कई दिन से बचता रहा लेकिन शुक्रवार को ऑफिस के बाद ट्रेन पकड़ने की भागादौड़ी में ऑफिस के मित्र से साक्षात्कार हो ही पड़ा ।
"यार तुम्हे वो लिंक भेजा था डोनेशन के लिए , किया कि नहीं ?"
"कर दूंगा यार ,टाइम नहीं मिला " मैंने टालने के मूड में बोला ।
"तुम बड़े इंसेन्सिटिव हो यार ! ,मैं तुम्हे समझदार समझता था । " मित्र ने उलहाना देते हुए जोड़ा ।
अचानक मुझे अहसास हुआ कि मेरे मित्र के कंधे पर ऑफिस के लैपटॉप का ही भार नहीं था बल्कि पूरे भारत में ईमानदारी का साम्राज्य फ़ैलाने का भी भार था ।
"ये आखिरी मौका है भाई , इस बार भी ईमानदारी का राज नहीं आया तो फिर दिल्ली को कोई नहीं बचा पायेगा । कोई भी नहीं ! "
"समझें ?''
फिर थोड़ी देर रेलवे ट्रैक के समांतर सड़क पर दौड़ती गाड़ियों को निहार कर जोड़ा "फिर शिकायत मत करना "
"सच ही कहते हो ,भाई " किसी वाद प्रतिवाद से बचते हुए मैंने बस हाँ भर दी ।
तभी अचानक उसके फ़ोन में हलकी सी आवाज़ हुई और मित्र ने अपने ट्विटर के आइकॉन को अंगूठे से छू भर दिया ।
''कल ग़ाज़ीपुर क्रासिंग पे एक भिखारी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए पाँच रुपए दिए । और मेरी आँखों में आँसू आ गए । इस दुनिया की सारी ताकतें उसकी दुआओं के आगे छोटी हैं " सबसे ईमानदार पार्टी के सौ टका ईंमानदार सरबरा का बड़ा ही इमोशनल ट्वीट आया था !
मित्र की आँखे चमक उठी और मुँह से निकला "ये बन्दा भी कमाल ही है यार , इस बार कोई नहीं रोक पायेगा !'
और मेरे मित्र की आँख के कोने में एक छोटा सा आँसू था !
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