गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

तेज का तेज जा चुका है |


 गढ़वाल  की  पहाड़ियों में भागीरथी  के किनारे भरा पूरा टिहरी  शहर बसता था ।
विकास की  दौड़ में जब सरकार ने टिहरी बाँध  बनाया तो बाँध के पानी में इस अलसाये शहर को भी अपनी बली देनी पड़ी । आन्दोलन हुए , धरने प्रदर्शन हुए पर आखिरकार नगरवासियों को झुकना पड़ा ।  पास की  ऊँची पहाड़ी पे सरकार ने नए घरोंदे बना दिए और भारी दिल लिए नगर वासी  पलायन पे  मजबूर  हुए ।
 टिहरी ने  जलसमाधि  ले ली और उसके साथ दफ़न  हो गए हज़ारों सपने , अनगिनत कहानियाँ , अनोखें वृतान्त । विस्थापित  लोग  वो सामाजिक ताना बाना  शायद कभी न बुन  पाये ।




उजड़ी यादों में खो चला एक वृतांत है , टिहरी के आजाद मैदान में उतरी उड़नतस्तरी का ।
सैकड़ो की तादात में लोगो ने अपनी खुली आँखों से उस चमकीली तस्तरी को देखा । पर किसी कि हिम्मत न हुई कि पास में जाकर उस रहस्यमयी वस्तु की पड़ताल कर पाये ।

उसी रात कटकन्डा वालों के यहाँ उनके कुलदीपक का जनम हुआ था ।
कहने वाले तो कहते है कि वो तेजस्वी बच्चा उस उड़न तस्तरी से किसी दुसरे ग्रह से आया था ।
सच क्या है ये तो भगवान् ही जाने , पर हाँ  वो बच्चा था जरूर चमत्कारी। कुछ ख़ास था उसमे ।
 छह माह के बच्चे को जहाँ  अपने पोतड़ों तक की सुध  नहीं होती , चमत्कारी बच्चा आदमजात की भाषा में पारंगत हो चूका था ।  पिता के कंधे पे बैठ दुनिया जहाँ की  बाते करता ।बच्चे की चपलता देख , राहगीर दांतो तले ऊँगली दबा लेते ।

बालक का नाम तेज़ रखा गया ।  परिवार उसे छुपा के रखता ।कभी कभार चोरी चुपके वो निकल पडता  । सर्पीली ,टेढ़ी मेढ़ी सड़को पर हवा की  रफ़्तार से दौड़ता । उससे उम्र में बड़े बच्चो में भी  उसके कदमो से कदम मिलाने की  कूबत न थी ।  साइकिल सवार भी पीछे छूट जाते  । उसके घुटने शुद्ध इस्पात के बने थे । उसकी ऐड़ियों में मानो स्प्रिंग लगे थे ।

भागीरथी  के किनारे  जोर की  हुंकार मार वो हुडी भरता और मीलों पानी के ऊपर सरपट दौड़ता  ।
दोस्तों को उसने  विद्या माता की कसम दे  रखी थी , बेचारे परीक्षा में फेल होने के डर  से किसी से कुछ न बताते । टिहरी का रहस्मयी बालक य़ू ही  पलता बढ़ता रहा । 

बिलक्षण बुद्धि  वाला बालक था तेज । दिमाग तो चाचा चौधरी से भी तेज चलता था ।
घर में बड़ो की फिजिक्स ,केमिस्ट्री की  किताबे यूँ  ही हंसी खेल में पढ़ डाली । एक एक शब्द कंठस्त , वो भी महज ७ साल की कच्ची उम्र में ।

घर वालो को लगा कि बाहर  वालो को विलक्षण बच्चे का पता चलेगा तो न जाने दुनिया उसे क्या समझेगी ।
पता नहीं वो नन्ही उम्र में दुनिया की काली  परछाइयों से लड़ पायेगा कि नहीं , सो उन्होंने वही  किया जो सुपरमैन के पृथ्वी  वाले माँ बाप ने किया था ।
तेज़ को शपथ दिलायी कि वो अपनी रहस्यमयी  ताकत की कही भी नुमाईश नहीं करेगा । कभी भी स्कूल की परीक्षा में शतप्रतिशत अंक  नहीं लाएगा  । बच्चो के सामने हवा की गति से नहीं दोडेगा ।
कभी भी निक्कर पहन स्कूल नहीं जायेगा ताकि उसके इस्पात के घुटने जग जाहिर  न हों ।
कभी भी जूते नहीं उतारेगा ताकि उसके पैरों के स्प्रिंग न दिख पड़े ।

माँ बाप के डर  ने उसे कभी शहर के बड़े कालेजो में नहीं जाने दिया । पहाड़  के इंटर कॉलेज से ही बारहवी जमात की  परीक्षा दी । सारे सवाल सही सही लिख अपने चेलपार्क की  इंक वाले पेन से उत्तर कापी में इंक के छींटे मार दिए ताकि उत्तर कापी जांचने वाला एक आध नंबर कुलेख ,सफाई के आधार पे काट ले…

बिलक्षत तेज़ ने जिला टॉप किया । उपरान्त  गढ़वाल  के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से परास्नातक की उपाधि धारण की और एक नामचीन बहुराष्ट्रीय फर्म में जॉब करने लगा ।


कभी भीमकाय हाथी को मामूली सी रस्सी से बधे देखा है । रस्सी गजबल  के सामने तिनका है , चाहे तो पलक छपकते तोड़ फैंके , पर उसका दिमाग बंधा होता है । हाथी के बच्चे को लोहे की मजबूत जंजीर से बांधने का प्रयोजन ये होता है कि बचपन में ही उसके दिम्माग में ये भर दिया जाए  कि वो  जंजीर अटूटनीय है , कभी तोड़ नहीं सकता । बड़े होकर हाथी का शरीर भले ही  दीर्घ हो जाये, बचपन से छमता पे लगी शंका उसका हौंसला तोड़ चुकी होती है ।


