कभी कभी यूँ होता है कि आप बड़ी ग़रज से काम के किसी दस्तावेज की तलाश में अपनी अलमारी में बेहतरतीब लगी क़िताबों को उलट पलट रहे होते है । अलमारी के उन कोनो में झाँक रहे होते है जहाँ सालो से सिर्फ़ और सिर्फ़ धूळ का हीं साम्राज्य रहा होता है । बन्द पड़ी किताबो के पीले पड़ते पन्नों को पलटते है इस आस में कि न जाने कहीँ आपकी ज़रूरत का पेपर हाथ लग जाये ।
या आप अपंने मेलबॉक्स के आर्काइव्स में झाँक रहे होते है ।
ऐसे में वो जरूरत का दस्तावेज़ तो हाथ नहीं आता ,पर कुछ ऐसा दिख जाता है जो बड़ा ही अप्रत्याशित होता है ।कोई पुराना खत ,कोई पुरानी मेल दिख पडती है जो आपकों अतीत में खीच ले जाती है ।
आज एक ऐसा ही एक भावुक मेल पत्र हाथ लगा जो कभी सालों पहले उस युग के प्रेमी मन ने लिखा था । यादों का एक पिटारा सा खुल गया है।धुंधले चेहरे फिर से चटक हो उठे है ।
बहुत कुछ याद आ पड़ा है झपाक से । याद आ गया है वो गुड़गांव का किराये का मकान । वो दोस्त जिससे देर रात तक दुनिया जहान की बातें होती थी ,सब तरह की बातें ! उसके सलाह मशवरे याद आते है जो अक्सर नाकाम हो जाते थे ।याद आ जाती है वो मकान मालकिन जो उम्र के लिहाज़ से तो आँटी ही दिखती थी पर जिसने हमसे साफ़ साफ़ शब्दों में बोला था कि हम उसे भाभी जी बुलाकार ही सम्बोधित करें ।
उस पृष्ठभूमि में और उस काल में ही रचित किया गया था ये प्रेम पत्र । घंटो की मेहनत और अंग्रेजी डिक्शनरी का इस्तेमाल करके लिखा गया ये पत्र उस युग के प्रेमी की करुण चीत्कार है । इसमें मुन्हार है, मान मनोव्वल की कोशिश है , भावनाओं का समंदर है जो उस दौर के मानस में उमड़ा था । सम्मोहन ,खिचाव ,प्रेम पिपासा की लबलबाती एक नदी है ।
एक ऐसी नदी जो भावहीन ,निष्ठुर और संवेदनहीन मरुभूमि में भटकती , राह बनानें क़ी नाकाम कोशिश करते हुए दम तोड़ देती है ।उस युग के प्रेमी को आस थी कि भले ही तब तक के सारे टोटके असफल ,निष्तेज साबित हुए हो ,पर इस मनुहार का जबाब जरूर आएगा ।
उसके बाद दिन गए , महीने गए फिर साल भी गुजर गये । ज़िन्दगियाँ अपने अपंने रास्ते निकल चलीं , पत्र अनुत्तरित ही रह गया । शायद अच्छे के लिए ही!
आज सोचता हूँ कि अंग्रेजी में न लिखकर अगर हिँदी मेँ लिखा होता तो शायद शब्द चयन की आसानी होती और भावनाएं भी बेहतर उभर पातीं । हालाँकि अंतिम परिणाम हार ही होता क्योंकि पत्थरदिल चट्टान से सामना था । और चट्टान से टकराकर तो लहर को ही बिखरना होता है ।
हालाँकि पत्र अंग्रेजी में क्यों लिखा गया इस बात को लेकर भी मनोवैज्ञानिक विशलेषण किया जा सकता है । प्यार का मॉडल अंग्रेज़ीदा हो चला है शायद इसलिए । अपनी संस्कृति और जुबान भी प्यार के इज़हार में असहज महसूस कराती है , टूटीं फूटीं अंग्रेजी में 'आई लव यु ' के उदगार उस सांस्क़तिक असहजता से निज़ाद दिला देते है ।
कौन कहता है कि भूलना , बिसरा देना एक बीमारी है । यही तो कुदरत की एक नेमत है कि आज का मन मुस्कराहट के साथ इस प्रेमपाती को मसालेदार खबर क़ी तरह पढ़ रहा है ।
वर्ना ,उस दौर में तो दिल ख़ून के आँसू रोया था !
bina patar k yeh blog adhura sa hai.. baki apki marji ...
जवाब देंहटाएंHaan , adhurapan to hai ...par patra se bahut kuch hatana padega..isliye rehne dete hai...
हटाएं