"दिखिए, तू परदेस में रहा करै है, किसी औरत के बहकावे में ना आ जइयो !" मुझे लेकर नानी की ये आखिरी फिक्र थी। लंबी फेरिस्त में से बिल्कुल आखिरी।अकेले में बड़ी गंभीर हो कहती।
उसके हिफ़ाजती बंदोबस्त इतने गुप्त और अचूक होते कि एक बार भी मैं उसे मेरे बैग में लहसुन की कली छुपाते पकड़ नही पाया। कई बार ऐसा हुआ कि आफिस में बैग से लैपटॉप निकालते लहसुन की गांठ टेबल पे टप्प से आ गिरी। साबित करने को कुछ है तो नही, पर विश्वास के साथ कह सकता हूँ बहुत सी चुड़ैलें , डायन रुसवा होकर जाती होंगी!
माँ आज इतराती है, चमड़े के जूते से बुरी से बुरी नज़र उतारने का हुनर जो है उसके पास। पर मैं पूछता हूँ , किसी बदौलत? कौन सिखा गया??
कई बार हमारी मीठी नोक झोंक होती, मैं कहता " अब बच्चा थोड़े हूँ नानी । "
उसी कालखंड में, वो खरसाय का एक दिन था।दोपहर के बाद बरामदे की परछाई लंबी हो चली थी, और उसी का फायदा उठा मेरी खाट आधी बरामदे के अंदर, आधी बाहर थी। मैं बड़े इतमीनान से तकिया लगा खाट पे किसी अजगर के माफिक पसरा पड़ा था ।कुछ ऐसे जैसे घंटो खेत मे हल बैल चला के आया होउ!
एक लकड़ी की तख्ती पर नानी मेरे सिहराने बैठ मेरे सर पे हाथ फिरा अपना लाड़ लुटा रही थी। उस फुरसत के दिन में नानी ने ये वृतांत सुनाया:
गंगा नदी के उस पार वाले खादर में एक गाँव पड़ता है हरज्ञानपुर। ऊबड़ खाबड़, झाड़ झोपड़ियो के पार ऊंची, हवादार हवेली आ जाये , समझो वही है दयाल सिंह का स्थान है । अच्छा खाता पीता परिवार। दो लड़के और सबसे छोटी लड़की।संस्कारी परिवार , मेहनतकश लोग, किसी तरह की खामी नही।
देखिये लड़की ,माँ ,बाप , परिवार की परछाई ही हुआ करे है। बेटी मृदला ऐसी ही थी, घरबार के काम में एक दम सधी हुई, पतली,लंबी पोर , गौरवर्ण , रोमन नाक,अपने काम से काम रखने वाली।मृदुला सुभाग्या थी , दयाल सिंह को मेल का लड़का ढूढने में ज्यादा मंजिल ना काटनी पड़ी।पास के गाँव के खेम सिंह दारोगा जी से मेल जोल था , खेम सिंह तो विधाता के यहाँ से कम उम्र लिखा के आये थे, नही रहे। उनका लड़का दरोगा हो गया था ।बस बिमाता की कृपा से ऐसे भाग जागे ,कि महीना भर में रिश्ता, लग्न, फेरे सब निपट गया।
मृदुला को ससुराल में कोई कमी नही । सासु बोली " देख मृदु, बेटी दाखल रखूंगी। घर की चाभी तेरे हाथ दे दूंगी। तू भी गाँठ बांध लें, सबै एक आँख देखिये।"
मृदुला कुछ बोली नही पर उसके काम , उसके व्यवहार से सब गदगद थे।
लड़के का नाम था 'सज्जन'। सो वो था भी सज्जन ही।सुकुमार। माँ की आँखों का नूर। मृदुला की जान जैसे उसने अपनी मुट्ठी में बांध ली थी।
सब कुछ सही , पर नई नई शादी और 'सज्जन' की डयूटी दूर देस आगरा में। मृदुला विरह की अगन में तपती, कई बार आंगन बुहारती बुहारती सुबकने लगती।
परिवार भरा पूरा था,देवर ,ननद ,सास । पर सज्जन की जगह कौन ले सकता था। नार गिला किससे करे, परिवार खातिर सब्र का घूट ले लेती।
कई महीने बीत गए। एक बार सज्जन छुट्टी आया तो रात के खाने के बाद माँ से बोला" माँ कोई कमी न है। मन तो जम गया है आगरा शहर मे। पर यो ससुरा रोज रोज का बाहर का खाना जो है ना माँ,उसी से पेट खराब होया करे है।"
माँ ने कहा " घर जैसा खाना कैसे मिल जाएगा मेरे पूत । जाणु हूँ।"
फिर गले में दर्द लिए बोली "नौकरी खातर पड़ा है मेरा परदेस"
थोड़ा रुक कर सज्जन जोर दे फिर बोला"माँ , सुनै है ना, मुझे 'रोटियों' की दिक्कत है वहाँ!"
