रविवार, 21 अप्रैल 2019

इज़्ज़त की खातिर

माँ पहले भी कई बार बोल  चुकी थी कि शादी बिहा में आया जाया करो। जब हम ही किसी के वहाँ नही जायेंगे तो हमारे  यहां कौन आएगा?
फिर समझाया " देख बेटा , रिश्तेदारी मिल्लतदारी , ये सब भी लेन देन ही है | बिज़नेस ही समझो । बिजी तो सभी है|  आदमी शिरकत करने से पहले ये  सोचता है कि सामने वाला भी कभी उसके यहाँ बिहा कारज में हाज़िर हुआ था कि नही | "मुझे खुद भी अहसास हुआ कि ये नौकरी मजूरी के चक्कर में आदमी समाज से कट जाता है।इस सबके मद्देनज़र मैं माँ के साथ उस शादी में शामिल होने शहर तक चला गया था।

यकीन मानिए , इस तरह की शादियों का इंतज़ाम मैंने पहले कभी नही देखा था।
हालांकि इस मुल्क में जितना पैसा शादी विवाह में बहाया जाता है उतना दुनिया मे कही नही।पर मुद्दा कुछ इतर है।

लड़की की मंडप में एंट्री बड़े ही बॉलीवुड अंदाज़ में हुई, मैंने कल्पना नही की थी।
पता नही कोई डांस ट्रूप की लड़कियां थी या लड़की की सहेलियां, पर एंट्री किसी धर्मराज प्रोडक्शन की फ़िल्म माफिक ही थी।
कतारबद्ध लडकिया डांस करती हुई बढ़ रही थी। दुल्हन के भाइयों ने दुल्हन के ऊपर फूलों की चादर लगा रखी थी | और कुछ तरह पूरा  ग्रुप जयमाला स्थली की ओर बढ़ा रहा था।
बड़ी मोहक झांकी थी।दो कैमरा लगे ड्रोन ऊपर उड़े जा रहे थे। रिवॉल्विंग जयमाला स्टैंड था  , जिसके चारो तरह गोलाई में कुर्सियां सजी थी |  सब कुछ बॉलीवुड स्टाइल में था ।

मैं समाज की तेज रफ्तार से किस कदर कट गया था ,इसका एहसास मुझे तब हुआ जब जयमाला के बाद दूल्हा दुल्हन डांस फ्लोर पे आये।गाना चला " वे मैं लोंग दी तू लाची | "
और फिर " तुमसे मिले दिल मे उठा दर्द करारा " पे दोनों ने एक दूसरे को बाँहों में ले बड़ा ही जबरदस्त डांस किया | इतनी बेहतरीन कोरियोग्राफी  और ऐसा जबरदस्त डांस कि बस। अलौकिक ! शायद महीनों से तैयारी करते रहे होंगे।लड़की हॉस्पिटल में नर्स थी | लड़का किसी सरकारी महकमे में नौकर था। लव मैरिज थी| घरवालों की सहर्ष सहमति के साथ | ये किसान परिवारों के लोग थे| 

खाना खाते वक्त लड़की के पिता हमारे पास आये | चेक की शर्ट और सलेटी पेंट के ऊपर जवाहर कट जैकेट डाले हुए थे | राजस्थानी पग पहना था जो थोड़ा ढीला था और सिर से एक तरफ झुक आया था | रामा किसना करने  के बाद वे माँ से बोले" कोई कमी तो नही बहन इंतेज़ाम में ? "
माँ को तारीफो के पुल बांधने में महारत हासिल है और उसने अपना रोल बखूबी निभाया| 
वे जाने को हुए| एक दो कदम चले , फिर ठिठके और बोले" यो काम ससुरा हमारी मर्ज़ी का न है।पर क्या करे बच्चो की बात माननी पड़े है | "
उनका इशारा दूल्हा दुल्हन और गैंग के डांस कम्पटीशन की तरफ था।
"कोई न भैया, नया जमाना है"  माँ ने आयोजन को उचित ही ठहराया।

" बस बच्चों की खुशी में अपनी खुशी रखनी पड़ा करे है बहना । इज़्ज़त खातिर सब करना पड़े है | " इतना कह वे  दूसरे मेहमानों की ओर  मुखातिब हो गए।
मुझे वे  बेहद प्रगतिशील और सभ्य लगे।अच्छी अनुभूति थी।

वापस आते हुए मैं कार ड्राइव करता हुआ सोच रहा था कि हमारा समाज भी कैसा है| एक और कितना प्रगतिशील दिखता है, लड़कियों को बराबरी का हक़ देता , एक खूबसूरत तस्वीर पेश करता है।
वही दूसरी ओर तालिबानी सोच का प्रदर्शन भी आने दिन हो ही जाता है।
मिसाल के तौर , बमुश्किल दशक भर पहले ही एक होनहार लड़की का दर्दनाक अंत मेरे अंतर्मन को झकझोर गया था।

