रविवार, 2 अक्तूबर 2022

निस्वार्थ भाव



विचार , महज एक विचार आदमी को बौरा सकता है | फिर चाहे आदमी स्वर्ग में ही क्यों न बैठा हो | आप ही बताएं , पुरुष की इच्छाएँ कितनी सी होती हैं ? कुछ अदद सामान ही तो लगता है | मेज पर यार-चौकड़ी  की गिनती भर  के कांच के गिलास , आइस क्यूब्स , सस्ती महंगी कैसी भी व्हिस्की , भुनी हुई  मुर्गी , शाम की ठंडी हवा ,हल्का म्यूजिक और ऊँगली के इशारे भर पर लपक कर गिलास भर देने को तैयार  युवतियाँ |  बस इतना भर ही न | 

बाबजूद इस सबके , छब्बीस सत्ताईस साल का वो युवक कुलबुलाए जा रहा था | घूट दो घूट  लेता फिर किसी बोडम की तरह मन ही मन बुदबुदाता, इधर उधर घूरता  | उसका प्रौढ़ साथी उसे समझाता | 

'क्लार्क की' से गुजरती सिंगापुर नदी का वेग बेहद धीमा था उस दिन | ऐसा जैसे मानो नदी का अपना प्राण हो जो कहता हो : "आराम से | इत्मीनान से | हे सोमवार से शुक्रवार बैल की तरह जुतने वाले इंसान  , शुक्रवार की इस शाम को आराम से | खुल कर जी  और खींच इन लम्हों को , जितना खींच सकता  हो | "   

और लम्हे | क्या ही खूबसूरत | मलक्का की खाड़ी से उठने वाली धीमी हवा नदी के ऊपर यूरोपियन वास्तुकला में बने कैंटीलीवर के पुलों को बिना आवाज एक के बाद एक कर पार करती , फ़ुलर्टन होटल के आगे से वलय लेते हुए रिवरसाइड में बने दर्जनों मयखानो में हाजरी लगा रही थी | 'लिटिल सैगोन' , 'विंग्स बार' , 'टोमो इसाकाया' , 'हूटर्स' , 'हाई लैंडर' , 'लेवल अप' ऐसे दर्जनो, कुछ नामचीन  तो कुछ नए बार्स की कतार दूर तक जगमगा रही थी | नदी के उस पार शॉपिंग काम्प्लेक्स की बत्तियों का प्रतिबिम्ब नदी की सतह पर कुछ ऐसे बनता था जैसे किसी ने एक साथ सैकड़ो दिये तैरते छोड़ दिए हों | एक्का दुक्का टूरिस्ट बोट जब पानी को चीरती तो लहरों के साथ वो दिए भी किनारे की ओर भागते | 'यू ओ बी'  बैंक के ऊँचे टावर के कोने पर चाँद कुछ ऐसे निकला था जैसे मानो कोई बिजली का बड़ा गोल हाण्डा  बिल्डिंग की मुंडेर से टाँगा गया हो | 

नदी के उस पार कोई लोकल बैंड अंग्रेजी गाने गा रहा था | नदी के किनारों को बांधती सीढ़ियों पर कॉलेज के कम उम्र लड़के लड़कियाँ , एक दूसरे के हाथ थामे कसमें खा रहे थे  |कसमें ,जो तोड़ी जानी थी |  और इस पार | थाई , वियतनामी , चीनी , फिलिपीनो | जितनी विविधता लिए व्यंजन उतनी ही वैरायटी लिए बार गर्ल्स | बेहद कम उम्र | उनमे से अधिकांश ने बामुश्किल वर्क परमिट की वैध उम्र को छुआ होगा |  कद काठी, नैन नक्श , चाल ढाल, बोल चाल , इस सब मे  ऐसी जैसे उन्हें 'बार' नहीं  किसी इंटरनॅशनल एयरलाइन्स में एयरहोस्टेस होने को चुना गया हो | 

'ड्रमस्टिक्स' , 'चिकन विंग्स' , 'सीक कबाब' , 'बारबेकु चिकन' , 'टाइगर प्रॉन' , 'पड थाई' , 'टॉम यम सूप' , 'स्मोक्ड सैमन'  ये कुछ चंद डिशेस है | ऐसी न जाने कितनी एक्सोटिक रेसेपी की तस्तरियाँ लिए युवतियाँ दौड़ रहीं थी | व्हिस्की , वोदका , मोजिटो , शिर्ले , बियर , वाइन इन सबके ग्लास खाली होते और फिर से भर दिए जाते | 

अजी , शाम कुछ ऐसी कि आदमी शराब ना भी पिए तो माहौल ही चढ़ जाए ! 

