वो मीटिंग जो की एक बेहद जरूरी मीटिंग थी ,घंटे भर की माथापच्ची के बाद खत्म हो गयी !
मीटिंग रूम से बाहर निकलते हुए मिंटू के चेहरे पे संतोष था , सुकून था । कुछ पा जाने का सुकून नहीं , छुटकारा पा जाने का सुकून !
और चिंटू , वही जैसा वो हमेशा से रहा है , उनींदा , आँखे मीड़ता , ढले कंधे लिए हुए बाहर निकल आया था ।
कतारबद्ध बने केबिन्स को दो फाँक करती पतली गैलरी में टहलते हुए मिंटू की पेशानी पर बल उभर आया था । बोला " देखा तूने , कुछ गौर किया ? क्यों ?"
" हाँ यार , ये मैनेजर थोड़ा सख्त रहेगा शायद , रूल बुक से चलने वाला !" चिंटू ने बड़ी ही उबाऊ सी आवाज़ में जबाब दिया था ।
बात पूरी होने से पहले ही मिंटू ऊँची आवाज़ में लगभग दुत्कारते हुए बोल पड़ा " नहीं साले , नहीं । हम इस प्रोजेक्ट के सबसे सीनियर लोग हो गए है । मेरा मतलब है सबसे पुराने । समझा कुछ ?"
मिंटू को अपने पुराने हो जाने का , पीछे छूट जाने का , कुछ नया ना कर पाने का , नौकरी न बदल पाने का दर्द आये दिन उठता ही रहता था । कभी दर्द हल्का होता तो मिंटू बस भिन्नाता , तेज होता तो लगता सब कुछ फ़ेंक फाक कर दुडकी लगा देगा । पर सालों से वह अपनी जगह टिका रहा । रिसता रहा कभी फूटा नहीं ।
निठल्ले और सालों से किस्मत को अपना स्टेयरिंग थमाए चिंटू को पता था कि दोस्त के इस दर्द का तुरंत उपचार तो कोई है नहीं । हाँ एक अच्छे दोस्त की तरह दोस्त का गम गलत करने को उसने बोला " चल , नीचे खोखे पे चाय पी आते हैं। "
मीटिंग रूम से बाहर निकलते हुए मिंटू के चेहरे पे संतोष था , सुकून था । कुछ पा जाने का सुकून नहीं , छुटकारा पा जाने का सुकून !
और चिंटू , वही जैसा वो हमेशा से रहा है , उनींदा , आँखे मीड़ता , ढले कंधे लिए हुए बाहर निकल आया था ।
कतारबद्ध बने केबिन्स को दो फाँक करती पतली गैलरी में टहलते हुए मिंटू की पेशानी पर बल उभर आया था । बोला " देखा तूने , कुछ गौर किया ? क्यों ?"
" हाँ यार , ये मैनेजर थोड़ा सख्त रहेगा शायद , रूल बुक से चलने वाला !" चिंटू ने बड़ी ही उबाऊ सी आवाज़ में जबाब दिया था ।
बात पूरी होने से पहले ही मिंटू ऊँची आवाज़ में लगभग दुत्कारते हुए बोल पड़ा " नहीं साले , नहीं । हम इस प्रोजेक्ट के सबसे सीनियर लोग हो गए है । मेरा मतलब है सबसे पुराने । समझा कुछ ?"
मिंटू को अपने पुराने हो जाने का , पीछे छूट जाने का , कुछ नया ना कर पाने का , नौकरी न बदल पाने का दर्द आये दिन उठता ही रहता था । कभी दर्द हल्का होता तो मिंटू बस भिन्नाता , तेज होता तो लगता सब कुछ फ़ेंक फाक कर दुडकी लगा देगा । पर सालों से वह अपनी जगह टिका रहा । रिसता रहा कभी फूटा नहीं ।
निठल्ले और सालों से किस्मत को अपना स्टेयरिंग थमाए चिंटू को पता था कि दोस्त के इस दर्द का तुरंत उपचार तो कोई है नहीं । हाँ एक अच्छे दोस्त की तरह दोस्त का गम गलत करने को उसने बोला " चल , नीचे खोखे पे चाय पी आते हैं। "
पुराने नीम के पेड़ से सटे खोखे के बाहर पड़ी लकड़ी की सीधी सपाट बेंच । खोखे की तरपाल पर धूल इतनी कि उसका रंग हरे की वजाय मटमैला ही दीखता था । सस्ती , कम दूध वाली चाय की चुस्की लेकर मिंटू बोला " बहुत हुआ । अब कुछ करना ही होगा । "
अचानक से मिंटू के भाव बदल गए थे । चाय पत्ती की तेजी ने उसमे जोश सा ला दिया था । " यार सीनियर लोग फॉर्म में आ रहे इस सीजन । देखा ,धोनी ,युवराज कैसे रंग में आ गए फिर से । और अपना फेडरर, क्या ग़ज़ब खेला भाई , अब भी ! "
फिर लंबी साँस छोड़ते हुए बोला "इस सीजन मुझे भी PMP सर्टिफिकेशन करना ही होगा । नो एक्सक्यूसेस !"
