सोमवार, 21 जून 2021

फ्लोरल मास्क



पता नहीं ये अनुशासन कब तक कायम रहेगा पर आजकल मेरा रूटीन ये है कि जरूरी,  गैर जरूरी, पसंद ना पसंद , हर तरह के काम निपटाते हुए मैं शाम के साढ़े छः बजने का इंतज़ार करता हूँ | साढ़े छः बजते ही मैं अपना मास्क अपनी कलाई में लपेट जॉगिंग के लिए झील के किनारे निकल लेता हूँ | इधर जॉगिंग करते हुए मास्क न लगाने की मोहलत है , पर वापसी में धीमी चाल लौटने पर मुझे मास्क चाहिए होता है | झील की परिधि पर लगभग साढ़े चार किलोमीटर का ग्रेवल ट्रैक है |  ट्रैक के आखिर में झील के ऊपर एक फ्लोटिंग वुडेन ब्रिज बना है ,जहाँ जिंदिगी के ढलते सूरज के बाबजूद कुछ जिंदादिल बूढी , चीनी मूल की महिलाएं मैंडरिन गानो पर नियमित रूप से  सालसा करती हैं | कुछ दंपत्ति अपने बच्चों के साथ कछुओं और मछलियों को  ब्रैड क्रम्स खिलाते रहते है | और वही कहीं खड़ा मैं पसीना सुखाता जिंदगी के तमाम फिलोसॉफिकल सवालों  के जबाब तलाशता रहता हूँ | 

मौसम अच्छा था आज | ना ज्यादा उमस , हलकी हवा थी | टीले पर लगे समन के पेड़ो के झुण्ड के पीछे डूबते सूरज का रंग सुरमई था | कुछ बादळ का टुकड़े यहाँ वहाँ रूई के फाहे से छितराये थे , कुछ ऐसे जैसे किसी मंझे हुए पेंटर ने तस्वीर पूरी करने के बाद ब्रश के दो चार स्ट्रोक यहाँ वहाँ मार दिए हों | एक एयर फाॅर्स का ट्रैनिग प्लेन झील के किनारे लगे पेड़ो की कैनोपी से काफी पीछे , धीमी गति से  उड़ रहा था | एयर फाॅर्स का प्रैक्टिस ग्राउंड है उधर | हर बार में एक के बाद एक आठ पैराट्रूपर्स प्लेन से कूदते | ब्रिज से उनकी बड़ी छतरी में लटके ट्रूपर्स   किसी आधी इस्तेंमाल की हुई पेंसिल से दीखते और महज मिनट भर में उनकी आकृतियाँ पेड़ो की कनोपी की आड़ में आ गायब हो जातीं | ट्रैक पर चलते, ब्रिज पर खड़े  लोग रुक रुक कभी सनसेट तो कभी पैराट्रूपर्स की काली आकृतिओं  को अपने फ़ोन्स में कैद कर रहे थे | 

सड़क  झील से थोड़ा ऊपर की तरफ  है | मास्क चढ़ाये मैं वापसी में सड़क की तरफ चढ़ रहा था |  एक युवक , कोई छब्बीस या सत्ताईस का रहा होगा , जॉगिंग करते से मेरे पास रुका और बोला : हेलो , हाऊ आर यू डूइंग  टुडे ?"

"फाइन फाइन वैरी फाइन , थैंक्स !"

खुशगवार मौसम में आदमी का मूड भी खिल जाता है , वरना आजकल कौन किसका हाल पूछता है , रेड लाइट पर खड़ा मैं यही सोच रहा था |  

दो अपार्टमेंट ब्लॉक्स पार करने के बाद एक पार्क कनेक्टर आता है | एक पतला ग्रीन कॉरिडोर , जहाँ काफी हरियाली है | कुछ झूले और एक्सरसाइज मशीन्स लगीं है | छोटे बच्चों  और उनके पेरेंट्स को ये जगह काफी मुफीद आती है | 

एक युवक , मेरा ख्याल है , तीस का रहा होगा , पार्क कनेक्टर से मेरी तरफ आया | काफी बड़ी मुस्कान लिए था | नस्ल का उल्लेख गैरजरूरी जानकारी है | स्वागत भरी मुस्कान | जैसे वो मेरा परिचित हो और मेरा इंतज़ार करता हो | आज मौसम वाकई खुशगवार था !

