कुछ आदमी ऐसे होते है , समाज जिनकी गिनती आदमियों में नहीं करता | इस प्रजाति के आदमी को हर लिहाज से नाउम्मीद समझा जाता है |रिश्तेदारी , मिल्लतदारी से इनका सरोकार नहीं होता | क्या सही , क्या गलत , इससे इन्हे ज्यादा मतलब नहीं होता | पर ऐसे आदमी से भी किसी को कुछ जलन हो सकती है क्या ?
मंझला कद ,मटैला रंग , पुरानी झाड़ू की तरह हर दिशा में छितराए बाल , ज्यादा पीने के कारण हमेशा चढ़ी रहने वाली आँखें , चपटी नाक , काली सफ़ेद खिचड़ी दाढ़ी | कुछ इस तरह की आकृति का आदमी है ननुआ |
इस कदर बीडीबाज कि उसकी हरेक नयी पुरानी बुशर्ट में बीड़ी के पतंगों से बने छेदो की जालियाँ बनी होती है , जिनसे हवा के झोंके आरपार बिना रूकावट गुजरते | शराब , मुर्गा , मच्छी ,अंडा, औरत, जुआ .. सब कर लेता है ननुआ |
मैंने उसे बचपन से देखा है | हमउम्र है , हम साथ खेले हैं | बचपन में सामने के दो बड़े खुरपे जैसे दांतो के बीच से थूक की लम्बी पिचकारी मारने के अलावा कोई और हुनर उसमे हमने कभी देखा नहीं |
माँ बाप हैं नहीं | एक बहिन है जो अपने घर द्वार की है | कच्ची दीवार के उस पार बसे चचेरे तहेरे भाइयों से उसका कभी मेल नहीं हुआ | दुनिया जो कहे, समझे , ननुआ ने शुरू से ही अपनी जिंदगी का ताना बाना कुछ ऐसे बुना है कि भाड़ में जाए दुनिया, भाड़ में जाये समाज | उसे जीना है और फुल जीना है !
पेशे से दूधिया ननुआ के दिन की शुरुआत गाँव से दूध इकठ्ठा करने से होती है | उसकी तराजू के बर्तन में दूध चढाती औरतें समय से दूध की कीमत ना भुगताने को लेकर उसे कोसती जातीं हैं | ज्यादा सुनता , कम बोलता वह अपनी साईकिल के पैडल मारता शहर की ओर निकल जाता है | शाम को लौटता है तो रास्ते में हट्टी से दारु का पौवा खरीद अपने दूध के बर्तन में रख लाता है | फिर आराम से अकेला खटिया पर पैर पसार ,प्याज या मूली की नमक लगी कतलियों के साथ पीता है | उसकी औरत गाय भैंस, चूल्हा चौका , खेत क्यारी, सब अकेले देखती है | साथ में उसके हुक्म की तामीर भी करती जाती है |
गाँव के बाहर नहर की पालट पर मैं सुबह की सैर पर था तो उसने मुझे रोक लिया। " कहाँ हो भैया आजकल। बड़े दिना बाद दरसन दिए।"
"बस इधर ही हूँ , तुम किधर हो आजकल ?" मैंने पूछा |
फुरसत में था ननुआ । बिना पिए शायद ही कभी राम रहीम से आगे बढ़ा हो | लेकिन पैग लगाने के बाद उसकी तबियत बदल जाती है |
"बस इधर ही हूँ , तुम किधर हो आजकल ?" मैंने पूछा |
फुरसत में था ननुआ । बिना पिए शायद ही कभी राम रहीम से आगे बढ़ा हो | लेकिन पैग लगाने के बाद उसकी तबियत बदल जाती है |
वह अपनी साईकिल से उतर पड़ा | सस्ती सिकुड़ी बुशर्ट की जेब से बीड़ी का बण्डल निकाल कर बोला" और सुनाओ।"
नहर की पालट से सठे खेत नीचान में है | मोहल्ले के ही एक काका नीचे खेत मे फावड़ा ले जमीन का कलेजा फोड़ रहे थे। इधर उधर की एक दो बात सुना ननुआ फिर बोला , " और सुनाओ | "
इससे पहले की मैं कुछ और सुनाता , काका फावड़ा छोड़ ऊँची आवाज़ में बोले ' अरे नेनुआ, दावत तो खिला दे बेसरम | खुसी का मौका है | "
ननुआ दिलफेंक आदमी है , तुरत बोला" दावत का क्या है काका , जब जी चाहे तब ले लो दावत ।"
ननुआ दिलफेंक आदमी है , तुरत बोला" दावत का क्या है काका , जब जी चाहे तब ले लो दावत ।"
मुझे जिज्ञासा हुई सो पूछा "खुश खबरी है क्या ननुआ । पापा बन गया क्या?"
