आप अपने जीवन से संतुष्ट थे | अपनी औकात से वाकिफ | क्या साध्य है क्या आसाध्य इससे परिचित | इच्छाएं तिलांजित किये हुए |
फिर कोई मिल गया | चढ़ते सूरज के साथ नहीं मिला | तब मिला जब सूरज दोपहर के बाद ढलान पर था | वो मिला तो उसने बड़े प्यार से कहा "आप बुद्दू हो , एकदम पागल |आपको पता ही नहीं रहा कि आप क्या हो | क्या डिसर्व करते हो| "
उसकी बात आपको जँची | थेरेपिस्ट , लाइफ कोच आपको समझाते रहे | सालो साल समझाते रहे | सेल्फ एस्टीम , सेल्फ बिलीफ , पॉजिटिव अफर्मेशन वगैरह वगैरह | पर आप हमेशा अपने को कम आंकते रहे | सबसे मृदुल रहे पर खुद को हमेशा कठोर नज़र से देखा | किसी की बात आपको मुतमईन न कर सकी |
पर उसकी बात आपको जँची !
ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर का हिसाब लिया जाने लगा | आप फ़ोन ना करो तो सामने वाला परेशां होता | शिकायतों का अम्बार लगता | आप असहज होते | वो यूँ कि आपको इस कदर देखभाल की आदत कहाँ रही | एक माँ और नानी केअलावा आपको कब किसने पुचकारा | हाँसिये पर लटके जीने की आपकी आदत रही | बेगौरी में पला ,कतार में खड़ा आखिरी आदमी | जिसने होने न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता | पर उसने आपको एहसास कराया के आप कोई बेशकीमती नगीना हैं , जिस पर नज़र रखना बेहद जरूरी है | पहली बार आपने उसकी नज़रो में , उसकी आवाज़ में, आपको खो देने का डर देखा |
और फिर आप बह गए | इस कदर बहे कि कह बैठे "सुनो , हम तुम्हारे बिना रह नहीं सकते | प्रेम है तुमसे , बेहद प्रेम !"
बस वो दिन आपकी जिंदगी के सुकून का आखिरी दिन था |
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