गुरुवार, 20 नवंबर 2014

ये जो पॉइंटर है न पॉइंटर !

यूँ तो उस छोटे कद के शर्मीले ,गवई लड़के का जेहन तमाम तरह के कोम्प्लेक्सेस से भरा हुआ था , पर कॉलेज का पहला सत्र पार  कर लेने के बाद भी और प्रोफेसर लोगो की सुझाई सब किताबों में झाँकने के बाबजूद भी लड़के के समझ में ये नहीं आया कि  आखिर ये पॉइंटर क्या बला है ,कैसे ये लिंकलिस्ट में इधर से जुड़ उधर जुड़  जाता है और क्या क्या गुल खिलाता है ।  फिर कुछ एडवांस लड़के होते है न , जिन्हे पहले से ही सब कुछ आता है , उनकी बातें सुन लड़के का दिल और भी बैठ जाता  ।
कंप्यूटर साइंस के विद्यार्थी को अगर प्रोग्रामिंग ना आये तो ये ऐसे ही है जैसे किसी चितेरे को चित्र उकेरना न आये ।

'पॉइंटर्स इन सी ' की किताब हाथ में उठाये ,त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए ,कम्प्यूटर डिपार्टमेंट के कोने वाले केबिन में अपने प्रोफेसर के पास पहुँच जाता है और दर्द बयां करता है । गहरी ठंडी साँस ले प्रोफेसर लड़के के हाथ से  किताब ले ,मुड़े पन्ने को सीधा कर मेज पर रख देता है और अपनी खिचड़ी दाढ़ी खुजलाते हुए कहता है ' देखो बेटा, ये जो पॉइंटर है न पॉइंटर , इसको समझने का और फिर करने का स्पार्क तो बन्दे के अंदर से खुद-ब-खुद  ही आता है । जिसे आता है ,आता है । जिसे नहीं आता , नहीं आता । '

सीन कुछ ऐसा ही था जैसे किसी गंभीर , नाउम्मीद मरीज़ की नाड़ी  देखे बिना ही लुक़्मान हकीम शक्ल देख कर ही कह दे कि "देखो जी ,इसे दवा की नहीं ,दुआ की जरूरत है । किस्मत में  होगा तो जी मिलेगा। "

उस लड़के ने स्क्रीमिंग थेरेपी के बारे में सुन रखा था । वो अपने हॉस्टल के पीछे वाली पहाड़ी की चोटी पर चढ़ कर खूब ज़ोर ज़ोर से चिल्लाता  । इस आस  में कि शायद कही सिगरेट के धुएं से धूसरित फेफड़ो के तले दबा वो 'स्पार्क' पड़ा हो जिसकी चमक से ज्ञानतंतु हिल जाये और एक जबर प्रोग्रामर का उदय हो।
उसके बाद कई मौसम आये गए हुए । पहाड़ो पे बर्फ गिरी, मानसून के बादल बरसे ,हरियाली आई । ग्रीष्म ने घास के तुनको को सुखाया ,जलाया । पर अफ़सोस ,वो 'स्पार्क' कभी नहीं  आया ।

सालों बाद उस लड़के के पास उसके गाँव के एक अनुज का फ़ोन आया जो बावरा उसी पथरीली राह पर चल पड़ा था। उसने पूछा 'भैय्या ,बाकि तो सब ठीक है लेकिन कंप्यूटर साइंस में दाखिले के बाबजूद ये जो पॉइंटर है न पॉइंटर , कुछ ढंग से समझ नहीं आता '

लड़के ने बड़े विस्तार से और गंभीर हो समझाया ' हे अनुज ! ये आईटी सेक्टर है न , इसे नदी या नाला मत समझो ,ये समंदर है समंदर । इसमें सब खपते है । गधे भी ,घोड़े भी और खच्चर भी । धैर्य धारण  करो , जो समझ आता है उसी को समझ लो । बतियाना सीख लो , चटियाना सीख लो , सुटियाना सीख लो ,लगाना सीख लो,इश्क्क़ियाना सीख लो ।
मतलब जो सीख सकते हो सीख लो , सबकी अपनी अपनी कला है , किसी को कुछ आता है तो किसी को कुछ आता है । सबकी अपनी जगह है  और सब काम आता है ।
 
फिर कुछ गहरी साँस के बाद ' वैसे सुनो !,ये जो पॉइंटर होता है न पॉइंटर इसको समझने का और फिर करने का स्पार्क तो बन्दे के अंदर से ही आता है । जिसे आता है ,आता है । जिसे नहीं आता है , नहीं आता है । '



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