर ही जॉब करता हूँ , तुम यहाँ कैसे ? " सवाल के बदले सवाल ही था मेरे पास भी | 

कॉर्पोरट की दुनिया छोटी है | पुराने लोग टकराते रहते है  | वह पास के किसी ऑफिस में क्लाइंट मीटिंग के लिए आयी थी | 

"कितना टाइम हो गया है ना ? याद है तुम्हे ? " उसके शब्दों में गर्माहट कुछ ऐसे थी जैसे हम किसी जमाने में बहुत ही घनिष्ठ रहें हो |  

"शायद दस साल | " एक मोटा अनुमान लगा कर मैंने बोला |  

"दस नहीं बारह साल | "  उसने मुझे ठीक करते हुए कहा | 

हमने पुराने ऑफिस के दो चार साथियों को याद किया | कौन किधर जॉब करता है ,ये सुना, सुनाया | 

"चलो शाम की चाय साथ में पीते है  | तुम हो न अभी इधर?  " मैंने पूछा | 

उसके यूँ अचानक से मिल जाने से  मेरे दिमाग की तह में दफ़न ना जाने कितनी बातें बुलबुलों की तरह फूट फूट कर ऊपर आने लगीं | 

यही कोई चौदह साल पहले जब मैं कामगारों के जहाज में सवार हो सिंगापुर आया था | तभी पहले पहल दर्शन हुआ था  | और दर्शन ऐसा दर्शनीय था कि आदमी भूल नहीं सकता !  शादीशुदा थी | शायद कोई बच्चा नहीं था तब तक | कद औसत भारतीय स्त्री कद से थोड़ा ऊँचा | शरीर भरा हुआ | रंग दूधिया उजला | हँसती या थोड़ा लजाती थी तो एक दम से खून के दौर से गाल लाल हो जाते थे | नाक खड़ी , सुतवा थी | नासिका छिद्र इतने छोटे थे कि देख के अचम्भा होता कि इतने महीन छिद्रो से जीने भर लायक हवा भी कैसे अंदर जाती होगी !पपीहे की तरह छोटी और मीठी आवाज़ थी उसकी | हर बात पर बटन सी गोल, मोटी मोटी  आँखें घुमा कर हँसती थी | ऑफिस के माहौल को  ख़ुशनुमा रखने में अहम किरदार था उसका |  

पर 'मलाल' कैसे ? मैंने कहा ना ,वह  शादीशुदा थी ! खूबसूरत पर शादीशुदा स्त्री हर दूसरे पुरुष के मन में मलाल ही होती है | वो एक मीठा पीठ दर्द होता है ना ,दर्द जिस पर दिन की आपाधापी  में ध्यान नहीं जाता , पर फुर्सत में आदमी जब चित्त हो लेटता है , तब वह एहसास देता है | दर्द ,जो कभी बर्दाश्त के बाहर नहीं जाता  , पर चैन से सोने भी नहीं देता  | एक एहसास कि हम क्या कम थे जो किस्मत ने हमें किसी ऐसे खूबसूरत से महरूम रखा | यह मानवीय स्वभाव का हिस्सा है | हर वह वस्तु या शख्स, जिसके हम तलबगार भी हों और खुद को हक़ के काबिल भी समझें ,ना मिल पाए , तो मलाल ही देती है |  

खैर, हम चाय पर मिले | उसने नेवी ब्लू कलर का ट्रम्पेट स्लीव्स का, घुटनों पर ख़त्म होने वाला फ्रॉक पहना था| | पैरों में ब्राउन कलर के फ्लैट लोफ़र्स पहने हुई थी | हाथ में एप्पल वाच थी , जिसका रिस्ट बैंड सफ़ेद कलर का था | 

"सुनाओ कुछ।, कैसी चल रही है लाइफ ? " चाय की एक चुस्की भर ले उसने कप किनारे खिसका दिया | 

"बस जी | चलना रुकना अपने हाथ में कहाँ  | बस जिंदगी की नदी बही जा रही है | उसमे हम भी बह रहें हैं | "