गढ़वाल का सुपर हीरो तेज़ आज आई टी  मज़दूर की नौकरी कर जीवन यापन कर रहा है ।
रफ़्तार जा चुकी है । जीवन और गृहस्त  की  जिम्मेदारिओं ने एक सुपर हीरो को आम आदमी बना छोड़ा है ।
सुना है आजकल नौ से छ्ह की नौकरी के साथ 'आम आदमी पार्टी ' का फेसबुक प्रचार-प्रसार कर दिल बहला  रहा है । जो खुद समाज की बुराइयों को उखाड़ फेंकने का माद्दा रखता है , अपनी  छमता  भूल दूसरों की महत्वाकांछा की जड़े सींच रहा है ।

तेज का तेज जा चुका है ।








 


शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

ध्रुव बना सुपरमैन


आज सुबह ध्रुव से वार्तालाप के दौरान ज्यो ही उसने अपना फोफ्ला मुँह खोला , तो पाया कि मुँह  में  दो  छोटे छोटे श्वेत  बिंदु नज़र आ रहे है ।
'प्रीति , ध्रुव के दाँत  निकल आये है ,मैं  खुशी  से चिल्लाया । '
बड़ी सुखद अनुभुति है । अपने नवप्राण को जीवन पथ पर बढ़ता, मानव जीवन के दाव पेच सीखता देख जो अनुभव होता है , उसे शब्दो  में बांधना मुश्किल है ।

ध्रुव अपने शब्द कोष का तेजी से विस्तारीकरण कर रहा है । हालाँकि अभी जो शब्द स्पष्ट रूप से कंठस्त  हुआ है । वो है 'मम्मा' ।
मुझे सबोधन अभी अस्पष्ट  है । कभी 'पापा' तो कभी 'बापा ' तो कभी सीधे 'बाप' कहकर ही संबोधन होता है ।
शब्द  कुछ भी हो हम तो नवचेतन के प्रयास के कायल है ।
मेहनती बालक है ध्रुव । लगन और अनवरत परिश्रम की साक्षात्  मूरत ।
सुबह  से शांम तक शब्दों का उच्चारण चलता ही रहता है । स्वत : खड़े होने में तो पारंगत प्राप्त कर ली है अब सारा ध्यान चलने पर  है ।
सुबह  से शाम तक महाशय दस बीस बार तो गिरते ही होंगे , पर मजाल है कि  हौंसला जरा भी तस से मस हुआ हो ।

कल शाम को ध्रुव के लिए सुपरमैन वाली ड्रेस खरीदी गयी ।
पेश है उसी ड्रेस के कुछ चित्र ।









































बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

जरा सोचे ...


काफी लम्बे समय से इस बारे में लिखने का सोच रहा था ।
मेरे काफी सारे मित्र और परिचित है जो अपने सामाजिक कर्त्तव्य का निर्वहन करते हुए अपनी अपनी छमता अनुसार , राजनैतिक दलों और अन्य प्रख्यात संस्थानों को धन अनुदान करते है ।
 अच्छा है , सराहनीय है । समाज और राष्ट्र निर्माण में हर नागरिक का योगदान  होना चाहिए ।

गाढ़ी मेहनत की कमाई समाज कल्याण के लिए देना नेक काम है , ये तो निर्विवादित है ।
दान कर्ता की मंशा और आकांशा पे लेस मात्र भी शक नहीं किया जा सकता।

मेरा प्रयास मंशा तोलने का नहीं अपितु उस राशी के सही और निश्चित प्रयोग पर है ।
जरा सोचे , पांच हज़ार की रकम राजनातिक दल के फण्ड में पहुंचकर ज्यादा असरदार होगी या किसी मटयाले गाँव के उपेक्षित घर में एक सोलर लालटेन के रूप में ।

 बूँद सागर में गिरे या नवांकुर की जड़ में , दोनों ही दशा में बूँद के समर्पण को किंचित कम नहीं आंक सकते ।
हा , बूँद का समर्पण नवांकुर की जड़ में जो रंग ल सकता है , वो  विराट सागर में नहीं ।

राजनैतिक दलों के अपने तरीके होते है । विभाग होते है जो धन एकत्रीकरण के जरिये जानते है ,  सुझाते है । बड़े बड़े उधमी खुले हाथो से फंड जमा करते है। धन के अछय स्रोत उनके पास होते है ।
तर्क और सच्चाई के धरातल पे देखे तो आपकी चार पांच हज़ार की रकम किसी राजनितिक दल के लिए कोई बड़ा मायने नहीं रखती ।

 हाँ , ये रकम एक गरीब के बच्चे के  सपनों को पंख  जरूर दे सकती है।
बाजार में   तीन  हज़ार से चार हज़ार मे  अच्छे  सोलर लालटेन मिल जाते है । किसी परिवार को  रोशिनी का जरिया दे । बच्चो को पढने का होंसला दे । एक पढ़ा लिखा बच्चा , एक परिवार का काया कल्प कर सकता है ।
गरीब का बच्चा पढ़ेगा  , परिवार खुशहाल होगा । गाँव खुशहाल होगा । गाँव खुशहाल होगा , तभी देश खुशहाल होगा ।
 जरा सोचे ।










 




    


अच्छा और हम्म

" सुनते हो , गाँव के घर में मार्बल पत्थर लगवाया जा रहा है , पता भी है तुम्हे ? " स्त्री के स्वर में रोष था |  "अच्छा " प...