"अरे भाई , जागे हो या सो गए " बस इतनी सी आवाज़ हुई, मरियल सी । उसके बाद वो आकृति गुप्प अंधियारे में लुप्त हो गयी । गाँव से थोडा सा छिटक कर बसे उस घर में रोशनी हुई। थोड़ी देर बाद मकान मालिक ने दीवार मे बने मोखले से बाहर झाँक कर देखा । पडोसी भी छत पर चढ़ आया । दोनों इधर उधर टॉर्च लगा कर टोह लेने लगे । कोई आदम बच्चा नज़र ना आया दूर दूर तक ।
उसके बाद उस रात उन दोनों घरों में पूरी रात रतजगा रहा । दोनों पडोसी खुली छत पर खटिया डाल बतलाते रहे , बीड़ियाँ फूँकते रहे , जोर जोर खाँसते रहे ।
उसके बाद उस रात उन दोनों घरों में पूरी रात रतजगा रहा । दोनों पडोसी खुली छत पर खटिया डाल बतलाते रहे , बीड़ियाँ फूँकते रहे , जोर जोर खाँसते रहे ।
इधर मरियल से मरियल भैंस भी पचास हज़ार की आती है आजकल । ऐसे में अगर किसी किसान की पाँच पाँच मुर्रा भैंसे खूंटे से बंधी हो तो नींद कम ही आती है ।
किसान के पास दो विकल्प होते है । या तो अपने घर द्वार , पशुशाला को किले जैसी मजबूत दीवारों से अभेध बना लें और दोमंजिली पर चढ़ सोये । या फिर कुकर नींद सोये, हर आहट को सूंघे, हर हलचल पे जोर जोर से खाँसे , बीड़ियाँ फूँकता रहे ।
पशु तस्कर आसपास के इलाके के कसाई ही होते है अक्सर । उनकी राजनैतिक पकड़ मज़बूत होती है , पुलिस पे भी सिक्का चलता है और वे किसी न किसी सफेदपोश की छत्रछाया में फलफूल रहे होते है ।
उनकी अपनी रूलबुक होती है और वे उसी के हिसाब से काम करते है ।
अमूमन ऐसा होता है कि वे अपने लोकल नेटवर्क के जरिये गाँव में किसी कमजोर शिकार की निशानदेही करते है । फिर रात के समय उनका टोही जाता है और पता करता है कि किसान और उसका परिवार किस हद तक बेफिक्र सोता है ।
सब कुछ सही लगा तो चुपके से मवेशी खींच लिए जाते है । एक दो नकाबपोश तमंचा लोड किये तैयार रहते है कि अगर जागत हुई या पीछा किया गया तो फायर झोंक रास्ता साफ़ किया जा सके । तस्करों की नज़र में इंसान और कददू में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता । काम करते वक़्त एक आध किसान मज़दूर ढेर जाए तो परवाह नहीं ।
ट्रक में मवेशियों को सवार करते ही काँट छांट शुरू हो जाती है । तस्करों के पास आजकल बैटरी से चलने वाली गिलोटिन मशीन आ गयी है । पाँच मिनट में ही सिर धड़ सब अलग कर माल तैयार हो जाता है ।
सेफ जोन में पहुँचते ही मीट एक दूसरे ट्रक में बर्फ लगा कर एक्सपोर्ट रेडी कर दिया जाता है । खाल की तह बना गोदाम में धूप दिखाने और टैनिंग के लिए भेज दी जाती है ।
दो से तीन घंटे में में ये प्रक्रिया पूरी हो जाती है । कुल मिला के किसान को जब तक अपने मवेशियों के चोरी होने का पता चलता है , सारी प्रोसेसिंग हो माल बिक्री के लिए तैयार हो चुका होता है ।
सब कुछ सही लगा तो चुपके से मवेशी खींच लिए जाते है । एक दो नकाबपोश तमंचा लोड किये तैयार रहते है कि अगर जागत हुई या पीछा किया गया तो फायर झोंक रास्ता साफ़ किया जा सके । तस्करों की नज़र में इंसान और कददू में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता । काम करते वक़्त एक आध किसान मज़दूर ढेर जाए तो परवाह नहीं ।
ट्रक में मवेशियों को सवार करते ही काँट छांट शुरू हो जाती है । तस्करों के पास आजकल बैटरी से चलने वाली गिलोटिन मशीन आ गयी है । पाँच मिनट में ही सिर धड़ सब अलग कर माल तैयार हो जाता है ।
सेफ जोन में पहुँचते ही मीट एक दूसरे ट्रक में बर्फ लगा कर एक्सपोर्ट रेडी कर दिया जाता है । खाल की तह बना गोदाम में धूप दिखाने और टैनिंग के लिए भेज दी जाती है ।
दो से तीन घंटे में में ये प्रक्रिया पूरी हो जाती है । कुल मिला के किसान को जब तक अपने मवेशियों के चोरी होने का पता चलता है , सारी प्रोसेसिंग हो माल बिक्री के लिए तैयार हो चुका होता है ।
आबादी से थोड़े से हटे उन दो घरों में काफी मवेशी है और दीवारें कच्ची है । लिहाज़ा ,उस रात अंजान आवाज़ के डर से उन घरों का रतजगा माल की हिफाज़त के लिए लाज़मी हो गया था ।
अगली सुबह मैंने गाँव के मेन चौराहे पे जिक्र पाया । "चौकस रहो , टोहिए कई दिना से गाँव में टटोलते डोल रहे , कल रात को पहाड़ के मौहल्ले में 'आदमी' लगा हुआ था । " मेरे गाँव वाले तस्करों को 'आदमी' ही बोलते है, 'रात के आदमी' !
