सोमवार, 27 जनवरी 2014

मैं और कालांतर


सालो बाद अपने गुडगाँव वाले ऑफिस में लौटा हूँ । 
अजीब सी स्थिति  से दो चार हूँ ।  जगह पुरानी है ,जानी पहचानी है पर मैं नया हो गया हूँ ।
सब चेहरे नए है । कितना कुछ बदल गया है पिछले तीन चार सालो में । बड़े यतन करता हूँ  तब जाकर कुछ पुराने ,जाने पहचाने चेहरे ढूढ़ पाता हूँ , उँगलियों में गिनने भर के ।
आई बी एम के साथ सात सालों से ज्यादा का समय हो गया , लोग आये और आगे बढ़ गए । मैं  टिका रहा ।
अब ठहराव सा महसूस कर रहा हूँ । कालांतर की मार सह रहा  हूँ ।


फरवरी के आने की  दस्तक के साथ सूर्य देवता भी हाड कंपा देने वाली ठण्ड पर विजय श्री का उदघोष करते जान पड़ते है । ऑफिस के बाहर खड़े होकर धूप सेकते हुए अनायास ही दिल्ली जयपुर राजमार्ग की ओर  नज़र जाकर ठहर जाती है ।

बमुश्किल चार साल पहले ही की  तो बात है ,ऑफिस छूटने पर भागकर पार कर लेता था । ट्रैफिक इतना नहीं था । आज मिल्खा सिंह भी पार करने की  नहीं सोच सकता  । वाहनो की एक बाढ़ सी बह  रही है अथक , अनवरत ।

 जीवन बहता ट्रैफिक ही तो है । बहने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं । हाँ ,लेन चुनने की  थोड़ी बहुत मनमानी कर सकते हो, वो भी अपने रिस्क पर । तेज रफ़्तार में  जीवन रसहीन ,यांत्रिक होने का दंश है तो धीमी रफ़्तार में ठहराव की  घुटन और पीछे छूट जाने का डर है ।
सोचो तो बड़ा ही कन्फ्यूजन है , न सोचो तो बेहतर है ।




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