सोचूँ हूँ कि ये साला अपने दिम्माग के खोपचे में कभी बाबा बनने का विचार क्यों नहीं आया । धंधा चोखा है , रिस्क कम है ,मुनाफा ज्यादा । फिर इस धंधे में इतना आधुनिकीकरण तो हो ही गया है कि न तो अब लम्बी जटायें बढ़ाने की जरूरत है ना नाम में श्री श्री श्री लगाने की और ना ही गेरुए कपडे पहनने की ।
मैंने गूगल बाबा से पूछा कि महाराज रेसिपी क्या है , क्या एक तुच्छ प्राणी का बाबा के रूप में कायाकल्प हो सके है , या बन्दा गिरधारी के दरबार से ही किस्मत लेके उतरे है!
गूगल बाबा कहते है कि देखो भाई , बाबा बनने की गूठ रेसिपी अब लगभग तैयार है , सारे अवयव ज्ञानियों ने यहाँ वहाँ ,बखान कर रखे है ।बस यहाँ तहाँ बिखरे पड़े है ,आपको समेटने है । मतलब जे है कि अगर आप संजीदा है और दस पंद्रह साल का समय लगाने को तैयार है तो यकीन मानिए कि बाबा हो जाना तय है । हाँ , आप कितने ऊँचे बाबा बन पाएंगे वो आपकी क्षमता ,मेहनत निर्धारित करेगी । वैसे ही कि जैसे एक डॉक्टर तो बड़ी बड़ी डिग्रियाँ ले स्पेशलिस्ट बन ऊँचे ,पैसे वाले लोगो का तारणहार हो सकता है और दूसरा किसी गली नुक्कड़ का 'बबासीर एक इंजेक्शन में जड़ से खत्म ' टाइप का बंगाली डाक्टर हो सके है ।रोजी रोटी के लाले उसे भी नहीं!
इस लाइन में रिस्क भी कम ही है। अब कोई लंगोट का कच्चा निकल आये या सीधे ही 'आ बैल मुझे मार ' की तर्ज़ पे सरकार से भिड़ जाये तब तो किरकिरी होनी ही है ।
तो क्या है बाबा हो जाने की रेसिपी?
तय कर लें कि बस बाबा होना है :
सबसे पहले तो आप दिमाग में ठान ले कि बस भैय्या बाबा बनके ही दम लेना है । आधे अधूरे मन से धंधे में कूदने में हालत 'साँप छछूंदर ' जैसी हो सकती है,न उगलते बनेगा , न निगलते । मतलब , गाँठ बांध ले ,समय लम्बा लगेगा ,दस पंद्रह साल से पहले किसी रिटर्न की उम्मीद छोड़ दें ।
स्किल डेवलपमेंट से शुरुआत :
एक बार आपने मन बना लिया तो बात आती है स्किल डेवलपमेंट पर । धर्म ज्ञान पढ़े ,यहाँ वहाँ से थोड़ा बहुत वेद पढ़ ले ,मनोविज्ञान पढ़ लें ,कामसूत्र की किताब के चित्र देख ले । थोड़ा बहुत जादू मंतर सीख ले , जैसे बन्द मुट्ठी से धुँआ निकलना ,सोने की अंगूठी गायब कर देना ,हवा में से गुलाब का फूल तैयार का देना । भोली भली जनता पे इसका अच्छा असर पड़ता है आपकी प्रसिद्धि दिन दूनी रात चार गुनी हो सकती है ।
हालाँकि प्रतिवाद किया जा सकता है कि निर्मल बाबा ने तो कभी वेदो की बात नहीं की , न गंभीर धरम चर्चा छेड़ी और झंडे गाढ़ रहे हैंगे । तो इसका जबाब ये है कि सोच लो भैय्या कि किस लेवल का बाबा बनना है !शार्ट कट मार बंगाली डॉक्टर टाइप या भरी भरकम डिग्री वाले बड़े सर्जन माफिक !
