शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

ध्रुव बना सुपरमैन


आज सुबह ध्रुव से वार्तालाप के दौरान ज्यो ही उसने अपना फोफ्ला मुँह खोला , तो पाया कि मुँह  में  दो  छोटे छोटे श्वेत  बिंदु नज़र आ रहे है ।
'प्रीति , ध्रुव के दाँत  निकल आये है ,मैं  खुशी  से चिल्लाया । '
बड़ी सुखद अनुभुति है । अपने नवप्राण को जीवन पथ पर बढ़ता, मानव जीवन के दाव पेच सीखता देख जो अनुभव होता है , उसे शब्दो  में बांधना मुश्किल है ।

ध्रुव अपने शब्द कोष का तेजी से विस्तारीकरण कर रहा है । हालाँकि अभी जो शब्द स्पष्ट रूप से कंठस्त  हुआ है । वो है 'मम्मा' ।
मुझे सबोधन अभी अस्पष्ट  है । कभी 'पापा' तो कभी 'बापा ' तो कभी सीधे 'बाप' कहकर ही संबोधन होता है ।
शब्द  कुछ भी हो हम तो नवचेतन के प्रयास के कायल है ।
मेहनती बालक है ध्रुव । लगन और अनवरत परिश्रम की साक्षात्  मूरत ।
सुबह  से शांम तक शब्दों का उच्चारण चलता ही रहता है । स्वत : खड़े होने में तो पारंगत प्राप्त कर ली है अब सारा ध्यान चलने पर  है ।
सुबह  से शाम तक महाशय दस बीस बार तो गिरते ही होंगे , पर मजाल है कि  हौंसला जरा भी तस से मस हुआ हो ।

कल शाम को ध्रुव के लिए सुपरमैन वाली ड्रेस खरीदी गयी ।
पेश है उसी ड्रेस के कुछ चित्र ।









































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