रविवार, 14 अक्टूबर 2018

कमीना सुख


"मुझे दिल्ली का पिन कोड चाहिए था यार बस्स और कुछ नहीं "  इतना सा बोल गुरु सिगरेट खींचने में मशगूल हो गया | 
और चेला  जो की अपनी औकात के हिसाब से गुरु की कुर्सी के बगल में, एक  नाटे से स्टूल पे बैठा था , अपनी  निगाह ऊपर कर गुरु  के अनमोल वचन डिकोड करने  की कोशिश में लगा रहा | 

शनिवार की सुबह थी , अभी घंटे भर पहले ही गुरु  का मैसेज आया था , " दिल्ली में हूँ, शाम तक | मिलना हो तो मदनगिरि आ जा | "
और चेला... चेला नंगे पाँव भागा चला आया था | 
 
जब से गुरु ने भगवान् ओशो की कर्मभूमि कोरेगांव में जाकर निवास का निर्णय लिया , उनके दर्शन ही दुर्लभ हो चले थे  |  कोरेगाँव के आस पास कुछ आई टी कम्पनियाँ खुल गयी है , घर बस गए है , आम लोग जगह को पुणे के नाम से जानते है ! 
बस इसी जगह पे, कही किसी नामचीन कंपनी में गुरु का प्रवचन होता है आजकल ! अच्छी तनख्वाह मिलती है , बड़े से रौबदार चेहरे में हमेशा गंभीरता का लबादा ओढ़े  , छह फ़ीट २ इंच की लम्बाई लिए गुरु जी को अज्ञानी , बेखबर  लोगबाग़  'डी बी ए'  कहते है ! 


पिछले दिनों कॉलेज के व्हाट्सप्प ग्रुप ' यारों का काफिला ' पे काफी जोरदार खबर चली थी कि गुरु ने दिल्ली में कही ३ बैडरूम वाला घर ले लिया था | बधाइयों का ताँता लगा रहा कई दिन | 
गुरु की रफ़्तार बाकि यारो से काफी तेज़ थी , कॉलेज से निकले 5 साल ही हुए थे और गुरु पूरी तरह सेट | 

चेले ने जितनी गर्मजोशी उड़ेली जा सकती थी वो उड़ेली और हाथ मिलाकर  गुरु को जोरदार बधाई दी | 
और गुरु ने बस इतना भर कहा " "मुझे दिल्ली का पिन कोड चाहिए था यार बस्स और कुछ नहीं !"

समझ नहीं आया तो चेले ने करबद्ध हो  आग्रह किया कि गुरु कुछ विस्तार से बताएँ  तो मेरे ज्ञान चक्षु खुले !
आग्रह हुआ तो गुरु ने जेहमत उठायी " दिल्ली का एड्रेस अच्छा होता है यार , कई बार काम आ जाता है | "
" रहना किसने है इधर , बस इसलिए ही ले डाला "
" और सुना " गुरु ने बातचीत की दिशा बदलने की इच्छा प्रकट की | 

ये जो गुरु ने 'ले डाला' बोला , समझ लो ,  ये बोल ही  चेले की आत्मा को चीरता चला गया , किसी नुकीले काँच सा गहरा लम्बा चीरा लगाता चला गया  | 
एक ऐसा सपना जिसे सोच सोच चेले की कई बार रात की नींद टूट जाती है | ऐसा सपना जिसे सोच चेले को लगता है भरपाई में जवानी क्या बुढ़ापा भी जाएगा , उसे गुरु ने बड़ी लापरवाही से 'ले डाला ' बता दिया था | 

आप कह सकते है कि ये शहर में अपना घर रखने का सपना तो सबका ही होता है, चेले का ही नहीं | 
इसमें ऐसा क्या है?

 रुकिए जनाब, भागिए मत | कल्पना कीजिये कि आपके एक साला है , जो हमउम्र है , आपकी ही तरह नौकरीपेशा , और उसने एक नहीं दो दो मकान ले डाले है नॉएडा या गाजिआबाद में कही | 
अब आप अपने ऊपर मकान लेने का दबाब महसूस कीजिए !
है ना ? समझ सकते है ना ? शब्बाश !

पर दुःख इस बड़े सपने को पाने में लगने वाली जवानी और मेहनत का नहीं था , बस गुरु के 'ले डाला ' ने दर्द दे दिया था | 
गुरु ने एक घाव खुला छोड़ दिया था | उसने चेले के बड़े सपने को ऐसा टुच्चा छोटा और तुच्छ बना दिया था कि चेला , गुरु के चरणों में बैठा बैठा अवसाद के रसातल में उतरता चला गया | 
आखिर गुरु नाम का ही तो गुरु था था तो बैचमेट ही | इंसान की फितरत होती है तोलने की , दूसरो से तुलना कर बैठता है |  
ये भगवान् भी न , इंसानो की क्षमताओं में इतना अंतर क्यों करता है | कोई उड़ान भरता है तो कोई बेचारा रेंगते हुए भी हाफ्ता है |  
चेला अवसाद के सागर में डुबकियाँ लगाता रहा | अपने आपको दुनिया का सबसे न्यूनतम स्तर का प्राणी घोषित करता रहा | किस्मत को कोस्टा रहा | 
इस पूरे घटनाक्रम में गुरु बस मूक रहा , सिगरेट का धुआँ उड़ाता चेले के चेहरे को देखता रहा | 
गुरु मंद मंद मुस्कुरा रहा था , चेहरे के भाव ऐसे थे मानो चेले के चेहरे से कुछ खींच रहा हो | 