ज्ञानोदय का दिन : फिर किसी अच्छे दिन सुबह सुबह 'मसाला एग हाफ फ्राई ' का नाश्ता कर अपने आस पास के लोगो में , इष्ट जनो में ,भद्र जनों में घोषणा कर दे कि भैय्या ,अभी अभी साक्षात् काली कमली वाले ने आकर जोर की ठोकर मारी है और आपके ज्ञान चक्षु खुल गए है । या कह दो कि आप फलाना के अवतार हो ,ढीमाका देवता आपके शरीर में साक्षात आ धरा है । कुछ हंसेंगे , खिल्ली उड़ाएंगे , पर साधक जुटते जाएंगे ।
वाक् क्षमता पे खासा जोर :फिर बात आती है ,वाक् क्षमता की । वाणी पे गज़ब का कंट्रोल , उतार चढाव ,घंटो बिना रुके बोलने की क्षमता ,भरी भीड़ में बिना हिचके बोलने की क्षमता , कही के तार कही जोड़ कहानी तैयार करने की क्षमता ये सब होना चाहिए । घबराये नहीं , ये सब एक दिन में नहीं होता । लगन रहेगी ,सुनने वाले जुड़ते जायेंगे तो धीरे धीरे निखार भी आ जायेगा,सुरसती लगन से जागत होवै है । सफर लम्बा है । फिर वो कहावत सुनी है न ' करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान ' । आपके दिन बहुरेंगे , बस जुटे रहे ।
बात का सच्चा , लंगोट का पक्का : अब बाबा होने के लिए अखंड ब्रह्मचारी होने की शर्त तो रही नहीं सो लिहाजा आम आदमी की तरह स्थिर गृहस्थ की पतवार लिए आगे बढ़ सकते है ।छोटे छोटे ,रहस्यमयी कैमरों की दुनिया में , धंधे में कूदने से पहले नसों में बलबलाते टेस्टस्टेरॉन की रफ़्तार को धीमा करना ज़रूरी हो चला है । काम की धूनी साधक को ही जला डालती है ,पूर्व में आये तमाम मामलों का हश्र आपको पता ही है। सालों की कमाई कुछ क्षणों की कामान्धता की भेंट चढ़ सकती है ।
इसकी कमाई , इसी में लगाई :कमाई पुनर्निवेशित करें । एक बार चढ़ावा आना शुरू हो जाये तो उसे तिजोरी में न रखें , सर्कुलेट करें , माता रानी की कृपा से दोगुना होकर आएगा । मिशन स्कूल खोले । अस्पताल खोलें । कम्बल बाँटे । नेत्र शिविर लगाये । फ्री योग कैंप लगाये । फोटो खिचाये । कृपा आ जाएगी । आपकी प्रसिद्धि फैलेगी ।
इसका न उसका , बाबा हूँ मैं सबका(क्लाईन्टेल डायवर्सिफिकेशन) : प्रयास करें कि आपके भक्त हर श्रेणी से आये । अगड़े -पिछड़े , अमीर गरीब ,पढ़े लिखे नकचढ़े ,सीधे साधे देहाती । इससे आपका मार्केट रिस्क कम हो जायेगा और सपोर्ट बेस भी तगड़ा रहेगा । किसी राजनैतिक दल की पूँछ थामने में रिस्क है । दूसरों के हत्थे चढ़ गए तो 'नारी लज्जा निवारण अन्तः वस्त्रम् ' पहन भाग जान बचानी पड़ सकती है । वैसे ,इट्स योर कॉल , आप रिस्क लेना चाहे तो ले सकते है ।
टीम वर्क मैन , टीमवर्क! : बिना मज़बूत और समर्पित टीम के सफलता संभव नहीं । काफी लोग लगेंगे । मैनेजर ,अकाउंटेंट ,फील्ड वर्कर ,गवैये ,नचैये ,बिचौलिये ,रास रचैय्ये ! एक मज़बूत ,मंझी टीम लगेगी । सबका ख्याल रखना होगा , रुपया पैसा से लेकर लत्ता कपडा तक !
ब्राण्ड मेकिंग और धारणा प्रबंधन : ब्राण्ड मेकिंग ध्यान देना बहुत जरूरी है । आप क्या पहने , किस तरह पहने । बाल कैसे हो , चाल कैसी हो ,कैसे हँसे , सब बातों पे करीने से ध्यान देकर अपना एक स्टाइल तैयार करे ।
अब तक आपकी चेलों की फ़ौज़ खड़ी हो चली होगी जो हर नुक्कड़ हर तिराहे ,हर गली मौहल्ले में , टीवी पर ,रेडियो पर ,गला फाड़ फाड़ चिल्लाएगी कि ' ये जो बाबा हैंगे , बड़े ही पहुँचे हुए बाबा हैंगे । इन्होने अलाना का फलाना कर दिया । फलाना का धीमाका कर दिया ।
टीम पर पैनी निगाह रखें ,रहस्य बनाये रखें । काम चल निकलेगा ।
अधिक और विस्तृत अध्यन के लिए हमारी शीघ्र छपने वाली पुस्तक '
बाबागिरी फॉर डमीस ' का इंतज़ार करें । कार्य प्रगति पर है! मोटी,साफ़ टाइप वाली ये सजिल्द किताब मार्च २०१५ तक फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध होगी ।
तब तक बोलिए , बाबा ठुल्लेश्वर महाराज की जय !
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