रविवार, 17 अप्रैल 2016

दैत्य और सुंदरी ..

रेस्टोरेंट  की किनारे वाली टेबल पर आप अकेले बैठे है । तभी एक दैत्य का आगमन होता है ।

दैत्य छह फ़ीट से भी लम्बा  ,बेडौल मोटा। बड़ा मुँह , मोटे लेंस का  चश्मा । उसके जूते का साइज भी दस होगा शायद । उसके कानो में लम्बे लम्बे बाल उगे है । पीठ से गर्दन की ओर भी बालों की गुच्छियां टी शर्ट के बाहर झांक रही है ।आप भालू की संज्ञा दे तो कोई ज्यादा अतिश्योक्ति न होगी !
अधेड़ सा प्रतीत होता है , चाल ढाल से सुस्त । सिर के बाल भी हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है ।
अजीब से जूते पहने , बच्चों जैसी मोटे डायल की घडी बांधे है ।

दैत्य में आपकी कोई रूचि न होती लेकिन उसकी बाहों में बाहें फंसाए एक सुंदरी भी है उसके साथ ।
कैसी ?  बिलकुल आपके सपनो की राजकुमारी जैसी ।
दूध सा उजला रंग, पतला शरीर , सही जगहों पे सही अनुपात में मांसल ।
मतलब वही साँचा ,वही ढांचा , जैसी की कल्पना आप वर्षो से करते आ रहे है ।
आप बस कुर्सी से उछलने को है " हे प्रिये , हे शकुंतला कहाँ थी आज तक , यहाँ तुम्हारा दुष्यंत दर दर मारा फिरता है । "

फिर आप खिन्न हो जाते है , खीज उठते है । दैत्य बाप तो नहीं लगता ।  पति पत्नी हैं । भला भालू और हिरणी का क्या मेल ?
आप बेहद दुखी महसूस करते है , हृदय वेदना से भर जाता है । अपने लिए नहीं , उस फूल सी  राजकुमारी , उस स्वप्नसुंदरी के लिए ।

आप उस हिरणी की काली,  कटोरे जैसी बड़ी आँखो में झांकते है , उसके  दुख और लाचारी की थाह लेने के भाव से ।  उफ्फ बेचारी , क्या किस्मत ।
फिर आप सबको कोसते है ।  जालिम दुनिया , सुंदरी के माँ बाप से लेकर अंधे समाज तक को , जिन्होंने कुछ न देखा और स्वप्न सुंदरी को  बेमेल दैत्य के आगोश में धकेल दिया ।

हे सुंदरी , तुम कहाँ छुपी बैठी थी पहले । क्यों न मिल गयी मुझे ।
देखो कितना सही मेल होता अपना । कद सही अनुपात , रंग ढंग , नाक नक्श , हम उम्र ।
कसम से, दो हिरणो के जोड़े जैसा होता अपना मेल ।
उफ़ क्या किस्मत पायी सुंदरी ।

आप सुंदरी से एक बार फिर से आँखे मिलाते है और आँखों ही आँखों पूछते  है " बोलो प्रिये , तनिक न झिझको , हम जान लड़ा देंगे ,  छुड़ा लेंगे तुम्हे इस दुष्ट दानव से । तुम हमारी अधिकारी बन रहो , बोलो तो । इशारा हो तो बन्दा जंग का ऐलान करे । "

पर सुंदरी सब समझती है । आप पहले अनोखे तो है नहीं जिसका दिल मचला है सुंदरी की मदद के लिए,  उसे घुटन भरी जिंदिगी से आजाद करने के लिए !

सुंदरी दानव का हाथ अपने हाथ में लेती है और बिना प्रयोजन के ही एक चुम्बन उसके हाथ पे अंकित कर देती  है । फिर दानव के  बचे खुचे बालों में कुछ इस कदर हाथ फिराती है जैसे किसी बच्चे को  दुलार रही हो ।

उसका ये  प्रेम प्रदर्शन अचानक ,अकस्मात नहीं बल्कि आप के लिए सन्देश भर है ।
कि हे दया मूर्ती , ये सूंदर देह मूर्ती । हम खुश है , तृप्त है । सुनो इस दानव ने हमको नहीं , हमने इस दानव को बांधा है , और इसकी चाबी हमारे हाथ है ।

आप हतप्रभ , अकल्पनीय , ये क्या परिस्तिथि है ।
आप फिर से एक बार दानव देह पे सूक्ष्म दृष्टि दौड़ाते है ।
दानव ने जो दस नंबरी जूता पहना है वो लुइस वुइत्तों के बेहद महंगे जूते है , जो घडी अभी तक आपको फनी,  बचकाना लग रही थी वो दरअसल टैग हेउेर का महंगा मॉडल है जो अभी आपने बड़े शो रूम में विंडो शॉपिंग के दौरान देखा भर था । आप पाते है  कि दानव का एक्सेंट भी कुछ विलायती है जो  लम्बे  विलायत प्रवास  से उत्पन होता ज्ञात होता है । टेबल पे पड़े उसके पर्स में महंगे क्रेडिट कार्ड सजे है । हो न हो , दानव जरूर कोई न कोई ऊँचा ओहदेदार है , धनाढ्यता उसके व्यक्तित्व और व्यवहार से टपक रही है ।

आपका भोला, सरल  दिमाग अब जाकर स्थिति का सही आंकलन कर पाता है ।
बेचारगी आप पर फिर से  हावी है  , इस बार सुंदरी के लिए नहीं ,अपने आप के लिए !

                                                                                          -- सचिन कुमार गुर्जर

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