ग्रेन कॉरिडोर के बाद एक हाई वे आता है | हाईवे क्रॉस करने को एक फुट ब्रिज है | मैं चढ़ने को ही था | एक आदमी , जो थोड़ा उम्रदराज था , पर काफी वेल ग्रूम्ड , स्लिम ड्रिम , स्पोर्ट्स वियर डाले , वाइट स्नीकर्स में , मुझे देख कर वो ठिठक गया | उसका देखने का तरीक थोड़ा अजीब था | उसकी आँखे किसी जंगली बिल्लौटे जैसी थीं | घूरने की मुद्रा थी उसकी | जैसे पूछ रहा हो तू इधर कैसे ? मुझे समझ नहीं आया | मैं चलता गया | शायद कुछ गलतफहमी हुई हो |  या मेरी शक्ल किसी से मेल  खाती हो | आखिर उसके पास मुझे नफरत करने की कोई वजह तो थी नहीं | मैंने उसका रास्ता तो काटा नहीं | पूरा मास्क चढ़ाये एक दरमियाने से प्राणी से उसकी क्या नफरत | 

फुट ब्रिज सुनसान था | दूसरे कोने से भी कोई आदमी नहीं दीखता था | स्थिति का फायदा उठा मैंने मास्क उतार लिया | 

और मास्क उतारते ही मेरे  दिमाग में जैसे बिजली दौड़ गयी " ओह्ह , ये मास्क "

"ओह्ह्ह , ये मास्क! " 

मैं रुक गया | ये मास्क मैंने अभी दो दिन पहले ही एक माल से खरीदा था | मेरे पास कई सारे काले, नीले मास्क है |  जब मैंने इसे शॉप कार्ट से उठा देखा तो मुझे लगा कि थोड़ा फ्लोरल है , थोड़ा फेमिनिन लगता है | पर काले बेस पर डर्टी वाइट में बने जैस्मीन के फूल के छापे वाला मास्क , मुझे लगा ठीक ही है | कभी कभी लगाया जा सकता है | इसका फ्लैप नाक के जोड़ तक जाता है | कपडा सूती है | कानों के पीछे जाने वाली तनियाँ कानों की नसों को नहीं दबातीं | आरामदायक है | 

पर कहीं ये ही तो कारण नहीं | 'हेलो' , फिर  स्माइल और और वो वो  पैंथर की आँखे लिए वो आदमी | अहह , ये जैस्मीन का फ्लावर मास्क | कुछ रॉंग सिग्नल हो गया क्या ? गलत दुनिया में कदम रख दिया शायद | 

मैंने पैर जमीन पर मारा | धत्त्त | फिर खुद को ही दुत्कारा "सचिन , टू मच फिक्शन , हुह्ह। .. " एक इंडियन शॉप पर रुका , कुछ रस्क के पैकेट लिए , एक सेवई का पैकेट भी | खुश हुआ , काफी अरसे से सेवई खाने का मन था | 

पर मेरा दिमाग अब भागने लगा था | मैट्रिक्स मूवी , जोमंविज जो रात को निकलते हैं , दूसरे गृह के प्राणी जो इंसान बनके हमारे बीच में रहते है और हम उन्हें परख नहीं पाते | ये दुनिया कई सारे आयामों में  चल रही होती है | हम जिस घेरे में रहते है, सोचते है बस उतने में ही सब कुछ है | ये वाइट स्नीकर्स पहने , स्लिम ड्रिम , वेल ग्रूम्ड , लगभग परफेक्ट बॉडी लिए , ऐसे जिन्हे देख मेरे जैसे लोग हीन भावना से भर उठते है, ये सब शायद  अलग घेरे में  रहने वाले लोग हैं | क्या सुन्दर, फैशनअबल  दिखने वाले सभी पुरुष ? नहीं नहीं | 

महज इत्तेफाक भी तो हो सकता है | घर के नजदीक आते आते मैं  सोच रहा था | आखिर किसी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जो वाकई कुछ ठोस साबित करे | 

हाँ ये महज संयोग भी हो सकता है | देखो न , फिर आज मौसम भी कितना अच्छा है | 

घर से ठीक पहले बस स्टॉप पर , मेरे पीछे पीछे एक युवक चल रहा था | काफी सुडोल , जिम का शौक़ीन | 