वो लड़की एम बी बी एस डॉक्टर हो  गयी थी। बात साथी चुनने की हो तो डॉक्टर लोगों को डॉक्टर ही भाते हैं | साथ के ही डॉक्टर से प्रेम हो गया। दिक्कत यही कि लड़का विजातीय था। 
मान मनौब्बल के दौर चले।माँ ने बेटी की ठोड़ी में हाथ डाल कहा "मान जा मेरी बच्ची , दूध का वास्ता | " लड़की ने कहा "ठीक है , मान जाती हूँ | कहीं और भी रिश्ता नहीं करुँगी | ऐसे ही समाज सेवा करुँगी | " लेकिन ये भी किसी को मंजूर नहीं | माँ बाप नही समझा पाए तो  चाचा ने धमकाया" मान जा कुलक्षणि क्यो विनाश की और ले जाना चाहवे है| " लड़की नही मानी।आखिर उसकी रगो में उन्ही का खून था | कोई झुकने को तैयार न हुआ | 

महीनों यूँ ही तनातनी में बीते | फिर हुआ ये कि एक  दिन लड़की के चाचा कहीं से जहर की शीशी ले आये और लड़की में हाथ धर बोले " जा , हमें मुक्ति दे | "

लड़की ने भाग कर कमरा बंद कर लिया और जहर हलक में उतारने से पहले इतना ही बोला " माँ , हर कोई मुझ मरी का मुँह देखे | पर इतना रहम करिये कि ये आदमी मेरी मिट्टी न देखे |"हवेली में हाहाकार मच गया | लड़कों ने दरवाजा तोड़ उसे बाहर निकाला | रसोई में रखा किलो भर घी जबरन उसके पेट में धकेला गया | जहर धीमा था | परिवार की औरतें गिड़गिड़ाई , डॉक्टर को बुलाओ | पर चाचा पर तो शैतान हावी था | खड़ा हो गुर्राया "खबरदार जो कोई घर की दहलीज से बाहर निकला तो | "  जीवन की जोत बुझने में देर लगती देख उसने भतीजी के फैले मुँह को रूई के फाहे की तरह भींच दिया और मुँह फेर भारी आवाज  में बोला " तू जा बेटा , तू जा | तू रहेगी तो पूरा परिवार दुखी रहेगा | मैं तो संतान हत्या का नरक भोगूँगा ही | पर तू जा | चली जा | " और फिर वो इंसान सबके साथ खूब हिड़की बाँध बाँध रोया |  

उस घर का यश उस लड़की के साथ ही चला गया। छः महीने पीछे लड़की के पिता की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी। फिर माँ भी निकल गयी। डेढ़ साल में उस घर से तीन तीन लाशें निकलीं।

दो तीन जिलों में चर्चा हुआ था कि बड़ा  जुल्म हुआ।उस ज़माने में ऍम बी बी एस लड़कियाँ उँगलियों पे गिनने भर की थीं | 
भरा पूरा परिवार |  इज़्ज़त के चक्कर मे परिवार पर कहर बरपा दिया था चाचा ने ।
पर लोग समर्थन में भी थे । आदमी इज़्ज़त के खातिर  सीने पे पथ्थर भी रखता है। लड़की को इतना ज्यादा पढ़ाना लिखाना भी ठीक नही।

माँ बगल की सीट में गुमसुम बैठी थी तो मैंने कुरेदा" मां डांस कैसा लगा दूल्हा दुल्हन का?"

जबाब में मैं माँ से कुछ हल्की फुल्की टिप्पणी की उम्मीद लिए था| पर माँ के चेहरे पर गहरी खीज उभर आई थी ।

" देखा तूने, आज कैसे ये आदमी समझदार बनके दिखा रहा था, के ....के ..बच्चों की खातिर सब करना पड़े है ,उनकी बातें माननी पड़े हैं| हुह | "

माँ का चेहरा तिलमिला रहा था" इसकी इज्जत न गयी आज | हज़ार आदमियों के सामने इसकी लड़की ने दूल्हे से लिपट लिपट ' दर्द करारा,दर्द करारा' पे नाच किया। आज न गयी इसकी इज़्ज़त?"

मैंने धीमी आवाज़ माँ को समझाया " जमाना बदल गया माँ  और तुम वही पुराना अलाप। ये सब अब आम है अब | वे  अच्छे आदमी है,| जमाने की रफ्तार से कदम मिला के चल रहे हैं | "

" प्रगतिशील आदमी वही होता है माँ जो वक़्त की नब्ज पकड़ कर चले।"

माँ अब बुरी तरह से भड़क गई,उसने मेरी कनपटी पर अपनी हथेली मारी" अरे मेरे बाबले , तू पहचाना न क्या?"

"ये ही तो है मुख्तार सिंह | "
"परिवार की इज़्ज़त की खातिर होनहार ,एम बी बी एस, भतीजी का गला दबाने वाले मुख्तार सिंह | "
" हँसते खेलते परिवार को इज़्ज़त के झूठे आडम्बर की भेंट चढ़ाने वाले मुख्तार सिंह | "

" ओह मेरी माँ !" मेरे मुँह से इतना ही निकला।
मेरा कलेजा मुँह से निकल आने को हुआ | गाडी के स्टेयरिंग पे रखे मेरे हाथ मारे गुस्से और रौस के कांप रहे थे | 

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