वो माँ माँ ही क्या , जो अपनी औलाद की बात न समझे!
अगली सुबह ही फ्रीज़ , कूलर,वाशिंग मशीन सब ट्रक में भर दिए। मृदुला के विरह के दिन पूरे हुए। सज्जन भी खुश, उसकी 'रोटियों ' की दिक्कत भी दूर हुई!!
मृदुला गाँव की खुली हवा से निकल शहर के माचिस की डिब्बियों जैसे पुलिस क्रवाटर्स में आ गयी थी। परेशानी तो बहुत हुई,पर 'जहाँ पिया, वहाँ मैं' की धुन उसे हौसला दे जाती। मन शनै शनै रमने लगा। अड़ोसी पड़ोसी जान गए।
क्रवाटर्स की एक कतार छोड विनिता मैडम का क्वार्टर था। बॉबकट बाल , गोरा रंग , मंझले कद की विनीता दरोगा थी। शरीर दरमियाना, ना मोटी न पतली। पति से नही बनी सो रास्ता अलग कर लिया। दो बच्चे थे , परिवार के साथ दूसरे शहर में। विनीता अच्छा नाम ह, जुबान पे भी फट से रम जाता है, पर पुलिस लाइन में सब उसे बिजली मैंम कहके पुकारते। पीछे से ,सामने नही!
औरत अगर मजबूत , तेज तर्रार हो तो पुरुष समाज की एक छुपी सी चिढ़ होया करती है। शायद इसीलिए विनीता 'बिजली ' थी! जिंदिगी के अनुभवों में तपी औरत थी विनीता।
शाम को सज्जन और मृदु को कॉलोनी के चक्कर काटते देखती तो टोकती " क्यो सज्जन जी, कभी मॉल वैगेरह भी घुमाया करो, क्या रोज कॉलोनी के चक्कर ही कटाते हो बेचारी को" मृदु छोटे बच्चे जैसे लजा जाती।
ये पुलिस वाले जो होया करें है, इनका हर तरह के लोगो मे आना जाना हुआ करे है।
और नए लड़को के अफेयर भी खूब हुआ करे है।
कोई तनु नाम की लड़की थी, पूरब के इलाके की।
सज्जन उदास था कई दिनों से। मृदुला पूछतीं तो कहता " बदन में हरारत है। गर्मी में इधर उधर भागना ज्यादा होता है। "
पर औरत ही क्या जो अपने आदमी की तबियत न समझे। गाँव से आई थी पर एम ए थी मृदुला!
