सालों बाद कॉलेज मित्र श्रीमन खजान सिंह किरोला जी से भेंट हुई , तो कॉलेज दिनों की यादें ताज़ा हो गयी ।कॉलेज में ध्रुवीकरण के दौर में जब सभी साथियों ने धुरी ताकतों का दामन थाम लिया था ,तब हम नेहरू ,टीटो की तरह गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अग्रदूत रहे । कॉलेज राजनीति और आधिपत्य के शीतयुद्ध में हमारी महत्वहीनता और अप्रासंगिकता के चलते हमे छुटपुट गिरोह की संज्ञा दी गयी ।गम्भीरता से विश्लेषण किया जाये तो गुमनाम,महत्वहीन और छुटपुट समझे जाने वालो ने ही संसार गढ़ा है ।
गुमनाम छुटपुट, चुपचाप राष्ट्रनिर्माण में लगे साथियों के नाम चंद पंक्तियाँ :
छुटपुट जिसे है समझा ,वो रुस्तम बहुत बड़ा है।
चुटकी सा छोटा दाना , बरगद लिए पड़ा है ।
उगते नए सिकंदर सम्राट जिसके दम से ,
जीते गए पुरंदर,यलगार जिसके दम से ,
गुमनाम सा कोई सैनिक, सीना लिए खड़ा है ।
गौरव कथा सुनाती , फौलाद सी दीवारें।
टकरा के लौटे कितने ,न पड़ सकी दरारें।
सर्वस्य लुटा कोई पत्थर ,दबा नींव में पड़ा है ।
गुमनाम ,छुटपुटो ने ही , इतिहास मिल गढ़ा है।
गाँधी तभी बना है ,जब गुमनाम संग लड़ा है।
दुनिया बदल गयी है , जब जब ये चल पड़ा है ।
छुटपुट जिसे है समझा , वो रुस्तम बहुत बड़ा है ।
सचिन कुमार गुर्जर
bahut acha....
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