रविवार, 9 जनवरी 2011

इतिहास के पन्नो से



अरसे बाद, आज रविवार की उन्नीदी सुबह में कुछ फुर्सत के पल मिले है |
एकांत के कुछ पल | एकांत पा मन स्मृतियों के हिंडोले में जा बैठा है |
स्मृतियाँ  ,कॉलेज के दिनों की | स्मृतियाँ अल्हड बचकानी हरकतों की | स्मृतियाँ बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाने की |

ऐसा ही एक वृतांत याद आ पड़ा है |
वो अगस्त २००४ के दिन थे |कॉलेज आये हमे साल गुजर चूका था और हम नए बैच के आने से  सीनियर बन चुके थे |
 नयी नयी आजादी|  हम स्वछंद ,नए पंख लगे पंछियों की  तरह थे जो एक दिन में ही आकाश के उस पार झाकने का हौसला  रखते थे |
मेरा संकोची स्वभाव जा चूका था और मैं उछल कूद करने वाली चांडाल चोकड़ी का हिस्सा बनता जा रहा था |
बैच के गढ़वाली  साथियों के सरल व्यबहार ने मुझे आकर्षित किया था और मैं अपने किर्याकलापों का उनके क्रिया कलापों  से समन्वय बिठा रहा था |

वो  रविवार का दिन था | मौसम खुशगवार था | बरसात थमी हुई थी |
चंडाल चोकड़ी प्यारे बिहारी के रूम में जमा थी और मामा के १४ साल के उत्तरकाशी के Advencho (adventure ,साहसिक अभियान ) से प्रेरित किसी मिशन पे जाने की तय्यारी कर रही थी |
मामा स्वभाभिक नायक हुआ करता था | भांजा और बिहारी उसके दो प्यारे से अंध अनुनायी | पंवार और ध्यानी सिपेसलाहार |
 उन दिनों सप्ताहांत पे कही ना कही घूमने का प्रयोजन (मिशन)  बना करता था | उनमे से कुछ काफी सफल और चर्चित हुए जैसे कि मिशन काफल , मिशन डांडा नागराजा,मिशन  चद्रवादनी |

मेरा जिज्ञासु मन पूछ बैठा | क्या मिशन है इस बार?
पता चला ,चोकड़ी , छात्रावास  की तलहटी में सीड़ीदार खेतो के उस पार बसे छोटे से गाँव मिन्थी जाने का मिशन बना रही थी | मकसद था किसी गाँव वाले से दूध लगाने का |
मेरे सामने भी प्रस्ताव रखा गया और मेरा प्रकर्ति प्रेमी मन मना ना कर सका|

हम चल पड़े | विश्वेश्यराया छात्रावास  के पीछे के ढलान के रास्ते हम दूर खेतो के उस पार उतर गये |
दूर दूर तक हरियाली का साम्राज्य , कच्ची रपटीली पगडण्डीयों पे हम अटखेलिया करते ,गाते गुनगुनाते |
नीचे गहरायी में हरितमा लिए ,इठलाती अलकनंदा बह रही थी| चीड के ऊँचे पेड़ो के पत्तो से तेज हवा के झोंके जब गुजरते ,तो लगता मानो कोई वीणा के तारो को छेड़ रहा हो|
दिन काफी चढ़ आया था और गाँव के सभी नर नारी अपने अपने खेतो को निकल चुके थे | पूरे गाँव में हमे बकरी के कुछ मेमनों और गायों के सिवा कुछ ना दिखाई पड़ा |
गाँव की प्राथमिक पाठशाला में हम कुछ देर सुस्ताने को रुके और फिर हमने वापसी का रास्ता पकड़ा |

वापसी में  भी हमने वही रास्ता पकड़ा और विश्वेश्वराय छात्रावास के पीछे थोडा सुस्ताने को रुक गये |
बताता चलूँ ,कि विश्वेश्वराय छात्रावास जूनियर छात्रों का रैन बसेरा हुआ करता था ! चूँकि हम सीनिअर हो गये थे सो हमारा तबादला बड़े छात्रावास में हो चूका था |
उसी पल , ना जाने किस खुरापाती दिमाग में अपने नए नए जूनियर आगंतुको का हालचाल जानने की जिज्ञासा जाग उठी |
अनायास ही कदम छात्रावास के खेतो की  ओर झांकती  खिडकियों की ओर बढ़ गये |


खिड़की पे जाकर किसी ने सिंह गर्जना की |बेचारे जूनियर छात्र, नीरीह भेडों के हुजूम से खिड़की के पास आ खड़े हुए |
झुकी गर्दने,करून वंदन में जुड़े हाथ | जूनियर छात्रों के व्यवहार से चंडाल चोकड़ी को अपनी नयी नयी प्रभुता  और वरिष्टता का
एहसास हुआ | वरिष्ट और शक्तिशाली होने का नशा इस कदर हावी हुआ ,कि अनायास ही ,बिना किसी उकसावे के, चोकड़ी ने जूनियर छात्रों पे हाथ सफाई शुरू कर दी|