मैंने चौराहे पे खड़े आदमियों के चेहरों पे 'आदमी' का खौफ देखा । फिर किसी ने जोड़ा कि गाँव के पूरब की गौशाला पे भी चार रातों से 'आदमी ' देखे जा रहे है ।
मैंने हरकेश को बाँह पकड़ अलग खींचा और धीमे से बोला " भैय्या , रात को तुम्हारे मकान पर जो 'आदमी' आया रहा जिसने धीमी हाँक मारी थी , वो तो मैँ ही था । और तब रात के बमुश्किल दस ही बजे थे । "
"अरे तुम , पर तुम ठहरे क्यों नहीं भईया , नाम पहचान बताये बिना ही खिसक लिए । " हरकेश थोड़ा झुंझलाया, थोड़ा शर्माया ।
" भाई , तुम कई दिनों से शिकायत करते थे कि भईया गाँव में हो , थोड़ा उठ बैठ भी लिया करो । सो रात के खाने के बाद मैंने सोचा तुम से बतलाया जाए । पर जब मैँ तुम्हारे मकान पहुँचा तो पाया बत्ती बढ़ा दी गयी है । मैंने एक आवाज़ दी तो, पर फिर ठिठक गया । सोचा कि थक हार सोये होगे सो दबे कदमो लौट आया ।" मैंने विस्तार से हरकेश को समझाया ।
रात के 'आदमी' का भेद खुलते ही चौराहे पे ठहाके लग गए । कुछ ने हरकेश और उसके पडोसी बलराम को डरपोक करार दिया । कुछ ने फिर भी चौकस रहने को सलाह दी ।
पिता जी को पता चला तो वो मुझ पर झल्लाए " लल्ला , ये अब पुराना देहात ना है । रात को पहली बात किसी के यहाँ जाओ ही मत और जाओ भी तो बिना नाम पता बताये दबे पैर मत लौटो । गफलियत में कोई तुम पर तमंचा दाग बैठता तो क्या होता लल्ला ? "
"बेटा , इधर 'आदमी' का डर होता है आजकल , जान माल सबका कीमती है और कारतूस काफी सस्ता ! "
मन में बड़ी झुंझलाहट हुई। क्या ये वही गाँव है जहाँ आधी आधी रात हमने चोर सिपाही खेल अपना बचपन जिया । आज मेरे गाँव का आदमी अँधेरा होते ही ' आदमी ' से डरता है ।
और ये मेरे गाँव का ही नहीं कमोबेश पश्चिमी यू पी के पूरे देहात का यही हाल है ।अगली सुबह मैंने गाँव के मेन चौराहे पे जिक्र पाया । "चौकस रहो , टोहिए कई दिना से गाँव में टटोलते डोल रहे , कल रात को पहाड़ के मौहल्ले में 'आदमी' लगा हुआ था । " मेरे गाँव वाले तस्करों को 'आदमी' ही बोलते है, 'रात के आदमी' !
मैंने चौराहे पे खड़े आदमियों के चेहरों पे 'आदमी' का खौफ देखा । फिर किसी ने जोड़ा कि गाँव के पूरब की गौशाला पे भी चार रातों से 'आदमी ' देखे जा रहे है ।
मैंने हरकेश को बाँह पकड़ अलग खींचा और धीमे से बोला " भैय्या , रात को तुम्हारे मकान पर जो 'आदमी' आया रहा जिसने धीमी हाँक मारी थी , वो तो मैँ ही था । और तब रात के बमुश्किल दस ही बजे थे । "
"अरे तुम , पर तुम ठहरे क्यों नहीं भईया , नाम पहचान बताये बिना ही खिसक लिए । " हरकेश थोड़ा झुंझलाया, थोड़ा शर्माया ।
" भाई , तुम कई दिनों से शिकायत करते थे कि भईया गाँव में हो , थोड़ा उठ बैठ भी लिया करो । सो रात के खाने के बाद मैंने सोचा तुम से बतलाया जाए । पर जब मैँ तुम्हारे मकान पहुँचा तो पाया बत्ती बढ़ा दी गयी है । मैंने एक आवाज़ दी तो, पर फिर ठिठक गया । सोचा कि थक हार सोये होगे सो दबे कदमो लौट आया ।" मैंने विस्तार से हरकेश को समझाया ।
रात के 'आदमी' का भेद खुलते ही चौराहे पे ठहाके लग गए । कुछ ने हरकेश और उसके पडोसी बलराम को डरपोक करार दिया । कुछ ने फिर भी चौकस रहने को सलाह दी ।
पिता जी को पता चला तो वो मुझ पर झल्लाए " लल्ला , ये अब पुराना देहात ना है । रात को पहली बात किसी के यहाँ जाओ ही मत और जाओ भी तो बिना नाम पता बताये दबे पैर मत लौटो । गफलियत में कोई तुम पर तमंचा दाग बैठता तो क्या होता लल्ला ? "
"बेटा , इधर 'आदमी' का डर होता है आजकल , जान माल सबका कीमती है और कारतूस काफी सस्ता ! "
मन में बड़ी झुंझलाहट हुई। क्या ये वही गाँव है जहाँ आधी आधी रात हमने चोर सिपाही खेल अपना बचपन जिया । आज मेरे गाँव का आदमी अँधेरा होते ही ' आदमी ' से डरता है ।
-- सचिन कुमार गुर्जर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें -