शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

भैय्या जी की तो डेटॉल से ही बनेगी !

 
 पिछले दिनों गाँव के नुक्कड़  वाली हज्जाम की दुकान पर  हजामत बनवाने गया तो हज्जाम के नए शागिर्द ने पूछ लिया " सिम्पल  या डेटॉल से ? डेटॉल की शेविंग क्रीम से शेव कराने का पांच रूपया एक्स्ट्रा लगता है ।"उस्ताद हज्जाम  ने उसे लगभग झिड़कते हुए कहा ' ये भी कोई पूछने की बात है , भैय्या जी की तो डेटॉल से ही बनेगी । '

 हालाँकि हमने कभी  अपनी तरफ से कोई पसंद  नापसंद  जाहिर नहीं की पर उस्ताद ने  अपनी कुछ गुणा भाग के आधार पर ही  हमारा चयन डेटॉल की शेविंग वाली इलीट ग्राहक सूची में डाल रख छोड़ा  है। 
हमने कभी कुछ कहा भी नहीं । अब  आप ही बताये कि पांच रुपए के चक्कर में क्यों इलीट होने का स्टेटस खोया जाये ? मतलब ये कि दाढ़ी बनाने , बनवाने में भी क्लास घुस गया है । हसनपुर के नाई की दुकान में  भी क्लास का कीड़ा घुस बैठा । 

बात आपको साधारण , बेमतलब लग सकती है । पर हमसे पूछो जिन्होंने आजकल के हज्जाम के अब्बा का समाजवाद ,समानतावाद   साक्षात्कार किया है ।उस ज़माने में आज के जैसे कटिंग सैलून न हुआ करते थे । महीने में एकाध बार चौपाल पे मुख्त्यार साहब की पोटली खुलती थी ।पोटली में गिने चुने औजार होते थे । एक मैली काली कैंची , एक नख कतरनी,बेरंग पुराना कंघा  और एक  जाना पहचाना जल्लाद ,खुट्टल उस्तरा ।होने को तो उस्तरे की धार चमकाने को चमड़े की एक थेक्ली भी होती थी , पर वो चीज हमे दिखावटी ही जान पड़ती थी । क्योंकि उस्तरा ,कैंची उस पर रगड़े  जरूर जाते थे पर रहते थे खुट्टल के  खुट्टल ही । उह्ह्  आह करते हुए ही हमे अपने बाल हज्जाम को न्योछावर करने होते थे ।

उस पर, पीछे से अड़ोस पड़ोस के कोई दादा आ जाते और मुख्त्यार को कहते ' रे मुख्त्यार   , बालों के संगी संग तनिक तनिक से कान भी क़तर लियो  इस बालक  के , बहुत बड़े हो गए है , हवा में उड़े है ।'
हम क्या बोलते , हज्जाम ने हमे पहले ही हिदायत दी होती थी कि चुप्पी चान साँस रोक बैठे रहियो , जरा से इधर से इधर हुए कि समझो उस्तरा लगा  । हालत वही होती जो एक बकरे  की होती है कसाई के के हाथो में । 
 उस एकल ,समाजवादी  उस्तरे के नीचे गाँव के सातों  जात के आदमी  नपते थे ।  पूरब के गुर्जर, दक्खन के गड़ेरिये , पश्चिम के बनिए भी ! और सबका अनुभव भी एक सा ही  होता था  खर्र खर्रर्र , खुरच खुरच … आअह ओह्ह्ह्ह आउच .... !

अब दुनिया तरक्की कर गयी है , खुट्टल  उस्तरे की जगह नए तरह के टोपाज ब्लेड वाले विलायती उस्तरे इस्तेमाल  होते है , जो मलाई के माफिक चलते है । नए लड़के शेविंग के बाद  आफ़्टरशेव लगाने की माँग  करते है।  गाँव के हज्जाम ने सबकी जरूरतों के  हिसाब से ताम झाम जोड़ रखा है ।जमाना बदल गया है , हसनपुर भी !

और हाँ , हज्जाम का वो नया चेला अब हमे पहचानने लगा है , उसे पता है कि भैय्या जी  की हज़ामत तो डेटॉल से ही बनेगी ।

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