काफी देर चुप रहने के बाद गुरु ने मुस्कुराते हुए चुप्पी तोड़ी और चेले के निढाल कंधे पर हाथ मार कहा " और सुना "




 मौसम विभाग ने कहा था कि औसत से ज्यादा बारिश होगी | 
जून के आखिरी हफ्ते में शुक्रवार का दिन था , सच में बारिश आ गयी थी ! 
लंच में राजमा चावल कुछ ज्यादा हो गया था शायद , गली  के किनारे के क्यूबिकल में चेला ऊंघ रहा था | उसका चेहरा सुस्त था , उनींदा | 
पता नहीं मौसम का असर था या वीकेंड आने का खुमार , गली से गुजरते हुए मैनेजर साब ने चेले के सामने ठिठक के पूछा " क्या हुआ भाई ,  बरसात आ गयी है ,मौसम मस्त हो गया है |  ऐसा उदास सा फेस लिए क्यों बैठे हो ?"

" बस सर , ऐसे ही , हमारे लिए क्या बारिश !" 
"अच्छा " मैनेजर साब ने इतना ही कहा | 

"घर की छत कच्ची है , बारिश होगी तो माँ भीग जाएगी "  अपनी पेशानी पे ऊँगली फिरा चेले ने कहा | 

मैनेजर ने वैसे ही देखा जैसे कोई भी इंसान अविश्वास भरा कुछ सुनने पर देखता है | 

" सर आप ३ महीने के लिए भी ऑनसाइट भेज देते तो छत पक्की हो जाती , लिंटर लगवा देता | " इससे पहले की पहले झटके का असर खत्म हो चेला बोलता चला गया था | 

मैनेजर साब का मुँह खुला रह गया और फिर वो एक कदम पीछे हट  गए | फिर वो इतनी जोर की , इतनी ऊँची हँसी हँसे की पूरा फ्लोर गूंझ उठा | 
फिर वो पेट से हाथ हटा सीधे खड़े हुए " तुझे ,मैं बड़ा सीधा बच्चा समझता था यार "

बातचीत में नाटकीय पटु इतना ज्यादा था कि चेला भी बिना ठहाका लगाए रह न सका | 

खैर , हँसी का दौर ख़तम हुआ तो मैनेजर साब ने बड़े ताल से टेबल पे अपनी उँगलियाँ बजा कर घोषणा की " चल , तू चला जा इस बार "

"पक्का न ?" जंग इतनी  आसानी से भी जीती जा सकती है क्या , चेले को  एक पल को यकीन ही नहीं हुआ |   

जंग ? हूह ? ऑनसाइट जाना भी जंग जैसा हो सकता है ?
रुकिए ! भागिए मत | 
हो सकता है आप विलक्षण प्रतिभा के धनि हो या जिंदगी में आगे बढ़ गए हो , दो चार कदम पीछे लीजिये, रिविसिट  कीजिये , दूसरो के जूतों में पाँव डाल देखिये | 

देखिये , कतारें होती हैं  | आपको दूसरो के सिरों के ऊपर पैर रख कर जाना होता है |  हार्ड वर्क , परफॉरमेंस ,   प्रपंच ,  इमोशनल प्ले, बटरिंग  सब तरह के तीर  चलते है | 


शेरा ठीक ठाक दोस्त था , जीनियस तो नहीं कह सकते , हाँ  एडवांस कहने में हिचक नहीं | 
एडवांस यूँ कि कॉलेज के दिनों में जब चेले चपाटे " जावा इस एन ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग लैंग्वेज " का जुमला रट रहे होते थे , शेरा बीन्स, स्ट्रटस , स्प्रिंग जैसे भारी भरकम लफ्ज़ो से कुश्तियाँ लड़ना शुरू कर चुका होता था | 
लम्बे कद का पतला लैंकी शेरा ने जीवन में बहुत कुछ पाया , गाड़ी , घर , बीवी।।
पर कुछ ख्वाइशें ऐसी थी जो उसे सोने नहीं देती थी | 
टॉप परफ़ॉर्मर होने के बाबजूद शेरा को एक अदद ऑनसाइट अपोरचुनिटी की दरकार थी | 
ऐसी अफवाह थी कि उस बेचारे को अगर ऑन साइट के नाम पे बांग्लादेश भी भेज दिया जाता , तो वो भंगड़ा पाता हुआ जाता !

