बुधवार, 3 दिसंबर 2014

शाबाश ! यू आर अ सॉलिड कंट्रीब्यूटर

आज मौसम  बड़ा ही अच्छा है । नन्ही नन्ही बुंदियाँ बरस रही है । ऐसे मौसम में तो बस एक खटिया हो और उस पर खेस तानकर टाँग पसार सोने को  मिल जाए तो समझो जन्नत मिल जाये !
मन होता है कि सामने वाली कांच की खिड़की तोड़ के बाहर निकल जाऊ और शर्ट को कमर से लपेट दूर तक बारिश में भीगता भागूँ  ,ऊँची आवाज़ में गाता जाऊं ।

सामने की बिल्डिंग में बड़े बड़े लाल ,स्पष्ट अक्षरो में लिखा है " हनी वैल " ।
शायद उधर बसने वाली सारी आत्मायें शहद के कुओं में गोते लगाती होंगी , हर कोई  बताशे सा मीठा बोलता होगा ।
सुन्दर सुन्दर हसीन परियाँ  होंगी जो हर बात बेबात पर मुस्कुराती होंगी ,हर छोटे बड़े काम पर मैनेजर शाबाशी देते होंगे और चमच्च भर शहद चटाते होंगे । होदे बढ़ते होंगे , मेहनताने बढ़ते होंगे !


या फिर उधर भी साल में  एक बार ही  पड़ती है  कंधे पर धाप और एक उवासी लेती आवाज़ कि 'सुनो ,शाबाश !… यू आर अ सॉलिड कंट्रीब्यूटर'
केवल और केवल एक सॉलिड कंट्रीब्यूटर!









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