ऐसा बोलते हुए हुए उसके जबड़े की हड्डियां मजबूती के साथ बाहर उभर आयी थी , जो की उसके दृढ निश्चयी होने का सबूत थीं !
उसका ये शिफूगा और हवा से मोटिवेशन चूसने की कोशिश करना चिंटू के अंदर बैठे निट्ठल्ले को बेहद नागवार गुजरा था । तिलमिला सा उठा था चिंटू ।
सच्चे दोस्त कौन होते हैं ?
वही , जो एक दूसरे की मदद करते है । हाँ, वो तो होते ही है । वो भी होते है जो एक दूसरें को कुछ भी ना करने की वजह देते है !
सो मिंटू के ताजा ताजा फुलाव में पंचर करने को चिंटू ने कहा " यार PMP किया तो कौन सा पसेंजर से बुलेट ट्रैन में सवार हो जायेगा । हाँ, अगले डब्बे में सवार हो जाये शायद !
स्टार्टअप कर स्टार्टअप !"
'स्टार्ट अप' शब्द चिंटू ने लंबा खींचा था , जान बूझ कर ! उसे पता था कि ये शब्द उसके दोस्त के जेहन में खीझ पैदा करेगा ही करेगा ।
वो यूँ कि इस विचार के साथ कि 'कुछ अपना कुछ करेंगे' , 'कुछ नया करेंगे ' उन दोनों जिगरियों ने तमाम मंत्रणाएं की थी । आइडियाज बहुत आये । चाय की सस्ती दुकानों की चेन खोलने से लेके, कार्ड बोर्ड बनाने तक , खुद की सॉफ्टवेर कंपनी खड़ी करने से लेके किसानों का काया कल्प करने तक आदि आदि । फेरिस्त लंबी है । पर वे स्टार्ट का बटन दबाने में विफल रहे थे । 'ओवर प्लानिंग' , 'अंडर प्लानिंग' , 'कॅश क्रंच' , 'टू रिस्की' , 'नॉट आवर कप ऑफ़ टी' ... वजह आईडिया के साथ बदलती रही ।
"कद्दू करेगा तू कुछ । बोलता ही है " खीज गया था मिंटू ।
"अबे करूँ ना करूँ । जिक्र करने से 'कुछ तो करना है , कुछ तो करना है ' वाली हाजत तो मिटा लेता हूँ ना । और वे जोर से हंस दिए थे ।
अपने डब्बे नुमा केबिन की ओर टहलते हुए चिंटू ने पूछा " यार , आजकल ऑफिस का कुछ गॉसिप नहीं मिलता । ये नए लड़के लड़कियाँ कुछ अफ़ेयर बफेयर नहीं करते क्या ? कौन किसे लंच पे ले गया । कौन किसके साथ घूम रहा । कौन कौन ऑफिस टाइम में भी मूवी थिएटर हो आ रहे । हवा बदल गयी क्या इधर की ?। क्यों ?"
"अबे साले , मैंने बोला न , हम सीनियर हो गए । मेरा मतलब है पूराने और बूढ़े " मिंटू का तर्क मजबूत था ।
हाँ , उस 'बेहद जरूरी मीटिंग का' जो की सुबह नए बॉस ने बुलाई थी , उसका 'की टेक अवे' ये था कि उसी तरह की मीटिंग फिर से होगी , पंद्रह दिन बाद !
- सचिन कुमार गुर्जर
अपने डब्बे नुमा केबिन की ओर टहलते हुए चिंटू ने पूछा " यार , आजकल ऑफिस का कुछ गॉसिप नहीं मिलता । ये नए लड़के लड़कियाँ कुछ अफ़ेयर बफेयर नहीं करते क्या ? कौन किसे लंच पे ले गया । कौन किसके साथ घूम रहा । कौन कौन ऑफिस टाइम में भी मूवी थिएटर हो आ रहे । हवा बदल गयी क्या इधर की ?। क्यों ?"
"अबे साले , मैंने बोला न , हम सीनियर हो गए । मेरा मतलब है पूराने और बूढ़े " मिंटू का तर्क मजबूत था ।
हाँ , उस 'बेहद जरूरी मीटिंग का' जो की सुबह नए बॉस ने बुलाई थी , उसका 'की टेक अवे' ये था कि उसी तरह की मीटिंग फिर से होगी , पंद्रह दिन बाद !
- सचिन कुमार गुर्जर