"मरे हुए लोगो के हिस्से ,जिन्दा लोगो से ज्यादा फूल आते है | पछतावे और मलाल के भाव आभारी और कृतज्ञ होने से भारी होते है | " वो द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर था, पर यहूदी किशोरी एनी फ्रैंक की ये पंक्तियाँ आज भी उतनी ही सार्थक हैं |
और किसी किसी कल्चर विशेष में नहीं, बल्क पूरी आदमजात में ये दकियानूसी यहाँ वहाँ नुमायाँ होती ही रहती है |
पिछले दिनों में मैंने ऐसे लोगो को भी सुशांत सिंह राजपूत के बारे में बोलते ,सुनते सुना है जिन्हे बॉलीवुड में कोई इंटरेस्ट नहीं है | मैंने खुद उसकी कोई फिल्म नहीं देखी | लेकिन एक युवा , होनहार कलाकार का यूँ हार के चले जाना , देश के जनमानस को झंझोर के गया है | आखिर कुछ ऐसी सफलता की कहानियाँ तो होती है जिनसे मध्यम , निम्न मध्यम वर्ग का युवा इंस्पायर होता है |
संवेदना स्वाभाविक है लेकिन सुशांत के यूँ हार जाने को जस्टिफाई करना , सही या गलत , कथित बॉलीवुड माफिया का भूत खड़े कर देना , मेरी राय में एक गलत दिशा है |
पिछली आर्थिक मंदी में एक घटना हुई थी | अमेरिका में सेटल एक युवा इंजीनियर ने आत्महत्या कर ली थी | वजह, नौकरी चले जाना | पढाई में हमेशा अब्बल , किसी बड़े कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री लिए उस इंजीनियर ने जिंदगी में हमेशा जीत ही देखी थी | पहली हार हुई , बौखला गया , समझ ही नहीं पाया | हार झेल जाने की कोई रणनीति उसके पास थी ही नहीं | खुद के मानक इतने ऊँचे थे कि नौकरी चले जाने तक को नाकाबिले बर्दाश्त अपमान समझा |
भारत के मध्यम वर्गः में एक पूरी ऐसी पीढ़ी तैयार हो गयी है , जो इस कदर एस्पिरेशनल है कि 'हार' जैसा शब्द उनकी डिक्शनरी में होते ही नहीं | और जो जितना ज्यादा होनहार , उतना ही ज्यादा फ़्रस्ट्रेट | सुशांत सिंह राजपूत जैसे युवा उस पीढ़ी को रिप्रेजेंट करते हैं |
किसी को याद करना , संवेदनाएं व्यक्त करना या फैन होने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है |
लेकिन सुशांत जैसे लोगो को मरने के बाद जिन्दा होने से भी बड़ा स्टार बना देना , ये मुझे असहज करता है |
आप खुद ही सोचिये | बड़ा कौन है , जो हार गया या जो बेइज्जती , अपमान का विष पीता , परिवार ,संपत्ति सब कुछ लुट जाने के बाबजूद जिंदिगी जीने में आस्था रखता है |
बताइये , कौन है बड़ा??
रुकिए , आगे मत पढ़िए | थोड़ा पेशानी पे बल डालिये , आपको अपनी जान पहचान में भी ऐसे लोग दिख जायेंगे |
मैं नाम नहीं ले सकता लेकिन मेरी नज़र में भी ऐसे लोग हैं |
बताइये आप , आदर्श परिवार क्या होता है ? नौकरी , घर , स्वास्थय | प्यार करने वाली, कभी कभार लड़ भी ले पर मन को भाने वाली , घर को बाँध के चलने वाली बीवी |
सुन्दर और पढाई में मन लगाने वाले दो बच्चे | एक लड़का , एक लड़की | बस्स | यही ना ?
