दिन खुशगवार है या यूँ कहिये कि महीनो के दिन रात अनवरत परिश्रम के बाद काम से फुर्सत है !
सप्ताहांत आने का सुकून मानस पटल पे उभरते विचारो में भी नयी चेतना लाता है |
लम्बे अरसे से लावारिश गुमसुम सा पड़ा समाचारपत्र ..उठा कर देखता हूँ|
गुंआनज्होऊ एशियन गेम्स में भारतीय महिला एथलीटो ने उम्दा प्रदर्शन किया है ,समाचार पत्र एथलीटो को 'ग्लोरी गर्ल्स '
की संज्ञा देता है |
कोई दो राय नहीं ..दूरदराज़ के मटीले गाँव से ,गरीबी की बाधाओ को तोड़ ,अंतररास्टीय स्तर पे भारत के परचम को फेहराना
किसी गौरव गाथा से कम नहीं..
गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है |कोई भी राष्ट भले ही गरीब हो ,संसाधनों की कमी और अवयवस्थायो से जूझ रहा हो ...किन्तु जब तक राष्ट के जन साधारण का विश्वास परिश्रम से जुड़ा हो ,मैं समझता हूँ ऐसे राष्ट की जड़े सुरक्षित है ..
परिश्रम जल लवण बन वृक्ष को पोषित करता रहेगा.
आज लम्बे अरसे बाद समय से घर की और प्रस्थान कर रहा हूँ !
कभी महसूस किया है ? अगर इंसान फुर्सत में हो ,तो कैसे मन उन छोटी छोटी अनुभूतियो को महसूस करने लगता है ,जिन्हें दिन प्रतिदिन की चिंताए ,व्यकुल्ताये ,उठ्कन्था अपने गुबार में दबा देती है ..
किस प्रकार हमारा सहज संवेदी अवलोकी मन जीवट हो उठता है |
कार्यालय से ट्रेन स्टेशन जाने तक का ये रास्ता ,सब कुछ वही पुराना होने के बाबजूद आज मनमोहक क्यों लग रहा है |
सच में , बाहर की दुनिया हमारे अंतर्मन का प्रतिबिंब ही तो है|
अंतर्मन शांत है ,स्नेही है ,संवेदी है तो बाहर के दुनिया भी शांत है ,नीरव है |
क्योंकर अमरीका जैसे सशक्त देश संघर्षो ,विरोधो,हिंसाओ का समाधान ,ड्रोन हमलो और गोलाबरी में दूढ़ते है |
क्योंकर संवेदनाओ ,पीडाओ पे मरहम लगाने और मानस मूल के सहज संवेदी ,निश्छल स्वाभाव को जगाने की दिशा में किसी
का ध्यान नहीं जाता |
ट्रेन में सामने की बर्थ पे एक चीनी परिवार बैठा है |पति पत्नी अपनी दिन प्रतिदिन की व्यथाओ ,आशाओ ,शिकायतों में मशगूल है | मगर ये महाशय सारी दुनियादारी से दूर अपने पिता के दूरसंचार यन्त्र की गुत्थिया सुलझाने में लगे है |
बालमन का ध्यान और निर्विघ्न समर्पण देखते बनता है |चेहरे पे भागभंगिमाए बालमन में उठते हर विचार के साथ चंद्रकलाओ सी बन बिगड़ रही है | नवचेतन प्राण इंसानी व्यवस्थाओ ,बाधाओ ,अडचनों,जटिलताओ से अनभिज्ञ है |
मन में विचार उठता है ,काश कुछ ऐसा होता कि मैं भी अपने दिमाग का सारा कूड़ा करकट साफ़ कर पाता |
काश ,अतीतके पश्चातापो,भविष्य की उत्कंठाओ से परे मन वर्तमान में लिप्त जीवनरस का आनंद ले पाता |काश सहज बालपन लौट पाता |