मंगलवार, 7 नवंबर 2017

सर्वज्ञानी ऑटो वाला



"उफ्फ , कितना प्रदूषण है भैय्या , क्या होगा दिल्ली का "  सफर की बोरियत  को तोड़ने के लिए मैंने यूँ ही शिफूगा छोड़ दिया था |

मेट्रो की सर्विस लेन से मेन रोड पे आते ही ऑटो वाले ने ऑटो को स्पीड में डाला और मेरी ओर मुड़कर बोला
"एक बात बताएं भाई साब , केजरीवाल तो कह रहा है कि एक बार हेलीकॉप्टर से बारिश कर पानी का छिड़काव हो जान दओ , सिगरी की सिगरी गर्त दब  जाएगी | पर ये मोदी कुछ करने देवे तब ना बे***** !"

उसके तेवर झुंझलाहट वाले थे |
फिर उसकी झुंझलाहट लाजिमी भी थी, जब इतनी बड़ी समस्या का इतना सीधा साधा सा विकल्प दिया जा रहा है फिर पता नहीं काहे , मोदी जी टांग अड़ा रहे हैंगे !

इन दिनों मैँ इस कदर आलस भरी और लापरवाह जिंदगी जी रहा हूँ कि हो सकता है कि इस तरह के  प्रस्ताव का गुब्बारा मीडिया में छोड़ा गया हो और मैं बेखबर रहा होऊ |  हो सकता है |

मैं सोचने लगा 'क्लाउड सीडिंग' , 'सिल्वर आयोडाइड' , 'पोटैशियम आयोडाइड' , 'ड्राई आइस' इन सबके बारे में |  कृत्रिम बारिश के बारे में |
हो सकता है , मैं अल्पज्ञ हूँ , हो सकता है !

पर उसने मुझे मेरे विचारो के साथ अकेले नहीं छोड़ा |

"जुकाम हो गया भाई साब , दवाई लेनी पड़ेगी सायद | 
 अच्छा जे क्या बात है भाई साब , जिस दिना भी मैं रात को सोते टेम ऊँचा तकिया लगा लूँ , सुबह तक जुकाम हो जाता है ठसा ठस्स !
अब तीन चार दिना नीचा तकिया लगाऊंगा , तो आपे आप भाग जायेगा ससुरा "

मैं अभी उसके हेलीकाप्टर वाले समाधान से ही जूझ रहा था कि उसने नया बाउंसर फ़ेंक दिया था |
 
मेन रोड से कॉलोनी की सड़क की ओर ज्यो ही ऑटो मुड़ा , पता नहीं कहाँ से एक कैब वाला सामने आ गया |
ऑटो वाले ने क्या गाली दी होगी ये तो आप अंदाज लगा ही सकते है |  खुद को थोड़ा सा दाए बाएं हिला कर वो मेरी ओर फिर से मुड़ा और बोला
" जित्ती भी ये पीली पट्टी वाली गाडी देखते हो न भाई साब | पता है  आपको,  जे सिगरी की सिगरी  शीला दीक्षित के दामाद की कंपनी की हैंगी |  सबो के सबो ने ऐसी लूट मचाई दिल्ली में भाई साब | सब सालो ने अपना पेट भरा |  अब केजरीवाल  काम करना चाह रहा तो उसे काम करने नहीं दे रहा मोदी बे*****! "

" सही बात , सही बात "  मैंने जोड़ा |

" तो इहा किसी काम से आये हो या इधर ही रहते हो ? "
दीन  दुनिया की बातों के बाद महनुभाव की दृष्टि मुझ नाचीज़ के अस्तित्व पे आ टिकी थी |

" इधर ही रहता हूँ , नौकरी करता हूँ | " मैंने  जबाब दिया |

" सरकारी या प्राइवेट?  " मेरा जबाब पूरा भी न हुआ था नया सवाल दागा जा  चुका था |

" प्राइवेट ही है भईया "  मैंने फर्ज अदायगी को जबाब दिया |

" क्या करे आदमी , पेट लगा है तो कुछ न कुछ तो करेगा ही | प्राइवेट ही सही | हमे ही देख लो , धूप हो या जाड़ा बरसात , हम 14 घंटे सड़क पे रहते हैं | " उसकी आवाज़ में इस बार गुस्सा न था , सांत्वना का लेस था | ढांढस बांधने  की कोशिश थी |

" हाँ , क्या करें | सरकारी  कहाँ मिलती है भईया |
   केजरीवाल बहुत कोशिश करता है  , भर्ती निकालता भी है , पर बीच में ही टंगड़ी मार देता है मोदी बे****!!"
 इससे पहले की वो सर्व ज्ञानी मुँह पीछे मोड़ कुछ बोलता , मैं गोल दाग चुका था !


                                                                 सचिन कुमार गुर्जर
                                                                 07 /11 /2017















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