गुरुवार, 21 अगस्त 2014

बनिए की नौकरी




शर्मा जी अपने गाँव के बड़े रसूख वाले आदमी है । थे नहीं , हो गए है । शर्मा जी का  छोरा  पढ़ लिख गया  ,दिल्ली में किसी विलायती फर्म में इंजीनियर लग गया , अच्छी खासी आमद है । और अच्छी आमद तो रसूख पैदा कर ही देती है ।

शर्मा जी दूरदर्शी आदमी ठहरें ,मेहनत कश भी । जब गाँव के निकम्मे दिन रात बड़े पीपल तले ताश के पत्ते पटक पटक खटिया चटकाय  रहे , शर्मा जी ने हाड़तोड़ मेहनत की । न जाने कितनी काली रातें  और पीली सुबहे  यूँ ही गुजारी  । उस ज़माने में जब  गाँव के लोगों को कम्प्यूटर का ककहरा भी न पता था तभी उन्होंने अपने  छोरे को एक एक कौड़ी जोड़ , दूर कम्प्यूटर इंजीनियरी की पढाई करने भेज दिया ।

उनका छोरा दिमाग से कोई चाचा चौधरी तो ना  था पर कितबिया रट रटाए के और घंटो ऑनलाइन  चैट  रूम में घुस घुसाय के  कम्प्यूटर की थोड़ी बहुत नब्ज नाडी पकड़ना सीख गया । उसकी किस्मत का तारा चमका और रजधानी की एक नामी गिरामी विलायती फर्म में नौकर हो गया

 विलायती फर्मों में नौकरी वाले माहवार तनख्वाह  की बात नहीं करते उनके सालाना पैकेज होते है जैसे पांच लाख रुपए सालाना, आठ लाख रुपए सालाना!

शर्मा जी इतरा के जब छोरे का पैकेज गाँव में अपनी कथा वाचन में सुनाते  तो गाँव वालों के पाँव तले की जमीन खिसक जाती । कुछ पढ़े लिखे लोग पैकेज को सीधे बारह से भाग देकर माहवार वेतन का आंकलन कर देते तो कुछ खीज उठते ,  कुछ की आँखों के गुल्ले बाहर आने को  होते ।

अब गाँव में भले ही सब एक कुएं बाबड़ी का पानी पिए है पर दिमाग और स्वभाव तो फिर भी अलग अलग होता  ही है ।
गाँव में शर्मा जी की वाह वाही कर उन्हें सातवे आसमान पे चढाने वाले जजमान बसते है , तो कुछ पंख कुतरने वाले भी है । कुछ शर्मा जी की उड़ान को काटने को कह देते  ' भैया ,ये पैकेज वैकेज चाहे कितना भी होवे , पर है तो बनिए की नौकरी ही ना , कोई सरकारी नौकर थोड़े ना  है , और बनिए का क्या है , जब जी चाहे तब फैक्टरी से लतियाय  बाहर करे ।फिर इसमें सरकारी नौकरी  जैसे ऊपर की कमाई  भी ना है। "

शर्मा जी सब समझते  कि उन जलकड़वो की बात में सच्चाई उड़द की सफेदी के बराबर भी ना  है , ख़ीज है जो झूठ सच बोल बाल के मिटाने की कोशिश करें है मोटी अकल के मारे !

शर्मा जी का दिमाग तब पलटा जब वो एक दिन बैठकी के सामने से गुजरते पास गाँव के बनबारी  कुम्हार को बुला बैठे  । बनबारी  उनके पुराने जजमानों में से रहा , शर्मा जी जब  पण्डिताई करते रहे  , तब  से आना जाना रहा  ।

रामा किशना  के बाद बातचीत में पता चला कि बनबारी का छोरा भी , जो शर्मा जी के छोरे से उम्र में काफी छोटा है , इंजीनियरी पढ़ गया है और बंगलोर में अठरह लाख का मोटा  पैकेज पाता है ।लम्बी सफ़ेद कार में चलता है । शहर में घर खरीद लिया है ।सालो बाद ,शर्मा  जी को अपना तिलिस्म टूटता सा  जान पड़ा है । बनबारी  के छोरे के मोटे पैकेज  तले उनका रुतवा  दब गया है शायद ! रुतवा खास होने में है , खास जब आम हो जाये तो रुतवा भी नहीं रहता ।


शर्मा जी ने अपने छोरे से कह छोड़ा है  "विचारो , ये पैकज कैसे बड़ा हो ?सोचो , विलायत जाने का प्रयोजन कैसे हो ।आखिर  है तो बनिए की नौकरी  ही ना  । फिर सरकारी नौकरी जैसी ऊपर की आमद भी तो ना है,  बदल डालो । ''

शर्मा जी का छोरा नौकरी बदलने की सोच रहा है । 
















अच्छा और हम्म

" सुनते हो , गाँव के घर में मार्बल पत्थर लगवाया जा रहा है , पता भी है तुम्हे ? " स्त्री के स्वर में रोष था |  "अच्छा " प...