"तुम बाबाओं जैसी बातें कब से करने लगे !" वह खिलखिला पड़ी | उसके अनारदाने जैसे दाँतो को पंक्तियाँ अभी वैसी ही थी |  

"तुम बूढ़े हो रहे हो , मोटे भी हो गए हो | "उसने थोड़ा फिक्रमंद हो कहा | 

"हाँ जी , देखो ना , मेरी हेयर लाइन कितने ऊपर तक खिसक गयी है| " मैंने उसकी फ़िक्र में जोड़ा |   

 अब वह गुस्सा हो गयी | झूठ मूठ का गुस्सा | कुछ ऐसे ही जैसे कोई प्रेयसी अपने प्रेमी से करती है|   नाक चढ़ा कर बोली " तो क्या , इस उम्र में भी कोई अफेयर करना चाहते हो ?हुह ?  हो गया ना बस | "

वह  जो महसूस कर रही थी , कहती रही थी | कुछ इस सहजता से , जैसे हम बारह साल बाद नहीं बल्कि हफ्ते दो हफ्ते बाद ही मिल रहें हों | 

और मैं ? मैं अपने अंदर एक बबंडर को दबाये बैठा था | समय के साथ उसमे आये बदलाव देख मेरा कलेजा  बैठ गया था | हँसते हुए अब उसके गाल लाल नहीं होते थे | चेहरा बड़ा हो गया था | सिन्दूर लगाने की सीध में फटने वाली बालों की फाँट चौड़ी हो गयी थी | वह निश्चित रूप से घर का कोई भारी काम नहीं करती होगी | नौकरानी होगी घर पर | बाबजूद इसके उसके हाथ उतने कोमल नहीं थे | आंखें जो कभी बात बात पर नाचतीं थीं , आज वे  इस भाव से देखतीं थी, मानों  कहतीं हों कि सब कुछ देख तो लिया | जो जीना था ,जी तो लिया ,अब क्या बचा है  | उसके चेहरे पर दुःख सुख के भाव धूप छाँव से ठहर गए थे |शरीर वैसा ही भारी हो चला था जैसा किसी भी आम अधेड़ गृहणी का होता है |   

"तुम्हे , क्या लगता है , तुममें भी कुछ बदलाव आएं है ? " मैंने चाय का एक घूँट ले कप रखते हुए उससे पूछा | 

"बिलकुल आए है | सभी मे तो आते है | मुझे लगता है मैं अब पहले से ज्यादा सुलझ गयी हूँ | बिलाबजह की बातों में समय खर्च नहीं करती | " उसने बड़ी फुर्ती से जबाब दिया | 

"खुश हो ? " मैंने जोड़ा | 

"पहले से कही ज्यादा | " उसने ये कहते हुए अपनी दोनों आँखें  देर तक झपकाएं रखीं | 

मुझे लगा कि बदलाव के जिन बिंदुओं को मैं केंद्र में रखकर सोच रहा था , उन्हें वह कहीं हांसिये पर रख रही थी | 

मल्लका की खाड़ी से उठा घना बादल अब सिंगापुर के ऊपर टपकने लगा था |  टी हाउस की  शीशे की दीवारों के ऊपरी सिरे पर बारिश की  बूंदे आ चिपकती | फिर धीरे धीरे नीचे की ओर खिसकती जातीं | बीच दीवार तक आते आते बूंदे भारी होने लगतीं और फिर बढे भार के चलते  बड़ी तेज गति से नीचे जमीन की ओर भागतीं | बस कुछ ऐसे ही ज़िंदगियाँ भागती हैं | 

चाय के बाद जब वह अपने फ़ोन पर मुझे अपने परिवार के फोटो दिखा रही थी तब मैं सोच रहा था कि क्या यह वही थी जिसे सहज हो मैंने एक दिन बोला था " सुनो , तुम्हे शादी की इतनी जल्दी भी क्या थी ? " 

और जबाब में उसने बिना कुछ बोले मुँह तिरछा किया था बस |  कुछ ऐसे जैसे कहती हो " ना भी की होती तो क्या एक तुम ही थे !"

