शुक्रवार की शाम का अपना एक दबाव होता है | दबाव यह कि शाम जाया नहीं होनी चाहिये | और इसी के मद्देनज़र मैंने दो तीन दोस्तों को संदेशा भेजा है कि शाम को मिला जाए | ऑफिस की सीढियाँ उतरते हुए सोच रहा हूँ कि पी जाए या न पी जाये |
अकेले पीने का कोई मूड नहीं है | बिना संगत पीना भी कोई पीना है |फिर अभी पिछले हफ्ते अपने गृह प्रवास के दौरान मैंने ठीक ठाक मात्रा में 'ब्लैक डॉग' और '१०० पाइपर्स' धकेली है | हाँ या ना , बस इसी ऊहापोह में रिवर फ्रंट की तरफ बढ़ा चला जा रहा हूँ |
रैफल्स पैलेस जनपथ के साईडवॉक पर एक गोरा खड़ा है , उम्र के गुलाबी सालों में है | दो बीगल्स लिए है | सफ़ेद , लाल , काले चक्क्ते वाले बीगल्स | उनके कान उनके मुँह से बालिश भर नीचे तक लटके है |
मुझे बीगल्स औसत ही लगते है | लेकिन ट्रैन स्टेशन से रिवर फ्रंट को आती दो चीनी बालाओ से रहा नहीं जा रहा | "ओह्ह सो क्यूट सो क्यूट !" वे ख़ुशी से उछल रहीं हैं | उनके दूधिया हाथ तालियाँ बजा रहे है | वैसे ही जैसे छोटे बच्चे अति उत्साह में बजाते हैं | उनमे से एक गोरे से पूछती है कि क्या वो उन्हें छू ले | 'यस , स्योर ' गोरा इज़ाज़त दे देता है |
यहाँ मुझमे थोड़ा बहुत कॉग्निटिव बायस हो सकता है , पर आप शुक्रवार की शाम को, सिंगापुर के रिवरसाइड वाक पर , कुत्तों के टहलाते जवान गोरे को कामदेव ही समझिये | जहाँ निशाना लगा तीर चला दे , बड़ी आसानी से खींच लेगा | सीमलेस , एफर्टलेस !
सोच रहा हूँ , आदमी अगर सही जगह, सही जीन पूल में पैदा हो जाये तो सब कुछ कितना सहज हो जाता है | कम से कम भौतिक स्तर पर तो हो ही जाता है |इसके इतर मेरे जंगल के आदमी को सब कुछ कमाना होता है| नौकरी, घर , गृहस्थ , बच्चो की पढाई , हेल्थ इंसोरेंस , माँ बाप का बुढ़ापा , गाढ़े दिनों के लिए कोई जमीन का एक्स्ट्रा प्लाट , बीवी के गहने और किस्मत हुई तो थोड़ा बहुत प्यार | सब कुछ परिश्रम से ही है | लाइफ अपहिल टास्क मोड में ही रहती है |
उन कुत्तों से मुझे याद पड़ा है कि कॉर्पोरेट ऑफिस का पट्टा अभी तक मेरे गले में लटका हुआ है | मैं झुंझला कर उसे लैपटॉप बैग की साइड पॉकेट में सहेज रहा हूँ | मुझे कुत्ता होना मंजूर नहीं |
सच्ची? नहीं, मेरा मतलब है , ऐसा कुत्ता होना मंजूर नहीं जिसे घडी घडी दुत्कारा जाए | ऐसा नहीं, जिसकी दुम हमेशा मारे डर पिछवाड़ा ही ढाँपती रहे |
हाँ , ऐसा कुत्ता होने में मुझे कोई गुरेज नहीं जिसके गालों पर कोई हलकी सी थपकी देकर कहे "सो क्यूट !"
उम्र के साथ मुझमे सब कुछ सिकुड़ रहा है | सिवाय मेरी नाक के | एक नाक है जो दिन प्रतिदिन , इंच दर इंच बढ़ती जा रही है |
फिलहाल ये नाक नदी किनारे कतारबद्ध बने रेस्टोरेंट्स के किचनस तक जा रही है | चिकन विंग्स , चिकेन ब्रैस्ट स्ट्राइप्स विथ सोया सॉस, ग्रिल्ड सैमन , डीप फ्राइड प्रॉन , टर्टल सूप , रोस्टेड गूस , पैन स्टिर लॉबस्टर , ग्रेवी क्रैब | एक से एक एक्सोटिक फ़ूड आइटम्स | मेरे नथुने फूल रहे है | गला जेठ की दुपहरी में दरकी जमीन सा बिलबिला रहा है | पेट में ऐठन हैं | कॉर्टिलेस की कमी से हर कदम के साथ घुटनों से टक टक की आवाज़ आ रही है |
एक, दो, तीन, चार, और पांच | पाँचवे ओपन एरिया रेस्टोरेंट तक पहुंचते पहुंचते मेरे घुटने जबाब दे गए है |
और सूखे गले से , नवयौवना वियतनामी वेट्रेस से मैं बमुश्किल इतना भर कह पाया हूँ " वन कार्ल्सबर्ग प्लीज !"
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