सुनो , तुम्हारे अहसानो और नेमतों की फेरिस्त लम्बी है , कर्जमंद है हम । पर उनमे से जो सबसे ऊपर है, वो ये है कि ये जो प्यार वाली फीलिंग होती है ना , उसका सही एहसास तुमने ही कराया है हमे । बाय गॉड !
कसम से , यूँ ही जिए जा रहे थे हम तो । कुछ इल्म ही न था , कि चाहत कुछ यूँ भी हो सकती है और इस कदर भी हो सकती है । कोई किसी को इतना टूटकर कैसे चाह सकता है । सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार । सच्ची ! शायद तभी दीवानगी को पागलपन बोला जाता है । है न ?
कतई बुड़बक निकले हम इस मामले में । हमे ना , फ़िल्मी लगता था ये सब , बचकाना , कम उम्र के लड़के लड़कियों का खेल ! लगता था कि भटके हुए , कम सोच वाले लोग जाते है इस रास्ते । गलत थे हम । कतई गलत , निखालिस गलत !
ऐसा नहीं है कि कभी इस तरह की फीलिंग ने पहले नहीं छुआ । स्वाभाविक है । भॅवर तो उमड़े है कई बार, अरसे पहले । कोशिशे भी की है , गुजारिशे भी की है , ईगो को किनारे रख मिन्नतें भी की है , पर नाकारा गया हमे हर बार । या इस्तेमाल हुआ । तभी तो.... मन बार बार जतावा मांगता है तुमसे । प्यार का जतावा ।
हमें ना , गुमान होने लगा अपने ऊपर , और गुनाहगार तुम हो जालिम ! तुम्हारी वजह से ! तुम्हारी बाते , दरियादिल तारीफे ! क्यों लुटाती हो इतना प्यार , खुले हाथो से हम पे , कभी तो मुट्ठी भींच लिया करो ।
तुम्हारी वजह से !
वर्ना , हमने आज तक खुद को कसाई की नज़र से ही देखा हमेशा । कमियों की पूरी फेहरिस्त थी , हताशाओ का अम्बार था ।
बदल नहीं गए है अब , वैसे ही हैं , पर स्वीकार करने लगे है अपने आप को ।
कमियाँ है , सब में होती है । जिंदिगी जो नहीं है उसका मलाल करने के लिए थोड़े है , जो है ना , जितना भी , थोड़ा या ज्यादा , उसका जश्न मनाने का नाम है जिंदिगी ! है कि नहीं ?
और हाँ , सुनो हमारी चाहत बेशर्त है तुम्हारे लिए । कुछ नहीं चाहिए । मिलो न मिलो । बस जियो तुम , अपने डैनों को मज़बूत करो और अपने बूते खुले गगन में उड़ने का हौसला पैदा करो । बस और बस , तुम्हे उड़ते देखना चाहते है । तुम्हारे सपनो की उड़ान । तुम मुस्कुराती हो ना , तो दिल खिल उठता है हमारा भी ।
खुल के हँसा करो वे , कुछ चीज़ो में एटिकेट्स को नहीं देखना चाहिए ।
बस एक गुजारिश है , ये जो तार जुड़े है न , प्लीज इन्हे मत छेड़ना , हसी ख्वाव टूट जायेगा । पाप लगेगा !
नहीं छेड़ोगी न ? मत छेड़ना , टूट जायेगा बहुत कुछ , और हम चाह के भी आह तक न भर पाएंगे ।
लबादा औढ़ा है हमने । बहुत ज्यादा, बेहिसाब समझदारी का, और बहुत ज्यादा जिम्मेदारी का भी !
"जिस जिस को भी पता चला मेरे इश्क़ का , सबने यही कहा,
अरे , तुम कहा फंस गए यार , तुम तो समझदार हुआ करते थे !"