ज्यादा नहीं हो गया कुछ ? ऐसा भी क्या है , आई मीन , फॉक्स अरे गेटिंग पेड हैंडसमली इन इंडिया अस वेल | 
पहले जैसा नहीं है अब | 

रुकिए , भागिये मत ! ज़रा सोचिये , आपका एक हम उम्र साला है , आप ही की तरह की जॉब में | और वो छोटे बड़े दर्जनों  ऑन साइट असाइनमेंट्स पे जा चुका है | उसका इंस्ट्राग्राम अकाउंट यूरोप की एक्सोटिक लोकेशंस के फोटोज से भरा पड़ा है |  समझ गए न शेरा का दर्द !


ऑन साइट लगने की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी थी | 
पता नहीं क्यों चेले को हाजत हुई कि शेरा से मिलना चाहिए | 
उसने शेरा को मैसेज भेजा " शाम को नॉएडा के अट्टा मार्केट  में हूँ , मिलना हो तो आजा " 

शेरा आया ,  रीसीडिंग हेयर लाइन  और बढ़ते वजन में शेरा लड़का कम , पका हुआ आदमी सा लगने लगा था | 
उसने आते ही बड़ी गर्म जोशी से हाथ मिला बधाई दी , चेले के हाथ को उसने इस कदर दबाया कि उसकी उंगलियों में फंसी  ' किस्मत सही करने वाली ' अंगूठियाँ चेले की हथेली में गढ़ गई | 
" तो बाकि कहाँ हैं ? " उसने कैफे की कुर्सी पे तशरीफ़ रखते हुए बोला | 
"कोई नहीं , बुलाया किसे | तू इधर पास में रहता है सो सोचा तुझ से मिल लूँ , जाने से पहले| "

खैर , चाय की चुस्की लेते हुए शेरा खुलने लगा | 
" तू किस्मत का धनि है यार " ऐसा बोलते हुए उसने अपने हाथ की अंगूठियों को यूँ घुमाया जैसे मानों किस्मत के सिग्नल के लिए रिसेप्टर फाइन ट्यून कर रहा हो !

फिर अचानक से अति उत्साह में आता हुआ " यार सुना है ये गौरियां बड़ी आसानी से मान जाती है ! ऐश करेगा बेटा तू तो , वैसे भी तू तो छिछोरा टाइप का हुआ ठहरा ! "

चेले ने अपनी चाय का कप एक गोल चक्कर में घुमाया और बड़ी फीकी सी हंसी हंसा और बोला " तू साले अभी भी कॉलेज से निकले लड़को जैसी बात करता है "

फिर उसने कहना शुरू किया " यार अपनी लाइफ अब उस फेज में नहीं रही | 
मैनेजर को दो तीन बार टाल दिया मैंने | इस बार पीछे ही पड़ गया | कि कुछ भी हो जाना ही पड़ेगा | "

चाय की चुस्की ले चेले ने गाथा गान शुरू रखा " यार मैंने मैनेजर को बोला कि ऐसे बार बार जाने से मेरी पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब होती है | किसी और को भेज दो | 
ये बात तो तू भी मानेगा न कि बाहर जाने की वो चसक का अपना दौर नहीं रहा | यार फॅमिली है , लाइफ का अपना सेटल्ड रुटीन है| शार्ट टर्म बाहर जाना मीनिंगलेस है | है की नहीं ? "

चेला ज्यों ज्यों अपनी गाथा गाता जाता , शेरा का चेहरा फक्क सफ़ेद सो होता जाता | 
वो सपना जिसके पीछे वो बरसो से भाग रहा था , हर तंत्र मन्त्र से जिसे पूरा करने की जुगत भिड़ा रहा था , वो सपना बिना पूरा  ऑउटडेटेड  हो चला था | 
इतने बड़े मकसद को चेला , वो चेला जिसका अपना कोई हुनर न था , बस किस्मत की खाता था , वो चेला उस बड़े गोल को तुच्छ , बासी , टुच्चा घोषित कर रहा था " 

उन पलों में शेरा की सही मानसिक तरंगो को पढ़ना तो मुश्किल काम होता , पर हाँ इतना जरूर था कि वो अवसाद के गहरे दलदल में उतरता जा रहा था | उसने बोलना बंद कर दिया था और बस बाहर सड़क पे भागते ट्रैफिक को ताक रहा था | 
चेले ने भी चाय एक तरफ खिसका दी थी | उसकी निगाह शेरा के चेहरे पे टिकी थी | 
ऐसा लग रहा था जैसे शेरा के अवसाद में उतरते चेहरे से वो कुछ खींच रहा हो | 
वो सुख में था उसके चेहरे पे धीमी मुस्कान थी | 
काफी देर के बाद चेले ने गहरी सांस भरी, मुस्कान गहरी की और शेरा के कंधे पे हाथ मारकर कहा " और सुना।........ " 
            
                                                                         सचिन कुमार गुर्जर 
                                                                          14  अक्टूबर 2018 
 


 
  


   

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