सज्जन फ़ोन घर छोड़ मार्किट तक गया तो मृदु ने फ़ोन टटोला।ये जो भी थी सज्जन पे बुरी तरह फिदा थी।मर जाने की धमकियां । धोखा क्यो किया , ऐसी लानतें।
मैं सुसाइड कर लूँगी, जेल जाओगे .. कुछ इस तरह की बाते। सज्जन उसे उसकी जिंदगी से चले जाने की बात कहता।
मृदु के हाथ कांप रहे थे। सोचा कि घर वालो को बताए।
विनिता से अच्छी गाढ़ी छनने लगी थी। उसी से मन हल्का किया । विनीता तो गुस्से से तमतमा उठी " ये सारे मर्द एक जैसे मृदु, इनकी जात कुत्तो की जात जैसी ही होती है। और ..और ..औरत से इन्हें एक ही चीज़ की दरकार होती है। सारी उम्र उसी के पीछे। धत्त।" घृणा उसके चेहरे से टपक रही थी।
फिर वो सम्भली और मृदु के दोनों हाथ अपने हाथ मे लेकर बोली ," चल मैं समझा के देखती हूँ"
औरत सब कुछ भूल सकती है, पर अपने आदमी की जिंदगी में दूसरी औरत ! खैर गृहहस्थी चलती रही।
गोद जल्दी हरी हुई, साल भर में बेटा भी आ गया।
सज्जन के व्यवहार में बदलाव तो आया था। वक़्त के साथ पहले जैसी गर्माहट तो किसी रिश्ते में भी नही रहती।
पर मृदुला ने खतरे को बहुत कम करके आंका था। आगे चल यही घातक हुआ।
उस दिन सज्जन आया और रसोई का सामान आंगन में ही पटक गुस्से से बलबलाया"अबे ओ गंवार, तुझे नही लाता न , तो गाँव मे गाय भैसो के पिछवाड़े साफ कर रही होती। तुझे क्या लगता है, बाप की एवज लग ही मुझे नौकरी मिलती। मेरी अपनी कोई काविलियात नही। तेरा बाप ज्यादा काबिल है या तेरा भाई, बोल!"
मृदुला के तो बोल भी न फूटे। वो मारे डर के कांप रही थी।
हे राम, ये कैसा गुनाह हुआ। उसने तो बस यूं ही बातों बातों में विनीता को बता दिया था कि मेरे ससुर रिटायरमेंट से पहले ही चले गए सो उनकी जगह ये। ....हाय विनीता धोखा किया। आग लगा दी।
कई दिन दाना पानी नही किया।
विनीता को पता चला तो भागी चली आयी और सज्जन के सामने आ खड़ी हुई" मुझे दाग लगाओगे सज्जन, हुह। मुझसे तुम्हारा क्या छुपा है। ये छोटी बहन है मेरी। दिल दुखा है मेरा।" घंटो समझा के गयी, सज्जन शांत हुआ।
पर सज्जन के व्यवहार के बदलाव स्थायी थे। और इसे ही भांपने में मृदुला नाकाम रही। यही अनहोनी का कारण बना। सज्जन कहा जाता है , किस्से मिलता है,
वो तनु ,वो सज्जन के प्यार में डूबी लड़की अचानक चुप कैसे ही गयी?
उस मासूम ने ये सवाल नही पूछे। पूछ लेती तो शायद तूफान से बच जाती।
अब आये दिन झगड़े होते। वो अक्सर देर से आता। बेचारी कतस्लीव सूट पहन लें तो घमासान। कितनी भी जंचे वो नाक भों ही सिकोड़ता। एक बार भरी पार्टी में सज्जन ने मृदुला को धकिया दिया। गुनाह? बेचारी ने सुर्ख लाल प्लाजो पे हरा स्लीवलेस सूट जो पहन लिया था।
अपनी साड़ी को संभालते हुए विनीता ने जैसे तैसे दोनो को अलग किया था!
माँ को रोते हुए बताया" मां इनका किसी के साथ कुछ चक्कर है। पूरब की लड़की है कोई"
माँ ने समझा दिया, धीरज रख।मैं समझा दूंगी।
विनीता का जन्मदिन था और उसकी ख्वाइश बड़ी सादगी से दो चार खास लोगो के साथ घर पे ही डिनर करने की थी। सज्जन को तो डयूटी से आना था। मृदुला डिनर के लिए हाथ बंटाने पहले ही पहुच गयी। किचेन की तरफ बढ़ी तो विनीता ने रोक लिया, अरे वो माई है ना , उसे करने दो। आओ गप्पे शपपे लड़ाए।
विनीता का कोई चचेरा या मौसेरा भाई भी था। बडा ही हसोडिया। आता जाता रहता था।
किसी बात पे सारे बड़े जोर से हँसे तो विनीता के भाई ने अचानक से अपना हाथ मृदुला की जांघ पर मार दिया।
ये सब एक सेकंड के हिस्से के लिए हुए था। पता नही किस नियत से उसने हाथ रखा।
पर नियति तो देखो, उसी क्षण सज्जन दरवाजे पर था।
पराये मर्द के साथ बीवी की खिलोली और फिर उस मर्द का हाथ मृदुला की जांघ पर जाते देखा।
शरीर जैसे जल गया उसका। मुँह लाल। वापस लौट गया।
खाने की भूख किसे? मृदुला ने पीछे पीछे दौड़ लगा दी।
घर मे घुसते ही सज्जन ने भाई को फ़ोन लगाया" सुबह के 10 बजे तक आगरा आ,और इसे लेके जा। नही आया तो मेरा मरा मुँह भी मत देखना"
हाय राम ,क्या हुआ। कैसी विपदा आन पड़ी!
