आज सुबह ध्रुव से वार्तालाप के दौरान ज्यो ही उसने अपना फोफ्ला मुँह खोला , तो पाया कि मुँह में दो छोटे छोटे श्वेत बिंदु नज़र आ रहे है ।
'प्रीति , ध्रुव के दाँत निकल आये है ,मैं खुशी से चिल्लाया । '
बड़ी सुखद अनुभुति है । अपने नवप्राण को जीवन पथ पर बढ़ता, मानव जीवन के दाव पेच सीखता देख जो अनुभव होता है , उसे शब्दो में बांधना मुश्किल है ।
ध्रुव अपने शब्द कोष का तेजी से विस्तारीकरण कर रहा है । हालाँकि अभी जो शब्द स्पष्ट रूप से कंठस्त हुआ है । वो है 'मम्मा' ।
मुझे सबोधन अभी अस्पष्ट है । कभी 'पापा' तो कभी 'बापा ' तो कभी सीधे 'बाप' कहकर ही संबोधन होता है ।
शब्द कुछ भी हो हम तो नवचेतन के प्रयास के कायल है ।
मेहनती बालक है ध्रुव । लगन और अनवरत परिश्रम की साक्षात् मूरत ।
सुबह से शांम तक शब्दों का उच्चारण चलता ही रहता है । स्वत : खड़े होने में तो पारंगत प्राप्त कर ली है अब सारा ध्यान चलने पर है ।
सुबह से शाम तक महाशय दस बीस बार तो गिरते ही होंगे , पर मजाल है कि हौंसला जरा भी तस से मस हुआ हो ।
कल शाम को ध्रुव के लिए सुपरमैन वाली ड्रेस खरीदी गयी ।
पेश है उसी ड्रेस के कुछ चित्र ।
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