शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

ऊपरी हवा का असर



परिवार के पढ़े लिखे कई बार मजाक उड़ा जाते है |  बोलते है "भैय्या , पढ़े लिखे हो, समझदार हो , इस सब में यकीन क्यों रखते हो ?"
और मैं मुस्कुराता भर हूँ बस | मेरी मुस्कान उनकी धारणा को बल देती है |

"ये सब अंध विश्वास है भैय्या , इसको बढ़ावा नहीं देना चाहिए  | " पढ़े लिखे नसीहत देते है अक्सर |  नसीहत देना पढ़े लिखे लोगो की आदत हो जाती है |  है कि नहीं ?

मैं उनकी रायशुमारी पर  मुस्कुराता हूँ पर मानता मैं भी नहीं |

मैं अक्सर ऐसा करता हूँ , जब भी घर जाता हूँ |  हर बार नहीं करता ,वो यूँ के हर बार दोहराने  से जादू अपना असर खो बैठता है |

होता यूँ है कि सफर की थकान से चूर मैं अक्सर बिस्तर या सोफे पे पसर जाता हूँ |
थकान जो की अमूमन सफर की धक्कम धक्का  का नतीजा होती है , मैं उसे थोड़ा बढ़ा चढ़ा के, चासनी लपेट के पेश करता हूँ |
माँ की आदत होती है पूछना | तो मैं बोलता हूँ कि हाथ पैरो में दर्द है , हल्का सिर दर्द भी | पूरे शरीर में अकड़न सी है |
माँ माथा छू कर देखती है और बोलती है " सिर तो नहीं गरम तेरा ,    हम्म......  "

ये बाद में जो माँ  'हम्म ' लगाती है ना, उसमे माँ तबियत नासाज़ होने का राज़ जान लेती है |
करीब दर्जन भर घरो के  फासले पर एक बूढी औरत रहती है | अस्सी पार कर जाने  बाबजूद काकी की कमर एकदम सीधी है , लपक के चलती है |
सस्ता चश्मा लगाती है जिसके सिरों पर उसने अपने हाथ से बारीक डोरी लपेटी हुई है | चेहरा झुर्रीदार है , बाल दूध से सफ़ेद | काका दशक भर पहले ही चले गए , बेटे हैं , बहुये है , पोते पोती हैं , पर विधवा काकी का अब वो  रुआब नहीं रहा |  काकी अशक्त है , लड़के दब्बू हैं |  कई बार बहुये खाने पीने को भी तरसा देती है |
कुल मिला के लाचार बुढ़ापा है काकी का |

काकी माँ  के पीछे पीछे आती है दबे दबे पाँव | हाथ में नीम की टहनी लिए होती है |
काकी मेरा सिर नीचा कर अपना हाथ मेरे सिर पर रख देती है और बहुत देर तक कुछ कुछ बुदबुदाती रहती है |
फिर चमड़े का जूता लेकर मेरा सिर छू भर देती है| फिर कई बार जूता जोर जोर से जमीन पर पटापट पीटती जाती है |

टोटका पूरा  होने के बाद काकी हमेशा पूछती है " अब कुछ हल्का हुआ , लल्ला शरीर तेरा |"
और मैं हमेशा बोलता हूँ " हाँ , काकी काफी हद तक सही है | "

जाते जाते काकी माँ को लगभग हड़का के बोलके जाती है " इसके बैग में लहसुन की गाँठ रखे बिना मत जाया दिया कर इसे सहर | 'हवा ' का हिसाब हो जावै है ईसै"
और मेरी मां हमेशा काकी की बात से इत्तेफाक रखती नज़र आती है |

काकी जब जब अपने जादू टोने से मेरे ऊपर से 'हवा ' का असर काटती है ना , उसकी आखों में चमक होती है , उन लम्हो में वो एक ताकतवर औरत होती है जो अपने हुनर से मेरा दर्द खींच लेती है |

काकी की आँखों में वो रौशनी देखने के लिए और उसे उसकी ताकत का एहसास कराने  के लिए ही मेरे शरीर पे अक्सर ' ऊपरी हवा ' का असर होता रहता है!

                                                                                                            सचिन कुमार गुर्जर
                                                                                                                 13/10/2017








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