हाथ भांजने में भांजा और पंवार सबसे आगे दिखाई दिए |
भांजे की  चपलता देखने लायक थी | जिन हाथो में कल तक मूंगफली फोड़ने का दम भी ना था ,आज वही हाथ बेचारे नीरीह नवागंतुको पर ड्रोन हमलो सा कहर  बरपा रहे थे | मिनटों में ,ना जाने उसने कितने गालो को चमका दिया |
थप्पड़ो की  बोछार हो रही थी |वातावरण आवेश से भर गया |
पंवार साहब , जिन्हें उनके तनुक मिजाज की वजह से 'खस बुद्धि' की संज्ञा से नवाजा गया था ,उनसे रहा ना गया | गर्मी में खिड़की के किनारे विराजमान ईट उठा बैठे और  नवागंतुको की तरफ तान बैठे |
भीड़ में हडकंप सा मच गया | बेचारे नीरीह जीव त्राहिमाम त्राहिमाम करते ,बदहवास से इधर उधर भागने लगे | हम सब हंसी  से लोट पोट|
व्यतिगत तौर पे , मेरा विश्वास इस तरह के मनोरंजन में कभी नहीं रहा | मैं अपनी ख़ुशी के लिए दूसरो को भयाक्रांत नहीं कर सकता |पूरी घटना के दौरान मैं एक कोने खड़ा रहा | मेरे सहज संवेदी मन ने मुझे बहती गंगा में हाथ धोने से रोका | 
खैर ,किसी तरह ये तांडव रुका और हमने अपने छात्रावास का रुख किया |
     
अपनी इस करतूत पे इतराते ,खिलखिलाते और गर्व से फूले हम लोग अपनी आरामगाहो में लौट आये |
उधर इस घटना से हडकंप मच गया | मसला मीडिया ने सूघ लिया और राजधानी देहरादून में टेलीफ़ोन घनघना उठे |
जिला प्रशासन को मामले को गंभीरता से लेने और दंगइयो को सजा देने के आदेश हुए |

घटनाक्रम से अनभिज्ञ हम अपनी आराम गाहो में सुस्ताते रहे |
शाम को प्यारे बिहारी के रूम से जोर जोर की  उठा पटक और डांट फटकार की आवाज़े सुन मेरी निंद्रा टूटी |
रैगिंग विरोधी दस्ते का छापा पड़ चूका था | एक पल को  मन सिहर उठा | अनजाने ,अनचाहे ही आफत में फंस गया |
पर  मन आश्वस्त भी था | जब मैंने कुछ अपराध ही नहीं किया तो भय कैसा |
वो शाम क़यामत से  कम ना थी | जिला प्रशासन के वरिष्ट अधिकारी ,कॉलेज आ चुके थे | पुलिस अपनी लाठियां भांजने को तैयार थी | हर कोई अपने किरदार को पूरी संजीदगी से अंजाम देने को तैयार ,और इधर हम लाचार |
इश वंदना में प्राण समर्पित ,प्रभु इस बार बचा ले | 

पर सारी प्रार्थनाये अनसुनी रही | पूछताछ के दौरान मेरा नाम भी आपराधि सूचि में आ गया |
पहली बार मैं पुलिस की गाड़ी में बैठा और अन्य साथियो के साथ मुझे भी जिला प्रशासन और रैगिंग विरोधी दस्ते के सामने
पेश किया गया |
मन किसी अनहोनी के डर से छटपटाया ,बलबलाया, अपराध बोध से भर उठा |
क्या इस सब के लिए ही घर वालो ने अपने खून पसीने की कमाई लगा मुझे यहाँ भेजा | भविष्य की संभावनाओ और आशंकाओ से मन उधिग्न हो उठा |

मुझे छोड़ वाकी सभी साथियो को देश निकाला दे दिया गया | सभी को एक सत्र के लिए कॉलेज से बाहर किया गया |हम सभी  को १००० रुपए का आर्थिक दंड भी देना पड़ा |
कॉलेज छात्र आचरण मापन सूची में हमारे नामों के आगे तीन तीन काले बिंदु लगा दिए गये | एक और गलती और हम कॉलेज से सदा के लिए निकाल फ़ेके जाते |
कॉलेज के वरिष्ठ छात्र संगठनो  ने हमारे साथ हुए अन्याय की दुहाई दी |
कॉलेज प्रशासन का कोप भाजन हुए अन्य साथियो ने HOG (हॉस्टल आउट ग्रुप) बना लिया और पूरे सत्र दूसरे साथियो की हमदर्दी का फायदा उठा ,मुफ्त में चोरी चोरी हॉस्टल की मेस में परांठे मख्खन  उड़ाते रहे |
घटना के बाद उन सभी की प्रसिद्धी में चार चाँद लग गये | कॉलेज प्रशासन से लेकर  लड़कियां तक सब उन्हें पहचानने लगे |
उन्हें कॉलेज प्रथा को बरक़रार रखने के प्रयास  में कुर्बान होने को लेके स्वतंत्रा सेनानियों जैसा आदर दिया गया |

ये प्रकर्ति प्रेमी मन मुफ्त में 'गेहूं के साथ घुन जैसा ' पिसा और होस्टल आउट ना होने के वजह से सस्ती लोकप्रियता बटोरने से
भी वंचित रह गया | 

आज वर्षो बाद जब कभी इस घटना की याद आती है तो चेहरे पे हलकी सी शरारती मुस्कान बिखर जाती है |

3 टिप्‍पणियां:

  1. मुस्कान तो हमारे चेहरे पे भी आ गई।

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  2. धन्यवाद मनोज जी ,एक मुस्कान आई तो समझो लेखन सार्थक हुआ :)

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  3. Those who are not familiar with this HOG,must like to tell them this stands for Hostel out Group..formed by GBPEC MCA 2003-2006 batch, when they were ousted from hostel for 2 months due to ragging juniors, the very famous group during college days..having its members as Viany, Ajeet, Deepak, Devendra, Ashish and some how sachin missed the chance being part of this group.. just escaped only paying the fine..Other famous group during those days are BLG, ABBS, ABKS, Chit-Put group...

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