मोहित चौहान ने बड़ा दिमाग ख़राब किया है इस वीकेंड । पचासो बार 'पहली बार मोहब्बत की है ' सुन लिए , पर हर बार लगता है कि पहली बार ही है ।
चलो , गुड नाईट । कम्बल लपेट के लम्बे होते है अब , सुबह को बकर बकर भी सुननी है ऊँचे ओहदेदारों की ।
कसम से , यूँ ही जिए जा रहे थे हम तो । कुछ इल्म ही न था , कि चाहत कुछ यूँ भी हो सकती है और इस कदर भी हो सकती है । कोई किसी को इतना टूटकर कैसे चाह सकता है । सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार । सच्ची ! शायद तभी दीवानगी को पागलपन बोला जाता है । है न ?
कतई बुड़बक निकले हम इस मामले में । हमे ना , फ़िल्मी लगता था ये सब , बचकाना , कम उम्र के लड़के लड़कियों का खेल ! लगता था कि भटके हुए , कम सोच वाले लोग जाते है इस रास्ते । गलत थे हम । कतई गलत , निखालिस गलत !
ऐसा नहीं है कि कभी इस तरह की फीलिंग ने पहले नहीं छुआ । स्वाभाविक है । भॅवर तो उमड़े है कई बार, अरसे पहले । कोशिशे भी की है , गुजारिशे भी की है , ईगो को किनारे रख मिन्नतें भी की है , पर नाकारा गया हमे हर बार । या इस्तेमाल हुआ । तभी तो.... मन बार बार जतावा मांगता है तुमसे । प्यार का जतावा ।
हमें ना , गुमान होने लगा अपने ऊपर , और गुनाहगार तुम हो जालिम ! तुम्हारी वजह से ! तुम्हारी बाते , दरियादिल तारीफे ! क्यों लुटाती हो इतना प्यार , खुले हाथो से हम पे , कभी तो मुट्ठी भींच लिया करो ।
तुम्हारी वजह से !
वर्ना , हमने आज तक खुद को कसाई की नज़र से ही देखा हमेशा । कमियों की पूरी फेहरिस्त थी , हताशाओ का अम्बार था ।
बदल नहीं गए है अब , वैसे ही हैं , पर स्वीकार करने लगे है अपने आप को ।
कमियाँ है , सब में होती है । जिंदिगी जो नहीं है उसका मलाल करने के लिए थोड़े है , जो है ना , जितना भी , थोड़ा या ज्यादा , उसका जश्न मनाने का नाम है जिंदिगी ! है कि नहीं ?
और हाँ , सुनो हमारी चाहत बेशर्त है तुम्हारे लिए । कुछ नहीं चाहिए । मिलो न मिलो । बस जियो तुम , अपने डैनों को मज़बूत करो और अपने बूते खुले गगन में उड़ने का हौसला पैदा करो । बस और बस , तुम्हे उड़ते देखना चाहते है । तुम्हारे सपनो की उड़ान । तुम मुस्कुराती हो ना , तो दिल खिल उठता है हमारा भी ।
खुल के हँसा करो वे , कुछ चीज़ो में एटिकेट्स को नहीं देखना चाहिए ।
बस एक गुजारिश है , ये जो तार जुड़े है न , प्लीज इन्हे मत छेड़ना , हसी ख्वाव टूट जायेगा । पाप लगेगा !
नहीं छेड़ोगी न ? मत छेड़ना , टूट जायेगा बहुत कुछ , और हम चाह के भी आह तक न भर पाएंगे ।
लबादा औढ़ा है हमने । बहुत ज्यादा, बेहिसाब समझदारी का, और बहुत ज्यादा जिम्मेदारी का भी !
"जिस जिस को भी पता चला मेरे इश्क़ का , सबने यही कहा,
अरे , तुम कहा फंस गए यार , तुम तो समझदार हुआ करते थे !"
मोहित चौहान ने बड़ा दिमाग ख़राब किया है इस वीकेंड । पचासो बार 'पहली बार मोहब्बत की है ' सुन लिए , पर हर बार लगता है कि पहली बार ही है ।
चलो , गुड नाईट । कम्बल लपेट के लम्बे होते है अब , सुबह को बकर बकर भी सुननी है ऊँचे ओहदेदारों की ।
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