रविवार, 13 मार्च 2016

इश्क़ वाला लव !

सुनो , तुम्हारे अहसानो और नेमतों की फेरिस्त लम्बी है , कर्जमंद है हम । पर उनमे से जो सबसे ऊपर  है, वो ये है  कि ये जो प्यार वाली फीलिंग होती है  ना , उसका सही एहसास तुमने ही कराया है हमे  ।  बाय गॉड !
कसम से , यूँ ही जिए जा रहे थे हम तो ।  कुछ इल्म ही  न था , कि चाहत कुछ यूँ भी हो सकती है और  इस कदर भी हो सकती है । कोई किसी को इतना टूटकर कैसे चाह सकता है । सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार ।  सच्ची ! शायद तभी दीवानगी को पागलपन बोला जाता है ।  है न ?

कतई बुड़बक निकले हम इस मामले में । हमे  ना , फ़िल्मी लगता था ये सब , बचकाना , कम उम्र के लड़के लड़कियों का खेल ! लगता था कि भटके हुए , कम सोच वाले लोग जाते है इस रास्ते । गलत थे हम । कतई  गलत , निखालिस गलत !

ऐसा नहीं है कि कभी इस तरह की फीलिंग ने पहले नहीं छुआ । स्वाभाविक  है । भॅवर तो उमड़े है कई बार, अरसे पहले । कोशिशे भी की है , गुजारिशे भी की है  , ईगो को किनारे रख मिन्नतें भी की है , पर नाकारा गया हमे  हर  बार । या इस्तेमाल हुआ । तभी तो.... मन बार बार जतावा मांगता है तुमसे । प्यार का जतावा ।

हमें  ना ,  गुमान होने लगा अपने ऊपर , और गुनाहगार तुम हो जालिम ! तुम्हारी वजह से ! तुम्हारी बाते , दरियादिल तारीफे ! क्यों लुटाती हो इतना प्यार , खुले हाथो से हम पे , कभी तो मुट्ठी भींच लिया करो ।

तुम्हारी वजह से !
वर्ना , हमने आज तक  खुद को कसाई की नज़र से ही देखा  हमेशा  ।  कमियों की पूरी फेहरिस्त थी , हताशाओ का अम्बार था ।
बदल नहीं गए है अब , वैसे  ही हैं  , पर स्वीकार करने लगे है  अपने आप को ।
कमियाँ है , सब में होती है ।   जिंदिगी जो नहीं है उसका मलाल करने के लिए थोड़े है , जो है ना , जितना भी , थोड़ा या ज्यादा , उसका जश्न मनाने का नाम है जिंदिगी ! है कि नहीं ?

और हाँ , सुनो हमारी चाहत बेशर्त है तुम्हारे लिए । कुछ नहीं चाहिए । मिलो न मिलो । बस जियो तुम , अपने डैनों को मज़बूत करो और अपने बूते खुले गगन में उड़ने का  हौसला पैदा करो । बस और बस , तुम्हे उड़ते देखना चाहते है । तुम्हारे  सपनो की उड़ान ।  तुम मुस्कुराती  हो ना  , तो  दिल खिल उठता  है हमारा भी ।
खुल के हँसा करो वे , कुछ चीज़ो में एटिकेट्स को नहीं देखना चाहिए ।

बस  एक गुजारिश  है , ये जो तार जुड़े है न , प्लीज इन्हे मत छेड़ना ,  हसी ख्वाव टूट जायेगा । पाप लगेगा !
नहीं छेड़ोगी न ?  मत छेड़ना , टूट जायेगा बहुत कुछ , और हम  चाह के भी आह तक न भर  पाएंगे ।
लबादा औढ़ा है हमने ।  बहुत ज्यादा, बेहिसाब समझदारी का, और बहुत ज्यादा जिम्मेदारी का भी  !

"जिस जिस को भी पता चला मेरे इश्क़ का , सबने यही कहा,
 अरे , तुम कहा फंस गए यार , तुम तो समझदार हुआ करते थे !"

मोहित चौहान ने बड़ा दिमाग ख़राब किया है इस वीकेंड । पचासो बार 'पहली बार मोहब्बत की है ' सुन लिए , पर हर बार लगता है कि पहली बार ही है ।

  चलो , गुड नाईट । कम्बल लपेट के लम्बे होते  है अब  , सुबह को बकर बकर भी सुननी है  ऊँचे ओहदेदारों की  ।


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