गुरुवार, 29 जनवरी 2015

और मेरे मित्र की आँख के कोने में एक छोटा सा आँसू था !


कई दिन से बचता रहा  लेकिन शुक्रवार को ऑफिस के बाद ट्रेन  पकड़ने की भागादौड़ी में ऑफिस के मित्र से साक्षात्कार हो ही पड़ा ।

"यार तुम्हे वो लिंक भेजा था डोनेशन के लिए , किया कि नहीं ?"

"कर दूंगा यार ,टाइम नहीं मिला " मैंने टालने के मूड में बोला ।

"तुम बड़े इंसेन्सिटिव हो यार ! ,मैं तुम्हे समझदार समझता था । " मित्र ने उलहाना देते हुए जोड़ा ।


अचानक मुझे अहसास हुआ कि मेरे मित्र के कंधे पर ऑफिस के लैपटॉप का ही भार नहीं था बल्कि पूरे भारत में ईमानदारी का  साम्राज्य फ़ैलाने का भी भार था ।

"ये आखिरी मौका है भाई , इस बार भी ईमानदारी का राज  नहीं आया तो फिर दिल्ली को कोई नहीं बचा पायेगा । कोई भी नहीं ! "

"समझें ?''

फिर थोड़ी देर रेलवे ट्रैक के समांतर सड़क पर दौड़ती गाड़ियों को निहार कर जोड़ा "फिर शिकायत मत करना "

"सच ही कहते हो ,भाई " किसी वाद प्रतिवाद से बचते हुए मैंने बस हाँ भर दी ।

तभी अचानक उसके फ़ोन में हलकी सी आवाज़ हुई और मित्र ने  अपने ट्विटर के आइकॉन को  अंगूठे से छू भर दिया ।

''कल ग़ाज़ीपुर क्रासिंग पे एक भिखारी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए पाँच रुपए दिए । और मेरी आँखों में आँसू आ गए । इस दुनिया की सारी ताकतें उसकी दुआओं के आगे छोटी हैं " सबसे ईमानदार पार्टी के सौ टका ईंमानदार सरबरा का बड़ा ही इमोशनल ट्वीट आया था !

मित्र की आँखे चमक उठी और मुँह से निकला "ये बन्दा भी कमाल ही है यार , इस बार कोई नहीं रोक पायेगा !'

और मेरे मित्र की  आँख के कोने में एक छोटा सा आँसू था !

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