हमने कोई चालीस पैतालीस मिनट बात की | शायद इससे ज्यादा बात करने के लिए हमारे पास कुछ था भी नहीं | 

उसने बताया कि उसका बड़ा बेटा सज्जन है | संवेदनशील , हर बात को मानने वाला | और छोटा उसका उलट | वह अब कोई आराम की नौकरी देखना चाहती है | ज्यादा ग्रोथ हो न हो, सुकून हो बस | उसके पति कहते हैं  कि चाहे तो वह नौकरी छोड़ दे , पर उसे लगता है कि इससे वह घर में बंध कर ही रह न जाए | 

मैंने उसे बताया कि किस तरह से बेटी का बाप बन जाने से आदमी की भावनाओं के नए आयाम खुल जाते है | किस तरह बच्चों के  जीवन में आ जाने से बाकी सब बातें गौढ़ हो जाती हैं | सब कुछ उनका और उन्ही के लिए हो जाता है |  

उसके बाद  हमने एंग्जायटी , नींद कम आने , कोलेस्ट्रॉल , थाइरायड  , हैल्थी लाइफ स्टाइल से जुडी बातें की |  

शाम को ट्रैन से ऑफिस से वापस लौटते हुए मेरा मूड उखड़ा हुआ था| बारह साल में इतना कुछ गुजर जाता है , इल्म ही नहीं था | सोचता रहा कि कुदरत इतनी बेरहम क्यों है ? उसे सब कुछ पहले बनाना और फिर बिगाड़ देना क्यों होता है ?शीत में खिले गेंदे के फूल , बसंत की नयी पत्तियां ,  दिलों में हूँक देने वाले खूबसूरत चेहरे ,कुछ तो यूँ ही छोड़ देती | 

और उस रात मैंने हाथ मुँह धोने के बाद आईना नहीं देखा | शायद इसलिए कि उस मनोदशा के साथ खुद तो देख भर लेता तो  दशक भर के मेरे खुद के बदलावों  का मलबा एक साथ मेरे मुँह पर आ गिरता जो मेरी बर्दाश्त से बाहर होता | 

रविवार, 2 अक्टूबर 2022

निस्वार्थ भाव



विचार , महज एक विचार आदमी को बौरा सकता है | फिर चाहे आदमी स्वर्ग में ही क्यों न बैठा हो | आप ही बताएं , पुरुष की इच्छाएँ कितनी सी होती हैं ? कुछ अदद सामान ही तो लगता है | मेज पर यार-चौकड़ी  की गिनती भर  के कांच के गिलास , आइस क्यूब्स , सस्ती महंगी कैसी भी व्हिस्की , भुनी हुई  मुर्गी , शाम की ठंडी हवा ,हल्का म्यूजिक और ऊँगली के इशारे भर पर लपक कर गिलास भर देने को तैयार  युवतियाँ |  बस इतना भर ही न | 

बाबजूद इस सबके , छब्बीस सत्ताईस साल का वो युवक कुलबुलाए जा रहा था | घूट दो घूट  लेता फिर किसी बोडम की तरह मन ही मन बुदबुदाता, इधर उधर घूरता  | उसका प्रौढ़ साथी उसे समझाता | 

'क्लार्क की' से गुजरती सिंगापुर नदी का वेग बेहद धीमा था उस दिन | ऐसा जैसे मानो नदी का अपना प्राण हो जो कहता हो : "आराम से | इत्मीनान से | हे सोमवार से शुक्रवार बैल की तरह जुतने वाले इंसान  , शुक्रवार की इस शाम को आराम से | खुल कर जी  और खींच इन लम्हों को , जितना खींच सकता  हो | "   