जबाब में वो मुस्कुराया, बोला " अह, नई "
जबाब में वो मुस्कुराया, बोला " अह, नई "
मैंने उसे कुरेदा "फिर किस बात दावत मांग रहे काका?"
इससे पहले की ननुआ कुछ बोलता , काका से रहा नहीं गया , "नई बहू लाया है, बताया नई इसने !"
मुझे बैचेनी हुई | होनी भी थी ,मेरी नज़र में ननुआ पिछले दशक भर से गृहस्थ में जी रहा था |
मैंने उसकी आँखों में आँखे डाल पूछा "सही बात है क्या भई ?"
जबाब में वह अपने बड़े बड़े दांतो से जोर से हंस पड़ा |
ननुआ का बिहा तो कभी हुआ ही नहीं था | हाँ वह सालो पहले कही से औरत ले आया था | ख़ुशी ख़ुशी रह रहा था | वह औरत ही उसका सब कुछ थी |
"तो उसका क्या हुआ ?" मैंने पूछा |
"है गी ,वो भी है ।" ननुआ जल्दी से सब कुछ उगल देने के मूड में नहीं था |
"तो क्या , फिर दो दो औरतें " मेरी आँखें फैल गयी|
मैंने उसकी आँखों में आँखे डाल पूछा "सही बात है क्या भई ?"
जबाब में वह अपने बड़े बड़े दांतो से जोर से हंस पड़ा |
ननुआ का बिहा तो कभी हुआ ही नहीं था | हाँ वह सालो पहले कही से औरत ले आया था | ख़ुशी ख़ुशी रह रहा था | वह औरत ही उसका सब कुछ थी |
"तो उसका क्या हुआ ?" मैंने पूछा |
"है गी ,वो भी है ।" ननुआ जल्दी से सब कुछ उगल देने के मूड में नहीं था |
"तो क्या , फिर दो दो औरतें " मेरी आँखें फैल गयी|
साईकल के हैंडल से हाथ हठा उसने मेरा हाथ पकड़ लिया | वैसे ही जैसे बचपन का आडी अरसे बाद मिलने पे थामता है |
"अरे यार , वो मैंने अपने मौसरे भाई को दे दी। " ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पे एक गर्व की मुस्कान बिखर गयी | बहुत ही चौड़ी मुस्कान |
"अरे यार , वो मैंने अपने मौसरे भाई को दे दी। " ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पे एक गर्व की मुस्कान बिखर गयी | बहुत ही चौड़ी मुस्कान |
वैसे बात है भी गर्व की ! इतना बड़ा त्याग !
उस औरत को वह कही से भी लाया था पर उसके साथ उसने फेरे लिए थे | उसे अपनी बिहाता का दर्जा दिया था |
अपनी औरत अपने दूर के भाई को सौंप देने का जिगरा , वो हिम्मत | शायद दुनिया में अकेला ऐसा इंसान हो ननुआ !
उस औरत को वह कही से भी लाया था पर उसके साथ उसने फेरे लिए थे | उसे अपनी बिहाता का दर्जा दिया था |
अपनी औरत अपने दूर के भाई को सौंप देने का जिगरा , वो हिम्मत | शायद दुनिया में अकेला ऐसा इंसान हो ननुआ !
