बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

जरा सोचे ...


काफी लम्बे समय से इस बारे में लिखने का सोच रहा था ।
मेरे काफी सारे मित्र और परिचित है जो अपने सामाजिक कर्त्तव्य का निर्वहन करते हुए अपनी अपनी छमता अनुसार , राजनैतिक दलों और अन्य प्रख्यात संस्थानों को धन अनुदान करते है ।
 अच्छा है , सराहनीय है । समाज और राष्ट्र निर्माण में हर नागरिक का योगदान  होना चाहिए ।

गाढ़ी मेहनत की कमाई समाज कल्याण के लिए देना नेक काम है , ये तो निर्विवादित है ।
दान कर्ता की मंशा और आकांशा पे लेस मात्र भी शक नहीं किया जा सकता।

मेरा प्रयास मंशा तोलने का नहीं अपितु उस राशी के सही और निश्चित प्रयोग पर है ।
जरा सोचे , पांच हज़ार की रकम राजनातिक दल के फण्ड में पहुंचकर ज्यादा असरदार होगी या किसी मटयाले गाँव के उपेक्षित घर में एक सोलर लालटेन के रूप में ।

 बूँद सागर में गिरे या नवांकुर की जड़ में , दोनों ही दशा में बूँद के समर्पण को किंचित कम नहीं आंक सकते ।
हा , बूँद का समर्पण नवांकुर की जड़ में जो रंग ल सकता है , वो  विराट सागर में नहीं ।

राजनैतिक दलों के अपने तरीके होते है । विभाग होते है जो धन एकत्रीकरण के जरिये जानते है ,  सुझाते है । बड़े बड़े उधमी खुले हाथो से फंड जमा करते है। धन के अछय स्रोत उनके पास होते है ।
तर्क और सच्चाई के धरातल पे देखे तो आपकी चार पांच हज़ार की रकम किसी राजनितिक दल के लिए कोई बड़ा मायने नहीं रखती ।

 हाँ , ये रकम एक गरीब के बच्चे के  सपनों को पंख  जरूर दे सकती है।
बाजार में   तीन  हज़ार से चार हज़ार मे  अच्छे  सोलर लालटेन मिल जाते है । किसी परिवार को  रोशिनी का जरिया दे । बच्चो को पढने का होंसला दे । एक पढ़ा लिखा बच्चा , एक परिवार का काया कल्प कर सकता है ।
गरीब का बच्चा पढ़ेगा  , परिवार खुशहाल होगा । गाँव खुशहाल होगा । गाँव खुशहाल होगा , तभी देश खुशहाल होगा ।
 जरा सोचे ।










 




    


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