रविवार, 3 फ़रवरी 2013

ध्रुव का आगमन


लो जी , हम पिता जी बन गए ।
10 जनवरी 2013 को हमारा  घर भी नन्हे मुन्ने की किलकारियों से गूंझ  उठा ।
नन्हे प्राण  ने अपने मोहपाश में ऐसा बाँधा कि  बीस दिन की छुट्टियाँ  कब रफूचक्कर हुई , पता भी न चला ।
अजीब अनुभूति है । शब्दों में बांधना मुश्किल है । नए आयाम खुले है । नए मकसद मिले है । नया द्रष्टिकोण  मिला है ।


ये देखिये , छुट्टियों से वापस लौटते समय तमाम मन्नते की । हाथ पकड़ के झकझोरा  भी , कि  मान्यवर तनिक आँखे तो खोले , पर महोदय  की निंद्रा साधना इतनी एकाग्रः है कि  विघन डालना लगभग नामुमकिन है ।
 

बड़ी मुश्किल से अर्धनेत्र खोलने की मेहरबानी हुई। पर साथ में जतावा कि मैं  गहरी साधना में हूँ  और मुझे जगाकर क्यों खामखा मेरा समय बर्बाद कर रहे हो ।





हालाँकि पंडित जी ने 'भारतेंदु' नाम सुझाया है पर परिजनों के बहुमत के आधार पर  'ध्रुव' पर सहमति जान पड़ती है ।
'भारतेंदु' हो या 'ध्रुव' , पर हो विशुद्ध , स्वनिर्मित ।
अपनी इच्छाओ , आकांशाओ , सपनो के बोझ से हम नन्हे प्राण के मूल स्वभाव को विघटित न करे ,ऐसी अभिलाषा है ।
स्वागत है नवप्राण , स्वागत है ।

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