उस दिन जब लम्बे अर्से बाद मामा से बात हुई तो वो फ़ोन पे ही डांटने लगे। क्यों रे , कुछ ज्यादा ही बड़ा आदमी हो गया है , अब ननिहाल की याद नहीं आती । घिसा पिटा सा व्यस्तता का तर्क दे बात सम्भाली थी मैंने । कौन बताता उन्हें कि अब मन नहीं लगता उधर । दो साल से ऊपर हो गए नानी को गए हुए । नानी ही न गयी एक पूरी दुनिया चली गयी किस्से कहानियो की दुनिया , लाड दुलार की दुनिया ।
अलग ही था वो जमाना । साल भर इंतज़ार होता था गर्मियों की छुट्टियों का । गर्मियां आएँगी और हम जायेंगे नानी के गाँव ।ना फ़ोन,ना चिट्टी पत्री का तकल्लुफ , फिर भी पता नहीं माँ और नानी में कैसे संवाद हो जाता था कि हम ज्येठ के फ़ला दिन पधारेंगे ।
घोड़े तांगे में बैठ हम जाते तो मन कुलांचे मारता । तीनो भाइयो के कपडे एक से , एक ही थान से बने ।
भाइयो में मैं सबसे बड़ा था सो माँ के कपड़ो की कंडिया (जालीदार झोला) मैं ही सम्भालता । कपड़ो के बीच में एक दो नंदन या चम्पक या नन्हे सम्राट भी ढूंस लेता और बाद में आराम से नीम के पेड़ तले बड़े चाव से एक एक कहानी पढता ।
नानी पलकें बिछा द्वारे पे बाँट जोहती मिलती , पूरा घर गौ माता के ताज़े गोबर से लीपा होता , मानो कोई त्यौहार हो । ताँगे से हमारे उतारते ही देर तक पुचकारती , लम्बी उम्र की दुआए देती जाती ।
खीर पूड़ी खिलाती । उस दुनिया में हमारी सारी गलतियाँ , सारी शरारते माफ़ थी । नानी के सामने माँ की एक भी ना चलती थी ।
कच्चे रास्ते पर दूर तक अमराही थी,जामुन के दरख़त थे । पूरी दोपहर ट्यूबवेल में डुबकी लगाने में या कानपत्ता(पेड़ से लटकने का एक देहाती खेल) खेलने में जाती । वैसे ननिहाल तो नानी के स्वर्गवास से पहले ही सिमटने लगी थी । सड़क किनारे के पेड़ काट लाला ने अपनी पक्की दुकाने बनवा दी , परचून की , टायर पंचर की , चाट पकोड़ी की ।
अब तो मामा ने भी दूकान चला ली है , खेती करना अब रसूख़ का धंधा नहीं ,हाड़तोड़ ज्यादा है और आमद कम । फिर धीरे धीरे दुमंजिले मकानो की कतार खड़ी हो चली । छोटा मोटा कस्बाई अड्डा सा बन चली अपनी स्वप्निहाल ।
नानी हमारी उस दुनिया की आखिरी कड़ी थी ।
नानी तुम क्यों चली गयी, क्या जल्दी थी । बाहर का मर्द तो सांसारिक ,व्यवाहरिक ज्ञान का लवादा औढ़े स्थिर प्रतीत होता है पर क्या तुम्हे पता है अंदर का बालक आज भी सुबकता है। किस हक़ से छीन चली वो दुनिया ,जिस पे हमारा अख्तियार होना चाहिए था ,आखिर उस दुनिया के राजकुमार हम थे । नानी तुम अकेली न गयी , ननिहाल भी ले चली ।