और लम्हे | क्या ही खूबसूरत | मलक्का की खाड़ी से उठने वाली धीमी हवा नदी के ऊपर यूरोपियन वास्तुकला में बने कैंटीलीवर के पुलों को बिना आवाज एक के बाद एक कर पार करती , फ़ुलर्टन होटल के आगे से वलय लेते हुए रिवरसाइड में बने दर्जनों मयखानो में हाजरी लगा रही थी | 'लिटिल सैगोन' , 'विंग्स बार' , 'टोमो इसाकाया' , 'हूटर्स' , 'हाई लैंडर' , 'लेवल अप' ऐसे दर्जनो, कुछ नामचीन  तो कुछ नए बार्स की कतार दूर तक जगमगा रही थी | नदी के उस पार शॉपिंग काम्प्लेक्स की बत्तियों का प्रतिबिम्ब नदी की सतह पर कुछ ऐसे बनता था जैसे किसी ने एक साथ सैकड़ो दिये तैरते छोड़ दिए हों | एक्का दुक्का टूरिस्ट बोट जब पानी को चीरती तो लहरों के साथ वो दिए भी किनारे की ओर भागते | 'यू ओ बी'  बैंक के ऊँचे टावर के कोने पर चाँद कुछ ऐसे निकला था जैसे मानो कोई बिजली का बड़ा गोल हाण्डा  बिल्डिंग की मुंडेर से टाँगा गया हो | 

नदी के उस पार कोई लोकल बैंड अंग्रेजी गाने गा रहा था | नदी के किनारों को बांधती सीढ़ियों पर कॉलेज के कम उम्र लड़के लड़कियाँ , एक दूसरे के हाथ थामे कसमें खा रहे थे  |कसमें ,जो तोड़ी जानी थी |  और इस पार | थाई , वियतनामी , चीनी , फिलिपीनो | जितनी विविधता लिए व्यंजन उतनी ही वैरायटी लिए बार गर्ल्स | बेहद कम उम्र | उनमे से अधिकांश ने बामुश्किल वर्क परमिट की वैध उम्र को छुआ होगा |  कद काठी, नैन नक्श , चाल ढाल, बोल चाल , इस सब मे  ऐसी जैसे उन्हें 'बार' नहीं  किसी इंटरनॅशनल एयरलाइन्स में एयरहोस्टेस होने को चुना गया हो | 

'ड्रमस्टिक्स' , 'चिकन विंग्स' , 'सीक कबाब' , 'बारबेकु चिकन' , 'टाइगर प्रॉन' , 'पड थाई' , 'टॉम यम सूप' , 'स्मोक्ड सैमन'  ये कुछ चंद डिशेस है | ऐसी न जाने कितनी एक्सोटिक रेसेपी की तस्तरियाँ लिए युवतियाँ दौड़ रहीं थी | व्हिस्की , वोदका , मोजिटो , शिर्ले , बियर , वाइन इन सबके ग्लास खाली होते और फिर से भर दिए जाते | 

अजी , शाम कुछ ऐसी कि आदमी शराब ना भी पिए तो माहौल ही चढ़ जाए ! 

 और इस सबके बीच वो छब्बीस सत्ताईस का बाँका मारे कुढ़ के जला भुना जा रहा था | कुढ़ ? हाँ , बात सिर्फ इतनी सी कि जिन हिरणी  जैसी चाल  के साथ उँगलियों पर तस्तरियाँ उठाये युवतियों को उसे बार बार 'एक्सक्यूज़ मी ' कहकर बुलाना होता था वे ही युवतियां रेलिंग के सहारे लगी मेज पर जमा चार पांच गोरों  पर इस कदर न्योछावर थीं जैसे किसी अमीर रियासतों के  वारिस  पधारे हों  | 

वे उनके हर नए पुराने , अच्छे घटिया हर जोक पर खिल उठती|  बोतल छूट न जाए इस लिए मेज पर रख देतीं |  उनके छोटे छोटे वक्षस्थल देर तक थरथराते  रहते   | गोरों की  फ़रमाहिशों को फेहरिस्त में सबसे ऊपर रखतीं |  दूसरे कस्टमर्स को निपटाती और  फुर्सत होते ही गोरों  की  मेज पर फूलदान सी झूल जातीं |  


प्रौढ़ साथी ने समझाया "ये व्हाइट प्रिविलेज है भाई | इनको हर जगह मिलता है | एक परसेप्शन है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है | परसेप्शन ये कि गोरे ज्यादा खर्च करते है , रईस होते हैं | अच्छी टिप देतें है | पैदाइशी जेंटलमैन होते है | इज़्ज़त से पेश आते है | दिल से सॉरी , थैंक्स बोलते  हैं |बड़े ही सेंसिटिव होते है | अपने लोगो की इमेज कुछ इतर है |"

 "ये एक फसल है जो इनके पुरखे बो गए है जिसे ये आज काट रहे है | और फिर 'बार' में ही क्या | अपने वर्क एनवायरनमेंट में भी ये दिखता है की नहीं ?"

