शनिवार, 22 नवंबर 2014

'मौसमी बुखार' बनाम साम्यवाद


कॉलेज के फर्स्ट ईयर हॉस्टल के उस कोने वाले कमरे में पिछले कई दिनों से प्लानिंग चल रही थी । रूम पार्टनर्स में सबसे छोटा और सबका चेहता दोस्त एकतरफा प्यार के मौसमी बुखार से पीड़ित था । लड़की पास के कला स्नातकोत्तर कॉलेज में समाजशास्त्र की छात्रा थी । कई दिनों से मॉक एनकाउंटर कर इजहारे-इश्क़ का रिहर्सल चल रहा था । वार्तालाप के हर संभावित पहलुओं को ध्यान रख एक लिखित प्रश्नोत्तरी बनायीं गयी थी और एक एक जबाब लड़के को रटाया  गया था ।
मुलाकात के  दिन दिल्ली वाले धनी दोस्त ने अपना नोकिआ ३३१० और टाइमेक्स नौटिका की स्टाइलिश हथघड़ी लड़के के हाथ में थमा उसे 'बेस्ट ऑफ़ लक' बोल विदा किया । उन दिनों विरलों के पास ही मोबाइल फ़ोन हुआ करते थे ,हाथ में नोकिआ ३३१० स्टेटस सिंबल होता था । चमक चौन्ध  से मन हरने की विधा पुरानी रही है और यहाँ वहाँ सफल भी होती रही है ।

देवदार के पेड़ो से घिरे पौड़ी कॉलेज के कला संकाय के बाहर सीढ़ियों के किनारे लगी रेलिंग से सटकर लड़के ने हिम्मत की । "सुनो , एक बात करनी थी तुमसे "
 ""मुझसे ?"  स्थिति का पूर्वाभास होने के बाबजूद लड़की ने ऐसे कहा जैसे किसी ने ग़लतफहमी में उसे पुकार लिया हो ।

"हाँ , तुमसे ही " ,लड़के ने   हिम्मत बाँध कहा ।
"हाँ , बोलो ,क्या बात है " प्रतिउत्तर मिला ।
" असल में , मैं काफी दिनों से सोच रहा था , कि....... मैं सोच रहा था कि.…… "
"जल्दी बोलो , मेरा समाजशास्त्र  का पीरियड शुरू होने को है " लड़की ने दबाब बनाते हुए बोला ।

" एक्चुअली , आय वांट टू हैव फ्रेंडशिप विद यू " , अंग्रेजी में हाथ तंग होने के बाबजूद उसके दोस्तों  ने उसे अंग्रेजी के जुमले ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की सलाह दी थी । उनका मानना था कि इसका प्रभाव अच्छा होता है और सफलता के चांस बढ़ जाते है !

"क्यों ,तुम्हारे और कोई दोस्त नहीं है क्या ?" लड़की ने थोड़ी खीज के साथ कहा ।
" नहीं , वैसे दोस्त तो है पर …" लड़का शर्माता हुआ बोला ।
"पर क्या ?"
"तुम मी तैं बहोत सुन्दर लग दी ,परी ! आय  मीन, आय  लाइक यू अ लोट " घबराहट में गढ़वाली में बह जाने के बाद लड़का दोस्तों के दिए वार्तालाप के फॉर्मेट से चिपकते हुए बोला ।

" मुझे टाइमपास करने वाले लड़के बिलकुल भी  पसंद नहीं ,और तुम पहले तो हो नहीं " लड़की लगभग उखड़ती हुई बोली ।
 " लेकिन मैं  सच में.तुम्हे चाहता हूँ । "
"दूसरे भी तो यही बोलते है ,उनका क्या करुँ ,पहले उन्होंने बोला है , तुम तो कतार में बहुत पीछे हो "
"हाँ लेकिन ,मैं मैं सच में ........"
लड़की एक साँस बोलती चली गयी "तुम ही बताओ , पहला हक़ उनका है कि नहीं ,कतार तोड़ तुम्हे चांस देना गलत होगा कि नहीं ? मैं  ऐसा पाप क्यों करूँ ? "

"तुमने कार्ल मार्क्स का 'लैटर टू हिज फादर ' पढ़ा है , इतिहास में वही लोग महान होते है जो सबके हित के लिए काम करते है । सबसे खुशनसीब लोग वो होते है जो ज्यादा से ज्यादा लोगो को खुश रखने के लिए प्रयासरत रहते है "

"हाँ ,वो तो है लेकिन........ " लड़की के साम्यवादी और 'सबका हक़ बराबर'  के तर्क ने  बातचीत के फॉर्मेट का रायता कर दिया । दरअसल , पिछली दिनों में लड़के के दोस्तों ने उसे जो संभावित प्रश्नोत्तरी रटाई  थी उसमे इस सिनेरियो(संभावित परिस्थिति) का जिक्र ही नहीं था ।

"कुछ और बोलना  चाहते हो..... हुँह"
जबाबी तर्क ढूंढने की कोशिश में लड़का आसमान की ओर गर्दन उठा  शुन्य में खो गया ।
"चलो बाय ! "  बातचीत का आकस्मिक पटाक्षेप कर ,बिजली की तेजी से कदम बढ़ाते हुए लड़की कला संकाय के बरामदे की ओर बढ़ गयी । लड़का निरुत्तर ,झुके कंधे ,पतली कलाई में माँगी हुई ढीली घडी को घुमाता अपने हॉस्टल की ओर लौट आया । कई दिनों का रिहर्सल ,नोकिआ ३३१० फ़ोन ,महंगी घडी और अंग्रेजी के जुमले , साम्यवादी तर्क के आगे तार तार हो बिखर गए ।

शाम की चाय के बाद बुखार हल्का होने पर लड़के ने अपने मार्गदर्शक रूमपार्टनर से पूछा "यार टिंकू , ये साला कार्ल मार्क्स कौन हुआ ठहरा ?नाम तो सुना सुना है ?"
" इंग्लैंड का प्रधानमंत्री था यार " ,सर्वज्ञानी टिंकू  ने पलक झपकते ही अपने सहजज्ञान से  जबाब थमा दिया !




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