मैं चुप ही रहा , वो खुद ही बोला "अरे ज्यादा चिक-चिक करने लगी थी। दिन रात का क्लेश। रार से बाड़ अच्छी। है की नहीं ?"
" तो ये वाली कहाँ से ले आया " मैंने पूछा |
" नेपाल से " ननुआ की आँखों में चमक थी |
फिर बड़े धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला " गोरी हैं , सफ़ेद झक कतई " ऐसा कहते हुए उसने शरारतन मेरा हाथ दबा दिया |
" तो ये वाली कहाँ से ले आया " मैंने पूछा |
" नेपाल से " ननुआ की आँखों में चमक थी |
फिर बड़े धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला " गोरी हैं , सफ़ेद झक कतई " ऐसा कहते हुए उसने शरारतन मेरा हाथ दबा दिया |
"ये वाली अच्छी है यार ।जो मैं कह दूँ कि कोहरे में सिगरी रात बाहर खड़ी रह। चूं भी न कहेगी , बात मानेगी सुसरी।"
" वो.. वो मुँहजोर हो गयी थी साली ।"
क्या सही क्या गलत ,मैं कुछ बोला नहीं , बस खड़ा रहा |
पर काका से नहीं रहा गया |
"नरक में जायेगा ससुरा। बुढ़ापे में सड़ेगा ।औरत की खरीद बेच अच्छी बात है क्या। है जी । इसका आगम नही बिगड़ेगा भूतनिया वाले का ।"
काका के आरोप से ननुआ गुस्सा खा गया , फन कुचले साँप सा फनफना के बोला "किससे लिए पैसे।
आंधी रात मरे वो कौड़िया ,जिसने एक पैसा भी लिया हो "
काका भरे बैठे थे " अपने मौसरे से न लिए तूने पैसे? फ्री में दे दी औरत ?"
"कसम खाने कू एक पैसा भी लिया हो जो उससे काका।" ननुआ गला फाड़ फाड़ चिल्ला रहा था |
फिर सीने पे हाथ मार के बोला " साबित कर दो , कि एक भी पैसा लिया है , जिसमे कुत्ता खावे है न काका , उसी में खिला दियो मुझे | जाओ | "
काका का सीना चौड़ा हो गया था | उनके हाथ उनकी कमर पर आ लगे थे | वे सामना करने के मूड में थे | " तो ऐसे ही दे दी, अरे जा , तू और ऐसे ही दे दे | सौ कमीने मरे होंगे जब तू पैदा हुआ होगा |"
मुझे लगा कि बस दोनों गुथ्थम गुथ्था न हो जाए |
फिर सीने पे हाथ मार के बोला " साबित कर दो , कि एक भी पैसा लिया है , जिसमे कुत्ता खावे है न काका , उसी में खिला दियो मुझे | जाओ | "
काका का सीना चौड़ा हो गया था | उनके हाथ उनकी कमर पर आ लगे थे | वे सामना करने के मूड में थे | " तो ऐसे ही दे दी, अरे जा , तू और ऐसे ही दे दे | सौ कमीने मरे होंगे जब तू पैदा हुआ होगा |"
मुझे लगा कि बस दोनों गुथ्थम गुथ्था न हो जाए |
मैने पाया काका के मन में अजीब सी नफरत थी नेनुआ को लेकर। और वे अपनी इस कुढ़ को छिपा भी नही रहे थे।
मेरी ओर मुखातिब हो काका बोले "इस बात को लिख लो लल्ला । बुढापे में रोटी को तरसेगा ये । सड़ेगा ससुरा| नरक में जायेगा | "
ननुआ कहाँ पीछे हटने वाला था |उसने अपने सीने पे हाथ मार के कहा, "यारा तो ऐसे ही जियेगा काका।"
"और रही बात नरक की, तुम्हारी जिंदगी का स्वर्ग रोज देखु हु मैं।