"हेलो ब्रदर " पीछे से आवाज आयी | वो शायद फ़ोन पर था |  

कुछ देर बाद उसने फिर कहा "हेलो ब्रदर "

अब वो बिलकुल मेरे बगल में आ गया | 

"नाइस मास्क ब्रदर " बड़ी चौड़ी मुस्कान लिए उसने कहा | 

"कहाँ से लिया ?" उसने पूछा | 

अचानक से मुझे याद भी नहीं पड़ा | "यहीं से किसी दुकान से "

फिर मुझे याद आया और मैंने कहा " बेडोक मॉल से |"

"वैरी नाइस ब्रो , वैरी नॉइस "

फिर वो मेरे घर की ओर मुड़ने वाली स्ट्रीट तक  साथ साथ चलता रहा | 

होता है कई बार | इत्तेफाक में इत्तेफाक जुड़ते चले जाते है | आखिर आज मौसम भी तो बड़ा प्यारा है | 

लेकिन ये मास्क ? मुझे लगता है इसे उठा कर रख देना ही मुनासिब रहेगा  !


                                     - सचिन कुमार गुर्जर 

                                      २१ जून २०२१ 

शनिवार, 5 जून 2021

जाने भी दीजिये |



सिंगापुर  में बारिश वैसे ही गिरती है जैसे अचानक बिना खबर, डोरबैल दबाने वाला कोई आगंतुक | नीचे उतरने से पहले कमरे की खिड़की से,  अपार्टमेंट्स की पहाड़ियों के पीछे काला बादल जरूर था, पर था बहुत  दूर |दूर,  वैसे ही जैसे वजूद की हकीकत के बैकड्रॉप में उभरते सपनों  में पलने वाली खुशहाली , सुकून और मनचाहा प्यार | ढाई फर्लांग की दूरी पर 'न्यू रेज़की इंडियन मुस्लिम रेस्टोरेंट' है |  छोटा दुकाननुमा , पांच छः टेबल | इंडियन के साथ मुस्लिम लिखने का यहाँ चलन है | इससे भारतियों के साथ साथ मलय मूल के मुस्लिम भी ग्राहक हो जाते हैं | आजकल डाइनिंग तो बंद ही है | एक मलयाली लड़का काम करता है , मेरे लिए चपाती बना देता है | थोड़ी आत्मीयता रखता है | मैं कुछ दिन उधर नहीं जाता तो शिकायती लहजे में कारण पूछता है|  चीनी मूल की युवती है | आर्डर लेने , परोसने , बिल काटने का काम करती है | शरीर से थोड़ा भारी ,आँखे चीनी मानक के लिहाज से भी छोटी ,चेहरे मोहरे से आकर्षक नहीं | लेकिन उम्र के गुलाबी सालों में है | सबसे बात करती है, तुकी बेतुकी हर बात पर हंस देती है | तोते पालने वाले, आर्थिरिटस से जूझते बूढ़े ,पड़ोस की दूकान का नाई , बेकरी में काम करने वाला कमउम्र लड़का, साइकिलों पर मछली पकड़ने के हुक लटकाये झील को जाते शौक़ीन अधेड़, हर कोई उससे कुछ कहता है और उसकी सुनता है | दर्जनों दिल हलके होकर जाते है |  वो मुझे देखते ही रसोई की तरफ देखकर चिल्लाती है: चपाती , टू चपाती | शायद वहाँ चपाती खाने वाला मैं अकेला हूँ | चपाती मेरी पहचान हो गयी है | 

बारिश का मौसम , घर में बैठकर कौन खाये | यही सोचकर बिल्डिंग के पटिओ कवर में जमी कंक्रीट की बेंच पर आ जमा हूँ | दो चीनी मूल के आदमी पहले से विधमान  हैं | पोक्का जापानी ग्रीन टी पी रहे हैं | एक कोई पचपन छप्पन का होगा | मूछें रखे हुए है ,चूहे जैसी मूछें, बाल गिनने भर लायक है बस | तोतई रंग की मैंडरिन कालर की शर्ट पहने है | इस कदर दुबला कि उसकी कोहनियों के जोड़ उसकी भुजाओं से बड़े है | दूसरा चौतीस पैंतीस का होगा | बाल साइड जीरो कट , मुर्गे की कलगी की तरह बीच से छोड़े है बस | दोनों औसत चेहरे , शायद सामने की सेमीकंडक्टर फैक्ट्री के वर्कर हैं  | जिंदगी की भाग दौड़ में खर्च होने वाले आम इंसान |

