अभी पिछले रविवार की ही तो बात है | मैंने कैब बुक की थी | कनॉट पैलेस से मुखर्जी नगर जाने के लिए |
ड्राइवर समय से पहुंच गया था | कार एक दम साफ़ सुथरी, वेल मैंटेनेड , स्क्रैच फ्री !
'स्क्रैच फ्री' इसलिए वर्णन योग्य है क्योंकि दिल्ली में स्क्रैच फ्री कार का होना , अफेयर फ्री , फुल्ली डिवोटेड गर्लफ्रेंड जितना ही सुखदायी है | उपलब्धि है अपने आप में !
आई मीन , यू कैन फील प्राउड अबाउट इट !
किस ब्रैंड की ? पता नहीं | ध्यान नहीं रहा |
हाँ , पर रचना संरचना , ढांचागत आधार पर वैसी ही , जैसी रखने की मेरी विशलिस्ट में है |
मेरे बिस्तर के सिरहाने दबी विशलिस्ट में , जिसे मैं हर रात सोने से पहले दोहराता हूँ!
ऐसा मैं किसी पागलपन की वजह से नहीं करता , एक जाने माने मोटिवेशनल बाबा की सलाह पर करता हूँ !
ये जो मोटिवेशनल बाबा हैंगे , बहुत पहुंचे हुए बाबा हैंगे ! दर्जन भर बेस्टसेलर किताब लिख चुके है |
लॉजिक ये है कि कुछ भी पाना असंभव नहीं है , बस उस बात को आपको अपने सबकॉन्सियस में उतारना होगा | बाकि सारे इंतज़ामात कायनात खुद-ब -खुद करेगी | ऐसा बाबा जी की एक किताब में लिखा है |
और मेरी बाबा के एक एक बोल में श्रद्धा है!
मैंने कही पढ़ लिया था , 'मिनिमलिस्ट ' | यानि ऐसा आदमी जो कम से कम संसाधनों का इस्तेमाल कर जीवन का सुख अपने अंदर टटोलता है | मुझे अच्छा लगता है ये शब्द !
अभी पिछले दिनों किसी शादी में शरीक हुआ था , अपनी पुरानी फैमिली कार 'आल्टो ' के सहारे |
एक अच्छे दोस्त ने , जो की हर तरह से मुझसे ज्यादा सफल है , फिर भी मेरे किसी रहस्यमयी टैलेंट से जलन खाता है , उसने बीवी के सामने ही मुझे खींच लिया था |
"क्यों बे , गांधीवादी , कुछ तो स्टेटस होना चाहिए यार , सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो यार! "
और मैंने पाया कि बीवी की आंखे बड़ी हो गयी है , उसकी आँख के कोने में एक आँसू उभर आया था , गनीमत रही कि आँसू गिरा नहीं ! "
बेटा , कुल जमा साढ़े चार साल का है , उसने बोला " पापा , अपनी कार ऐसी होनी चाहिए जिसमें कैमरे लगे होते है , और जिसमें स्क्रीन लगी होती है , और और जिसमें पीछे का दिखता है ! "
"और जो पानी में तैर सके , हवा में उड़ सके, क्यों ?" मैं हँस पड़ा था |
पर उस रात घर वापस लौट कर मैंने अपनी विश लिस्ट में जोड़ा : आइटम नं 10- एक अच्छी सी फैमिली कार , क्रीम कलर में |
हाँ तो , वो कैब समय से पहुँच गयी थी | ड्राइवर एकदम वेल ग्रूम्ड , ब्रांडेड कपड़ो में !
28-30 का वो गोरा जवान, बालों में जैल लगाए , चौड़े सिल्वर डाइल की घडी बांधे था | वाइड स्क्रीन महंगा फ़ोन गियर के बगल के ट्रे में रखा था |
गंतव्य पूछने के अलावा उसने अपनी तरफ से बातचीत की कोई पहल नहीं की |
मुझे उससे बात करने की जिज्ञासा कुछ ज्यादा इस लिए भी थी क्योकि वो टिपिकल कैब वाला तो था नहीं |
मेरा अनुमान तो ये था कि वो कोई आई टी वर्कर था | गुस्ताखी माफ़ हो , पर सॉफ्टवेयर इंजीनियर , आई टी प्रोफेशनल , ऍम एन सी वर्कर टाइप्स ही कुछ |
" तो ये काम पार्ट टाइम करते हो , भाई " मैंने संवाद खोलने को यही पूछना उचित समझा |
"हैं जी " उसने बस इतना बोल कर चुप्पी साध ली |
ये 'हैं जी ' ना तो 'हाँ' था , न ही 'ना' | ये बस इस बात का संकेत भर था कि मेरी बात सुन ली गयी थी , शायद आधी अधूरी |
पता नहीं क्यों , मुझे वो आदमी अपनी जात का लगता था | सो मैं उससे कुछ सुनना चाहता था |
मैं उससे सुनना चाहता था कि कैसे साल दर साल कॉर्पोरेट में काम करते रहकर भी जिंदगी EMI की भागदौड़ बनकर रह गयी थी |
मैं सुनना चाहता था कि कैसे उसका कॉर्पोरेट जॉब से मोहभंग था पर घर चलाने की मज़बूरी में वो चलता जाता था | मैं उसे हामी भरता देखना चाहता था कि लाइफ कितनी डिफिकल्ट है , और शहर में फैमिली वाले आदमी का खर्च चलाना कितना कड़ा काम हो चला है |
मैं उससे उसके किसी दोस्त की सक्सेस स्टोरी सुनना चाहता था जिसने कॉर्पोरेट जॉब ,EMI का मकड़जाल , क्रेडिट कार्ड , स्मोग भरी जिंदगी से मुक्ति का रास्ता निकाल लिया था | ऐसी सक्सेस स्टोरीज मुझे अफीम के नशे सा मजा देती हैं |
पर वो आदमी कुछ बोलने को तैयार नहीं था |
गंतव्य पास आते देख मैंने एक बार फिर कोशिश की |
" तो ये काम आप सैटरडे , संडे ही करते होंगे | क्यों " मैं बोला |
"नहीं , मैं तो यही करता हूँ , रेगुलर " इतना कहकर वो फिर से अपनी दुनिया में खो गया था |
अब मुझे उस आदमी से चिढ़ सी हो चली थी | यूँ ही , ख़मखां, बिला -वजह |
अपने घर की गली में उतरते हुए मैंने किराया चुकाते हुए बोला "कीप दी चेंज , थैंक्स !"
अब मेरे शब्दों में अकड़ थी |
मुझे पूरा यकीन था कि वो आदमी एक आई टी प्रोफेशनल था जो इस हद तक सेल्फ ऑब्सेस्सेड , खुद गर्ज़ था कि अपने साथी प्रोफेशनल को दिल हल्का करने मौका तक नहीं देना चाहता था |
उसने मेरे कह सुनकर, दुःख साझा करने , गम गलत करने के प्रयास को बुरी तरह से कुचल दिया था |
मेरी नज़र में वो खुद के लिए जीने वाला बेहद क्रूर आदमी था !
सचिन कुमार गुर्जर
दिसंबर १७ , २०१७