मृदुला 6 महीने का बच्चा ले, अपना सामान उठा चली आयी। कई दिनों अन्न पानी नही किया।
सज्जन का व्यवहार हैरान करने वाला था। पर सबके दिलों में ये बात थी कि आखिर कब तक। अपनी बिहाता के लिए नही, अपनी माँ के लिए नही , पर औलाद का मोह सज्जन को लौटने पर मजबूर करेगा। गुस्सा सूखेगा तो ले जाएगा।
माँ ने हड़काया" बहु में एक पैसे का खोट न है सज्जन , जो मैं वहां आ गयी तो सिगरी दारोग़ा गिरी भूल जाएगा।"
महीने साल में बदल गए। सज्जन नही लौटा।
माँ बहुत रोई , मेरी लाश देखेगा जो इस करवाचौथ न लौटा।
सज्जन नही लौटा।
आखिरी बार फोन पर उसने ये कहा" मेरे लिए तुम सब मरे समान, मैं तुम्हारे लिए मरा मानो।"
नानी कहानी के पटाक्षेप की तरफ बढ़ रही थी। उसका सुर जो पहले जोशीला था, अब निराशा से बोझिल था।
मैंने करबट ली और बड़बड़ाया " कहाँ जाएगा साला, कब तक भागेगा ।देखना वो लौटेगा। लौटना ही पड़ेगा। "
मुझे जैसे उस इंसान की नियति पता थी।
" अरे ना, आहू ,अब नही लौटेगा उ"
" और क्यो लौटेगा, अब तो उसे दूसरी औरत से बच्चा भी हो गया"
"अब काहे पलटेगा उ"
मतलब उसने दूसरी औरत कर ली। मेरे दिमाग मे वो फेसबुक वाली तनु दौड़ गयी। खेल गयी वो खेल!
नानी ऐसे भड़भड़ा के बोली जैसे पुरानी कार में टॉप गियर डाल दिया हो "अरे वो डायन , वो मैडम , उ दारोगन , वो बिजली ही घुस गई उसके घर मे!!"
मुझे जैसे चार सौ चालीस वाल्ट का करंट मार गया हो।
" क्या..... ओह हो , ओह हो..जुल्म जुल्म" मैं झटके से अपने घुटनों पर उठ बैठ पड़ा।
अब नानी ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना दायाँ हाथ हवा में उठा दिया और दो तीन बार घुमाया " उस कुलटा ने ऐसा चक्कर चलाया लल्ला, ऐसा चक्कर चलाया कि अच्छे खासे जमे जमाये घर का सत्यानाश कर गयी। "
नानी कड़ी से कड़ी जोड़ते चली गयी, कि कैसे उसने बाप की एवज़ नौकरी पाने की बात को लेकर सज्जन के दिमाग मे जहर घोल दिया।
कैसे सज्जन के मिजाज के प्रतिकूल मृदुला को कपड़े पहनाये और खुद साड़ी में सावित्री बन गयी। और कैसे अपने संबधी का इस्तेमाल कर, मृदुला को चरित्रहीन साबित कर दिया।
अपनी कहानी पूरी कर नानी मेरे लिए हिदायतों की लिस्ट दोहराने लगी थी।
पर मैं ,बरामदे के आगे जमे नीम के पेड़ की पत्तियों में घूरता अभी तक विनीता उर्फ बिजली मैडम के किरदार में अटका हुआ था। मुझे उसमे एक बाघिन नज़र आ रही थी
घात लगाई बाघिन, जिसने बड़े धीरज और महीन प्लानिंग के साथ एक औरत से उसका आदमी छीन लिया था!
-सचिन कुमार गुर्जर
1 मई 2019