सोया सॉस में तर जूसी चिकन लेग को व्हिस्की से गले में उतारते हुए नवयुवक कुछ नरम तो हुआ, पर उसके अहम् पर लगे दाग का धुआँ देर तक उठता रहा  " ऐसा कुछ नहीं है , आज की दुनिया में कोई किसी से कम नहीं है | "

"हाँ , सही हैं | लेकिन जो पेसेप्शन है सो है | उसके बनने में और बिगड़ने में पीढ़ियां लगती है मेरे भाई , पीढ़ियाँ |  " प्रौढ़ ने कर्त्तव्य भाव से समझाया  |  

घडी का काँटा ग्यारह की तरफ जा रहा था | बिल चुकता करने के बाद बार की कुर्सियों से उठते हुए प्रौढ़ ने बार गर्ल की हथेली पर  दस दस डॉलर के दो नोट रख दिए " ये तुम्हारी मेहनत और सेवा भाव के लिए | शुक्रिया , दिल से शुक्रिया "| युवती ने थाई मुद्रा में झुककर अभिवादन किया |  एक मुस्कान से उसका चेहरा खिल उठा | मुस्कान जो उसकी नाक के नीचे से शुरू हो कान के सिरों तक जाती थी | ऐसी गहरी और आत्मा की गहराईयों से उठने वाली मुस्कान सिर्फ और सिर्फ पैसा ही पैदा कर सकता है !

ट्रैन स्टैशन के लिए कैंटीलीवर  पुल को पार करते हुए नवयुवक ने टिप को लेकर कहा " बड़े भाई इसकी जरूरत नहीं थी | कम से कम आज तो नहीं | " 

और  प्रौढ़ ने मुस्कुराते हुए इतना भर कहा " ये अपने लिए नहीं था छोटे | ये अपनी नस्ल के उन लोगों  के लिए था जो हमारे बाद इस बार में आएंगे !" 


                            --  सचिन कुमार गुर्जर      

सोमवार, 19 सितंबर 2022

पहली दफा



जो दूसरों के पास है , वही सब अपने बच्चों के लिए जुटाने की जद्दोजहद | अपनी ऊर्जा-सामर्थ्य  से  मिडिल क्लास आदमी यही  साधता है | पर एक मलाल है | मलाल ये कि नौकरी से समय मिलता तो मैं बच्चों को कुछ सिखाता | एक विचार , कि माँ , स्कूल टीचर्स, दादा दादी , ये सब समझाते तो होंगे |  अपनी कूबत अपनी इच्छा के हिसाब से | पर क्या वो सब , जो मैं बता पाता !

आप इसे गुमान कहिये  | पर  चम्पक , आविष्कार , मनोहर कहानियाँ , सुपर कमांडो ध्रुव , नागराज से होते हुए उपकार ,प्रतियोगिता दर्पण  ,इंडिया टुडे , दी हिन्दू ,  फिर  टेड टॉक्स , न्यूज़ डिबेट्स से निकल  दाँते ,लियो टॉलस्टॉय , मैक्सिम गोर्की  तक को छूने वाले आदमी को आप थोड़ी नरमाई से नापिये | उसे इस अहसास के साथ जीने की मोहलत दीजिये कि जिंदगी में तीर मारे हों या न मारे हों , विषयवस्तु की पकड़ उस अधेड़ को है | इतना कुछ तो उसके तरकश में है कि एक बच्चे की जीवन दिशा की प्रस्तावना तो बांध ही दे |  