यारा तो 4 पराठे और चाय ऐंठ के आया है बिस्तर में बैठ के | "
"मुँह मत खुलवाओ। तीसरे दिन काकी तुम्हे रोटी देने से मना कर देती है। तुम्हारा चिंटू दिन भर दोस्तो में घूमने और गेंद बल्ला खेलने के अलावा कोई काम नही करता। साठ की उमर में तुम दिन रात हड्डे धुनों हो।"
"कहने की जरूरत का है। तुम्हारी जिंदगी का स्वर्ग तो सिगरे गाँव को दिख ही रहा ।"
ननुआ की जैसे बक छूट गयी थी |
लड़ाई टालने को मैंने ननुआ की साईकल का हैंडल पकड़ आगे खींच लिया और उसे शांत रहने को आँख से इशारा किया | उसने मेरी बात मानी और बिना कुछ और बोले अपने दूध के बर्तन खटकाता आगे बढ़ गया |
मैं पीछे मुड़ा तो काका भी खेत में उतर गए और फावड़े की मूढ़ पकड़ ऊँची आवाज़ में मुझे सुनाते हुए बोले "
ननुआ की जैसे बक छूट गयी थी |
लड़ाई टालने को मैंने ननुआ की साईकल का हैंडल पकड़ आगे खींच लिया और उसे शांत रहने को आँख से इशारा किया | उसने मेरी बात मानी और बिना कुछ और बोले अपने दूध के बर्तन खटकाता आगे बढ़ गया |
मैं पीछे मुड़ा तो काका भी खेत में उतर गए और फावड़े की मूढ़ पकड़ ऊँची आवाज़ में मुझे सुनाते हुए बोले "
बिरादरी का कुत्ता भी न बूझता ऐसे आदमी को लल्ला| "
मैं पीछे मुड़ा तो मैंने पाया 'बिरादरी के कुत्ते' से भी गिरा हुआ वह आदमी बड़े मजे से गाना गाता हुआ साईकिल में पैडल मारता मस्त सांड सा चला जा रहा था और बिरादरी का लम्बरदार काका जल जल के कोयला हुआ जा रहा था |
मुझे लगा कि काका की जलन ख़ालिश ननुआ के गिरे हुए चरित्र को लेकर नहीं थी | कहीं न कही खुद की जिंदगी एक मोटी ,नकचढ़ी ,मुहफट औरत के साथ काटने का गम और ननुआ जैसे मलेच्छ को नयी जवान औरतें बदलते देखने से उनके मन में अजीब सी चिढ़ पैदा हो गयी थी |
मैं पीछे मुड़ा तो मैंने पाया 'बिरादरी के कुत्ते' से भी गिरा हुआ वह आदमी बड़े मजे से गाना गाता हुआ साईकिल में पैडल मारता मस्त सांड सा चला जा रहा था और बिरादरी का लम्बरदार काका जल जल के कोयला हुआ जा रहा था |
मुझे लगा कि काका की जलन ख़ालिश ननुआ के गिरे हुए चरित्र को लेकर नहीं थी | कहीं न कही खुद की जिंदगी एक मोटी ,नकचढ़ी ,मुहफट औरत के साथ काटने का गम और ननुआ जैसे मलेच्छ को नयी जवान औरतें बदलते देखने से उनके मन में अजीब सी चिढ़ पैदा हो गयी थी |
ननुआ जैसे लोग चिढ़ तो पैदा कर ही देते है!
मैं टहलता हुआ आगे निकल गया था पर काका अभी भी बहुत ऊँचा ऊँचा चिल्ला रहे थे " तू सड़ेगा ननुआ , देखना तू सड़ सड़ के मरेगा | और जब तू मरेगा तुझे बिरादरी का कुत्ता भी नहीं पूछेगा !"
- सचिन कुमार गुर्जर
२२ फरबरी 2018
- सचिन कुमार गुर्जर
२२ फरबरी 2018
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