शुक्रवार, 21 मई 2010

सिंगापुर डायरी III

अब जबकि यहाँ आये ३ हफ्ते हो चुके है..सिंगापुर की उपोषण जलवायु और चटक भड़क के बीच ये
सात्विक प्राण रमने लगा है..
हालाँकि ज्यादातर समय कार्यालय सम्बन्धी क्रिया कलाप में ही निकाल जाता है ,पर जब भी समय मिलता
है , तो मैं अपना समय यहाँ की व्यवस्था और कार्य प्रणाली के अध्ययन में लगाता हूँ |
सिंगापुर मशीनों और व्यवस्थाओ की नगरी है | मानव जीवन को सरल सुगम बनाने के तमाम ताम-झाम यहाँ एकत्रित है ...और पल झपकते ही आपकी सेवा मैं हाज़िर हो जाते है...
बस आपके पास डालर देवता होने चाहिए..

संवर्धित रोटी और पराठे: यहाँ अगर अगर किसी चीज़ की सबसे ज्यादा याद सताती है तो वो है अपने घर के खाने की| भारतीय रेस्तराओ की कमी तो नहीं , पर स्वाद को सर्वमान्य बनाने के चक्कर में,अपना मूल स्वाद छू मंतर है..
ऐसे में मेरे एक आलसी दोस्त नें मेरी घर में पराठे बना के खिलाने की फरमाइश पूरी करने की बात की, तो मैं आश्चर्यचकित रह गया ..
महाशय इस हद तक आलसी ,कि प्यास से मर सकते है पर बिस्तर से उठ कर पानी तक नहीं पी सकते...
मैं दिग्भ्रमित ,आशंकित सा कुछ ना बोला ,बस उसका किचन से वापस आने का इंतज़ार करने लगा...
ये क्या २ मिनट में वो मेरे सामने गरमा गरम आलू के पराठे लेकर हाज़िर हो गया...
ये कमाल कैसे ?? किचन में जाकर देखा , तो माजरा समझ में आया...इंसानी खुराफात की हद हो गयी..
जालिमो ने आलू पराठे और रोटी को भी संबर्धित कर पैकेट में फिट कर दिया..
पैकिट से निकालो और गरम तवे पे सेकते ही गरमा गरम रोटी ,पराठा हाज़िर है..

बहुउद्देशीय परिवहन कार्ड :
अगर आपके पास दिल्ली की ब्लू लाइन बसों में सफ़र करने का दर्दनाक और मुश्किल भरा अनुभव है , तो सिंगापुर
की चोक चोबंद बस व्यवस्था के आप मुरीद हुए बिना नहीं रह सकते ..
बसे समय की पाबंद है , बस स्टाप पे खड़े हो जाइये ..तय समय पर आकर बस आपकी सेवा में हाज़िर हो जाएगी ..ना १ मिनट ऊपर ना एक नीचे ...
बस में कोई संचालक नहीं...बस बस में घुसते ही अपना जादुई Easylink कार्ड साइड में लगे संवेदी सयंत्र पे छु भर दीजिये ..किराये का भुगतान हो गया..Easylink  card यहाँ की MRT ( कुछ कुछ अपनी मेट्रो जैसी) में भी चलता है..
बस समय समय पे अपने कार्ड को टापअप करते रहे..
सुना है कुछ departmental  stores  में भी easycard से ही शौपिंग की जा सकती है....
अच्छी व्यवस्था है ये|
पाश्चात्य की विषक्क्त जड़े : सिंगापुर का विकास तंत्र पाश्चात्य प्रणाली पे आधारित है .सो विषाख्त जड़े भी वक़्त के साथ गहरा रही है...
परिवार टूट रहे है...युवा पीड़ी का पुरानी पीड़ी के साथ टकराव साफ़ नज़र आता है...रिटायर हो चुके और जीवन के आखरी दशक में जी रहे लोग टैक्सी चलाते मिल जायेंगे ..पैसे की कमी मूल कारण नहीं..कारण है अकेलापन ..
बच्चे पंख निकलते ही स्वछंद उड़ान उड़ चुके है ..शाम के धुधलके में भी उनके पुराने घरोंदे में लौटने की आस नहीं..
तलाक का चलन अपने शबाब पे है..
बूढ़े प्राण द्रवित है और डालर भूख और आधुनिकता की आंधी को कोस रहे है..
खान पान पैकिट और डिब्बो में सिमट चूका है ..बीयर बार चलन में है ..रात्रीचर प्राणी बढ़ रहे है ..
मूल संसकृति सिसक रही है , आधुनिकता के बड़े झाड के नीचे कही दम तोड़ रही है.
ये सब बातें मेरे मन की नहीं ,उन पचासों टैक्सी चालको से बात्चीत पे आधारित है ,जिनके साथ मैंने ऑफिस से होटल और होटल से ऑफिस के यात्राये की है..

1 टिप्पणी:

  1. Khusi hui jankar ki hasanpur ke pehle navjawan ne kisi videshi dharti per kadam rakha aur apni drishti se aanklakan kar raha hai wahan ke logon, unki jeevan saili, vaibhavta evam unnati ka... asha hai jeevan ke is anubhav ka sachin apne , apne samaj aur sampark me aane waale sabhi logon per ek vyapak chap chorega....

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