सालो बाद अपने गुडगाँव वाले ऑफिस में लौटा हूँ ।
अजीब सी स्थिति से दो चार हूँ । जगह पुरानी है ,जानी पहचानी है पर मैं नया हो गया हूँ ।
सब चेहरे नए है । कितना कुछ बदल गया है पिछले तीन चार सालो में । बड़े यतन करता हूँ तब जाकर कुछ पुराने ,जाने पहचाने चेहरे ढूढ़ पाता हूँ , उँगलियों में गिनने भर के ।
आई बी एम के साथ सात सालों से ज्यादा का समय हो गया , लोग आये और आगे बढ़ गए । मैं टिका रहा ।
अब ठहराव सा महसूस कर रहा हूँ । कालांतर की मार सह रहा हूँ ।
फरवरी के आने की दस्तक के साथ सूर्य देवता भी हाड कंपा देने वाली ठण्ड पर विजय श्री का उदघोष करते जान पड़ते है । ऑफिस के बाहर खड़े होकर धूप सेकते हुए अनायास ही दिल्ली जयपुर राजमार्ग की ओर नज़र जाकर ठहर जाती है ।
बमुश्किल चार साल पहले ही की तो बात है ,ऑफिस छूटने पर भागकर पार कर लेता था । ट्रैफिक इतना नहीं था । आज मिल्खा सिंह भी पार करने की नहीं सोच सकता । वाहनो की एक बाढ़ सी बह रही है अथक , अनवरत ।
जीवन बहता ट्रैफिक ही तो है । बहने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं । हाँ ,लेन चुनने की थोड़ी बहुत मनमानी कर सकते हो, वो भी अपने रिस्क पर । तेज रफ़्तार में जीवन रसहीन ,यांत्रिक होने का दंश है तो धीमी रफ़्तार में ठहराव की घुटन और पीछे छूट जाने का डर है ।
सोचो तो बड़ा ही कन्फ्यूजन है , न सोचो तो बेहतर है ।
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