 और इस सबके बीच वो छब्बीस सत्ताईस का बाँका मारे कुढ़ के जला भुना जा रहा था | कुढ़ ? हाँ , बात सिर्फ इतनी सी कि जिन हिरणी  जैसी चाल  के साथ उँगलियों पर तस्तरियाँ उठाये युवतियों को उसे बार बार 'एक्सक्यूज़ मी ' कहकर बुलाना होता था वे ही युवतियां रेलिंग के सहारे लगी मेज पर जमा चार पांच गोरों  पर इस कदर न्योछावर थीं जैसे किसी अमीर रियासतों के  वारिस  पधारे हों  | 

वे उनके हर नए पुराने , अच्छे घटिया हर जोक पर खिल उठती|  बोतल छूट न जाए इस लिए मेज पर रख देतीं |  उनके छोटे छोटे वक्षस्थल देर तक थरथराते  रहते   | गोरों की  फ़रमाहिशों को फेहरिस्त में सबसे ऊपर रखतीं |  दूसरे कस्टमर्स को निपटाती और  फुर्सत होते ही गोरों  की  मेज पर फूलदान सी झूल जातीं |  


प्रौढ़ साथी ने समझाया "ये व्हाइट प्रिविलेज है भाई | इनको हर जगह मिलता है | एक परसेप्शन है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है | परसेप्शन ये कि गोरे ज्यादा खर्च करते है , रईस होते हैं | अच्छी टिप देतें है | पैदाइशी जेंटलमैन होते है | इज़्ज़त से पेश आते है | दिल से सॉरी , थैंक्स बोलते  हैं |बड़े ही सेंसिटिव होते है | अपने लोगो की इमेज कुछ इतर है |"

 "ये एक फसल है जो इनके पुरखे बो गए है जिसे ये आज काट रहे है | और फिर 'बार' में ही क्या | अपने वर्क एनवायरनमेंट में भी ये दिखता है की नहीं ?"

सोया सॉस में तर जूसी चिकन लेग को व्हिस्की से गले में उतारते हुए नवयुवक कुछ नरम तो हुआ, पर उसके अहम् पर लगे दाग का धुआँ देर तक उठता रहा  " ऐसा कुछ नहीं है , आज की दुनिया में कोई किसी से कम नहीं है | "

"हाँ , सही हैं | लेकिन जो पेसेप्शन है सो है | उसके बनने में और बिगड़ने में पीढ़ियां लगती है मेरे भाई , पीढ़ियाँ |  " प्रौढ़ ने कर्त्तव्य भाव से समझाया  |  

घडी का काँटा ग्यारह की तरफ जा रहा था | बिल चुकता करने के बाद बार की कुर्सियों से उठते हुए प्रौढ़ ने बार गर्ल की हथेली पर  दस दस डॉलर के दो नोट रख दिए " ये तुम्हारी मेहनत और सेवा भाव के लिए | शुक्रिया , दिल से शुक्रिया "| युवती ने थाई मुद्रा में झुककर अभिवादन किया |  एक मुस्कान से उसका चेहरा खिल उठा | मुस्कान जो उसकी नाक के नीचे से शुरू हो कान के सिरों तक जाती थी | ऐसी गहरी और आत्मा की गहराईयों से उठने वाली मुस्कान सिर्फ और सिर्फ पैसा ही पैदा कर सकता है !

ट्रैन स्टैशन के लिए कैंटीलीवर  पुल को पार करते हुए नवयुवक ने टिप को लेकर कहा " बड़े भाई इसकी जरूरत नहीं थी | कम से कम आज तो नहीं | " 

और  प्रौढ़ ने मुस्कुराते हुए इतना भर कहा " ये अपने लिए नहीं था छोटे | ये अपनी नस्ल के उन लोगों  के लिए था जो हमारे बाद इस बार में आएंगे !" 


                            --  सचिन कुमार गुर्जर      

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें -

अच्छा और हम्म

" सुनते हो , गाँव के घर में मार्बल पत्थर लगवाया जा रहा है , पता भी है तुम्हे ? " स्त्री के स्वर में रोष था |  "अच्छा " प...