अतिश्योक्ति बिलकुल नहीं , एक एक मानक पर वो परिवार खरा उतरता था |
हुआ यूँ , कि लड़की ने ज्यों ही किशोरावस्था से निकल यौवन की ड्योढ़ी पर कदम रखा , प्रेम प्रसंग हो गया ,गाँव के ही किसी युवक के साथ | वो भी विजातीय | आप पश्चिमी उत्तररप्रदेश के हिंटरलैंड के परिपेक्ष में इसे समझिये , तभी आप मुद्दे की इंटेंसिटी को पकड़ पाएंगे |
प्रेम प्रसंग क्या ठग प्रसंग कहिये | युवक पहले से शादी शुदा , लती , प्रसनी था | पहली बीवी जान छुड़ा के भाग गयी |
मान मनब्बल के दौर हुए , समझायी, पर लड़की समझने की उम्र में नहीं थी , चली गयी |
रपट दावे हुए , पर चूकि दूसरी जाति का पक्ष बड़ा था और ये पीड़ित परिवार अकेला , थक हार के घर बैठना पड़ा |
काश बात यही थम गयी होती | सामने वाला पक्ष इस कदर हावी हुआ कि प्रेमी , लड़की के साथ इस परिवार के सामने वाले घर में ही रहने लगा | कुछ ने परिवार का दर्द समझा , प्रेमी पक्ष को समझाया कि जिए ये दोनों अपनी जिंदगी , पर इन बेचारो की छाती पर चढ़ कर तो न रहे | कही और जा बसे |
फिर हार | रोज रोज की जलालत , ताने , गली मोहल्ले के अट्टाहस | जिंदगी नर्क हो गयी |
इन परिस्थितियों में कमजोर को पलायन ही सूझता है | वही हुआ , जमीन घर सस्ते में बेच पीड़ित परिवार दूर कही दुसरे गाँव के सिमाने पर जा बसा |
अपमान ने उनकी मनोदशा पर इस कदर प्रहार किया कि नए गांव में भी उन्होंने आबादी से कोई किलोमीटर भर दूर डेरा बनाया |
लड़का सुन्दर होनहार , लम्बा , गौरवर्ण , पढाई में अब्बल ,फौज में अफसर बनना चाहता था | वो उस दिशा में प्रयासरत था और शायद मंजिल पा भी लेता |
पास के कसबे से कुछ सामान खरीदने गया था , सड़क पर लापरवाह ट्रक वाले ने बाइक में ऐसी टक्कर मारी कि अस्पताल तक ले जाने का समय भी न दिया , मौके पे ही दम तोड़ गया |
आप नाप सकते है उस बूढ़े होते दंपत्ति का दर्द ? बेटी गयी | बेटा गया | घर गया , स्थान गया , समाज में अपमान हुआ |
अजी छोड़िये ,दुनिया दर्द भरे किस्सों से भरी पड़ी है | पर आप उनकी जीवटता को तो देखिये | जिंदगी में उनका भरोसा देखिये |
कुछ साल पहले मैं जब उनसे मिला था तो उत्साह भर उन्होंने बताया था कि गाँव के कुछ बच्चो को वो खाली समय में ट्यूशन देते है | उनका इरादा बिहार के सुपर ३० की तरह कुछ बच्चे छांट एन डी ए की तैयारी कराना था |
उन्होंने जीने का मकसद ढूढ़ लिया था | जिंदगी बीहट हो गयी थी पर उन्होंने सपने पाल लिए थे |
हाँ , हाँ उन्होंने जीना सीख लिया था |
चाय पीने के बाद, और बहुत देर दूसरों की बातें कर जब मैं चलने को हुआ तो मैंने कहा , "सब ठीक है पर आप अपनी सेहत का ख्याल रखा कीजिये | "
ये एक आम सी बात है जो रिवायतन सभी बोलते है , पर मैंने पाया कि स्त्रीमन की आँखों के कोरे भीग गए थे | शायद मुझमे वो अपने बेटे का अक्स ढूढ़ रही थी |
और पुरुष ? पुरुष ने आसमान की ओर हाथ उठा कहाँ " बस लल्ला , जैसे वो नीली छतरी वाला रखना चाहे , हमे मंजूर है | "
जब मैं उनके स्थान से निकल रहा था , तब मेरे मन में एक हूँक सी उठ रही थी | उन लम्हो में मैं भगवान् होना चाहता था |
अह्ह्ह , उनकी जिंदगी में जो कुछ भी गलत हुआ था , मैं वो सब अनडू कर देना चाहता था |
बताइये आप मुझे , सुशांत सिंह राजपूत बड़ा स्टार है या ऐसे लोग???
-सचिन कुमार गुर्जर