रविवार, 8 मार्च 2020

जिन्दिगी चलती रहनी चाहिए !


उस बूढी औरत ने तीन या चार बार छींका और फिर छोटे सफ़ेद टीसू  से अपनी नाक दबाये आगे की ओर झुकी बैठी रही |
हलकी कराहती वो चीनी मूल की औरत काफी देर आँखे मूंदे बैठी रही |
आधा कोच खाली हो गया !  कई लोग सीट से खड़े हो आगे की  तरफ चले आये | एक दो आस पास की सीट पे जैसे तैसे टिके रहे |देखो ना , डर का कैसा माहौल है |
उनके डर दबाये चेहरों को देख मैं हंसना चाहता था पर मैं खुद दो कदम पीछे खिसक कोच के डोर से सट गया था !

पता नहीं ये कोरोना कितना खतरनाक है लेकिन आजकल ऑफिस जाते हुए ट्रैन में लोगो के मास्क लगे चेहरे जरूर डरा देते है |
नीले , सफ़ेद मास्क | कुछ पिन्नी जैसे पतले तो कुछ ऐसे भारी भरकम जैसे रासायनिक हमला हो गया हो |

कल की बात है , डब्बे में भीड़ थी | अधिकांश लोगो के चेहरे ढके हुए थे | मेरे सामने की सीट पे एक चीनी मूल की लड़की बैठी थी | पीले रंग की , छोटे मुँह और स्ट्रेट बालो वाली ऑफिस गोअर  |
उसका मास्क उसके चेहरे के हिसाब से बेहद  बड़ा और मोटे अस्तर वाला था| ऐसा जैसा मस्टर्ड गैस के  हमलो से बचने में इस्तेमाल  होता है | उसे सांस लेने में दुविधा थी पर खतरा कौन मोल ले | डब्बे में तरह तरह के प्राणी थे , सबकी साँसे हवा में घुल रही थी |

पर वो कुछ ज्यादा ही व्याकुकल थी | मैंने पाया कि बिज़नेस पार्क स्टेशन जो ज्यो पास आता जाता उसकी छटपटाहट बढ़ती ही जा रही थी |
आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने अपने हाथ का जम्बाडु सा बना उस मास्क  नोच गले में लटका दिया | वो औसत से सुन्दर , पचीस छब्बीस साल की युवती थी |


भीड़ से नज़र चुरा उसने अपने बैग से एक इन्हेलर नुमा छोटी चीज़ निकाली ,अपना चेहरा ऊर्ध्वाधर किया  , मोबाइल ऑन कर सामने किया और गर्दन दाए बाये घुमाई |
अब उसने अपने होंठो से अंग्रेजी का 'औ' अक्षर बनाया और इन्हेलर जैसी रेवलॉन की लिपस्टिक से होठो पर डबल कोट की |
उसने एक बार फिर से 'औ ' बनाया और लिपस्टिक बैग में खिसका दी |
अब उसके हाथ में एक ब्रश था | किसी मंझे हुए चित्रकार की तरह उसने पहले अपने बाए गाल पर तीन या चार स्ट्रोक मारे और फिर दाए गाल पर | उसके पीले चीनी गाल अब अफगानी अनार की माफिक खिल उठे  |
एक बार फिर से चेहरा दाए बाए घुमा कर युवती ने बिना देर किये अपना मास्क ऊपर चढ़ा लिया |
वो क्या है कि डब्बे में बहुत भीड़ थी | तरह तरह के प्राणी थे , सबकी साँसे हवा में घुल रही थी |


 कुछ चीज़े ऐसी आवश्यक होती है कि कोम्प्रोमाईज़ नहीं किया जा सकता ! किसी भी हाल में नहीं !

                                                                                          सचिन कुमार गुर्जर
                                                                                            8  मार्च 2020





 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें -

अच्छा और हम्म

" सुनते हो , गाँव के घर में मार्बल पत्थर लगवाया जा रहा है , पता भी है तुम्हे ? " स्त्री के स्वर में रोष था |  "अच्छा " प...