और इसी अहसास से तरबतर वो  आदमी , दस साल के बच्चे का हाथ पकडे सिंगापुर के एक लोकल मार्किट से गुजरा जा रहा था   |बच्चा जो कि अभी अभी विलायत आया था  | पहली दफा , नयी आँखें  |  रविवार की अलसाई सुबह  | ताजा सब्जी , फल, दूध , अंडे ,ब्रेड यही सब रोजमर्रा की चीज़े उठाए कुछ अच्छे पति , वृद्ध  गृहणियां , कम उम्र काम वाली बाइयाँ ,  | नुकक्कड़ो पर , मुनिसिपलिटी की सीमैंट की बैंचों पर ,  कॉफी हाउस के बाहर बूढ़े जमा थे |  बूढ़े जो काफी बूढ़े थे | 


"अच्छा , तुमने ऑब्ज़र्व किया बेटा | सिंगापुर में अपने देश के मुकाबले कितने ज्यादा बूढ़े लोग दीखते है ? "

"सोचो , ऐसा क्यों हैं ?"

और फिर वो दिमाग में गढ़ने लगा कि बच्चे को कुछ समझायेगा   - विकसित देश , क्वालिटी ऑफ़ लाइफ , हेल्थ केयर , लोंगेटिविटी इसी सब के बारे में | 

बच्चे ने सोचा , एक दो दुकान के होर्डिंग पढ़े और  फिर बोला " हाँ , तो क्या पापा , सिंगापुर भी ब्लू जोन में आता है ?"

"ब्लू ज़ोन ?" 

"हाँ , ब्लू जोन , जिसमे जापान आता है , इटली आता है | "

"ओह , ये क्या होता है ?" आदमी  ने इतना कहा पर उसका दिमाग ब्लू जोन , जापान , दीर्घायु इन सबका युगुम बनाने में कामयाब रहा | धीरे से चलते चलते गूगल से कन्फर्म किया | 

"तुमने ये सब कहाँ से सीखा ?"

"पापा आप यू ट्यूब पर नास डेली को फॉलो नहीं करते क्या ? आपको करना चाहिए |  "


मार्किट के किनारे बबल टी की एक एक स्टाल की तरफ इशारा करते हुए बच्चे ने  कहा " पापा , वाओ , बबल टी मिलती है यहॉ !मैंने कभी पी नहीं | ट्राई करें ?" 

आदमी ने पूछा नहीं कि जब कभी पी ही नहीं , अपने शहर में मिलती भी नहीं तो ये 'वाओ !बबल टी ' कहाँ से आया |   रेमैन , किमची ये सब शब्द इसकी वोकैब में आये कहाँ से | 

 हाँ, बबल टी स्टाल की तरफ जाते हुए उसने सोचा कि उसकी दुनियादारी की समझ सिकुड़ रही है  | दुनिया बदल गयी है तरीके बदल गए है , इनफार्मेशन कई गुना तेज रफ़्तार से दौड़ रही है |  आप जो खाली छोड़ रहें हैं ,यू ट्यूब उसे भर रहा है | 

"पापा आपको अगर इंटरेस्टिंग फैक्ट्स चाहिए ना तो मैं  आपको कुछ चैनल्स बता दूंगा | सब्सक्राइब कर लेना | " 

"ठीक है बेटा|  अच्छा  सुनो , सिंगापुर ब्लू जोन में नहीं आता | वो कुछ दूसरी थ्योरी है | बाद में डिटेल में बताऊंगा | "बबल टी लगे स्ट्रा को घुमाते हुए आदमी ने कहा | 

 लेकिन पहली दफा , गुमान में तरबतर रहने वाले आदमी को  ऑउटडेटेड हो चलने ,और फिर  अप्रासंगिकता की ओर लुढ़क जाने का का डर सताने लगा है    | 


नवोदय के दिन

बक्सा , बाल्टी, एक अदद मग्गा , कुछ जोड़ी कपडे , बिस्कुट , दालमोठ और पंजीरी | इंतज़ाम तो कुछ ऐसा था जैसे कोई फौजी पल्टन को जाता हो | ऐसे जैसे  ...