पचपन साला कुछ सुना रहा है | शिकायतें हैं कुछ | कुछ नहीं बहुत सारी | होक्कीयन में बात कर रहें है शायद | या फिर केंटोनीज़ में | मैं फर्क नहीं कर सकता |  शिकायतें , उफ्फ कितनी शिकायतें | उसका साथी जब बीच बीच में उसकी शिकायतों को कमतर आंकने की कोशिश करता जान पड़ता है तो वो अपने पिटारे से कोई नयी बात निकाल पेश करता है|  कंक्रीट की मेज पर हाथ मारता हुआ दोगुने दम से फड़फड़ाता है जैसे कहता हो : "क्यों ,पर क्यों , मेरे साथ ही क्यों ? "

अवेनुए के किनारे चौड़े पत्ते की महोगनी के पेड़ों की कतार है |  पेड़ , लैम्पपोस्ट , स्पीडमॉनीटर कैमरे के पोल , रोड सिग्नल, सबके ऊपर जैसे आसमान टूट पड़ा है | लोहे के सरिये जैसे मोटे धार की बारिश है | मैंने चाय आर्डर की थी लेकिन कवर वाले डिस्पोजल कप में पहली सिप ली तो एहसास हुआ कि रेस्टोरेंट वाले लड़के  ने कॉफ़ी डाल दी है | कोई शिकायत नहीं | 

लेकिन इस पचपन  साला आदमी को क्या शिकायत है | बीवी से अनबन ? नापसंदगी अभी तक ? लेकिन क्यों ? क्या उसके पास माँ नहीं रही ,जिसने जब वो पैंतीस का हुआ हो ,  उसके बालों में हाथ फेर कहा हो , अब अपना सोचना छोड़ , बच्चों का सोच | उसकी खुद के लिए जीवनसाथी से जुडी आकांक्षाओं, उम्मीदों को तो उसी दिन मर जाना चाहिए था | है कि नहीं ? 

फिर ? शायद बेटा सही राह न चलता हो ?  पर उसका बेटा तो कॉलेज कर चूका होगा या जो भी राह पकड़नी होगी ,पकड़ चुका होगा | क्या बेटे की मसें भींगने के साथ ही इस आदमी की संतान के भाग्य का विधाता बनने की इच्छा नरम नहीं पड़ जानी चाहिए थी ? संतान तो तरकश के तीर की भांति ही है | बल लगा के छोड़ दीजिये , फिर जो भी ऊंचाई ले | कमान से निकलने के बाद भला क्या इच्छा,  क्या उम्मीद | शायद इस आदमी का बॉस उसे तंग करता हो | या स्वास्थ्य सही न रहता हो | इंसान के पास माथा पटकने के लिए लम्बी फेहरिस्त होती है | 

महोगनी के तने से चिपटी पुरानी छाल बारिश के पानी भर जाने से तना छोड़ गिर रही है और उसकी जगह नयी छाल में तना नया हो गया है | इंसान की उम्मीदों को  , सपनों को उम्र के साल गिरने के साथ गिर जाना चाहिए |  उम्मीदे , सबसे पहले खुद से| फिर  बीवी से, संतान से, समाज से , सरकार से , भगवान से | सबको ढह जाना चाहिए | 

घास पर चलते हुए घुटने दर्द नहीं करते तो मुस्कुरा दीजिये | अच्छा खाइये , अच्छा पहनिए | 

हाँ , जेब इजाजत देती है तो अच्छे लेदर के महंगे जूते पहनिए | महंगा जूता राजा होने जैसा फील देता है | सच्ची !

  पुराने सपनों  को गिर जाने दीजिये |  जाने भी दीजिये |    


                                                                 - सचिन कुमार गुर्जर 

अच्छा और हम्म

" सुनते हो , गाँव के घर में मार्बल पत्थर लगवाया जा रहा है , पता भी है तुम्हे ? " स्त्री के स्वर में रोष था |  "अच्छा " प...